वो भी क्या दिन थे...
जब ये देश बहुत सुकून में था... सबकुछ सही चल रहा था... कश्मीर सहित देशभर में आतंकवादियों के बोलबाले थे... वो जब चाहे, जहाँ चाहे आकर धमाके कर जाते थे...
26/11 मुंबई हमले तो उन्होंने ऐसे कर डाले थे, मानों फ़िल्म की शूटिंग चल रही हो... कभी दिल्ली, कभी वाराणसी, कभी पुणे, कभी अहमदाबाद, कभी सूरत... देश का कोई शहर ऐसा नहीं था जहाँ आतंकवादी हमले करना चाहें और न कर पाएँ...
वो भी क्या दिन थे...
कॉमनवेल्थ, कोयला खदानों, 2G, 4G से लेकर तो जानें कितने ही घोटाले होते थे और अरबों खरबों के घोटालों पर तब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री कहते थे, हज़ारों सवालों के जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी...
और इन्हीं अरबों खरबों के घोटालों के लिए एक नई थ्योरी भी ईजाद कर ली गई थी "ज़ीरो लॉस थ्योरी"
वो भी क्या दिन थे...
दलितों के नाम पर राजनीति करने वाली एक अकेली महिला ने भी "दौलत की बेटी" बनकर अपने जीते जी हज़ारों करोड़ रुपयों से खुद की मूर्तियाँ और बड़े बड़े पार्क बना डाले... अपने जन्मदिन पर तो लाखों रुपयों के नोटों के हार पहनकर इठलाती थी... ये था असली विकास... पैसों का सदुपयोग...
वो भी क्या दिन थे...
जब सैफई में जोरदार महोत्सव होते थे... फिल्मी सितारों को नचवाकर, उनके दर्शन करवाकर यूपी की जनता का पेट भरा जाता था... उनका मनोरंजन किया जाता था...
इन सबसे बढ़कर इटली वाली राजमाता ने हम भारतीयों पर एक बड़ा एहसान किया औए एक बिल पास करवाया था जिसके बाद हर भारतीय को "भोजन का अधिकार" मिला था... उसके पहले तो हम भारत के लोग दास जनपथ से फेंके हुए टुकड़ों पर ही तो गुजर बसर करते थे...
वो भी क्या दिन थे...
देश में रोहिंग्या, बांग्लादेशी चुपचाप बसते चले जा रहे थे... ये सब गंगा जमुनी तहज़ीब के चलते देश में बसाए जा रहे थे... इनके आधार कार्ड, वोटर कार्ड बनाये जा रहे थे... जो बरसों पहले ये सब बना चुके थे... उनके तो बाक़ायदा पासपोर्ट तक बन चुके थे...
वो भी क्या दिन थे...
देश में कहीं भी आतंकवादी हमले होते थे... तो उसके लिए तय फॉर्मूला था "इनमें विदेशी ताकतों का हाथ है" इटली वाली बाई के होनहार, यशस्वी सुपुत्र ने कहा भी था, आतंकवादी हमलों को रोका नहीं जा सकता है...
गाजर मूली की तरह लोग भून दिए जाते थे, काट दिए जाते थे... लेकिन ना तो कभी उस "विदेशी हाथ" का किसी को पता चला ना ही "आतंकियो का मज़हब" का पता चला था...
वो भी क्या दिन थे...
फिर आया ये दाढ़ीवाला... पहले छोटी रखता था... ट्रिम श्रिम करके... आजकल तो ये लंबी दाढ़ी लटकाए घूमता है...
उसने सरदार पटेल की ये भारी भरकम, लंबी चौड़ी मूर्ति बनवा डाली... हर शहर में होने वाले आतंकी हमले बंद करवा दिए... उसने ऐसे ऐसे कांड किये कि जन्मदिन मनना बंद हो गए... सैफई महोत्सव बंद हो गए... बड़ी बड़ी इफ्तार पार्टियाँ बंद हो गईं...
सरदार पटेल की मूर्ति को कोई देखने नहीं आता... वहाँ रहने वाले और आसपास के लोगों के जीवन में कोई बदलाव नहीं आया... वो बेचारे तो और ग़रीब हो गए...
जबकि दौलत की बेटी की मूर्तियों को देखने दुनिया भर से लोग आते हैं... फोटुएँ खिंचवाते हैं... खूब कमाई होती है जी लोगों की...
पहले आतंकी हमले होते थे... लोगों की जानें जाती थीं... लोग घायल होते थे... सार्वजनिक और निजी संपत्तियों का नुकसान होता था... इन सबसे लोगों को रोज़गार भी मिलता था... अस्पताल, डॉक्टर, मेकेनिक, मजदूर, ठेकेदार, कंस्ट्रक्शन कंपनियों सबका फायदा होता था...
इस तरह की और भी अनेकों "लोक कल्याणकारी योजनाएं" चलती रहती थीं और देश की जनता काम धंधे से लगी रहती थी...
इसी दौरान माँ बेटे चीन से जाकर "गुप्त समझौता" कर लेते थे... बेटा अभी भी गुपचुप चीनी अधिकारियों से मिलता रहता है... मान सरोवर जाने के बहाने चीन की यात्रा कर लेता है... माँ तो जब देखो तब अपनी " बीमारी" का इलाज कराने विदेश जाती रहती थीं... जब आज़ादी के इतने वर्षों बाद "भोजन का अधिकार" दिया था तो देश की जनता को स्वस्थ होने का अधिकार इतनी जल्दी कैसे मिल जाता... हाँ नी तो... बात करते हैं...
कोरोनकाल में भी वो दाढ़ीवाला लगा था कैसे भी देश की जनता को बचा लूँ... अर्थव्यवस्था भी संभाल लूँ... इस चायवाले को कुछ ज़्यादा ही पड़ी रहती है... हमेशा पड़ी लकड़ी उठा लेता है लेकिन खुद की बजाय विरोधियों के पिछवाड़े में भर देता है...
उसे तो पता है बंगाल के हालात क्या हैं... तभी तो जी जान से लगा था कि कैसे भी जीत जाएँ... तब भी देश की जनता गालियाँ देती थी... आज हिंसा के बाद फिर दे रही है... लेकिन देश का मीडिया... पत्रकार, फिल्मकार... बुध्दिजीवी... सेकुलर नेता सब चुप बैठे हैं...
वो आज गालियाँ खा रहा है लेकिन कल को फिर ऐसा कुछ करेगा कि गाली देने वाले भी थोड़ी देर के लिए चुप हो जाएंगे... वो अगली बार फिर किसी नए कारण से दुबारा गालियाँ देंगे... गालियाँ उसकी नियति है... वो इन्हें मोती समझकर उसकी माला बनाकर पहन लेता है... हलाहल समझकर गटक लेता है...
देते रहो गालियाँ... और याद करते रहो...
वो भी क्या दिन थे... वो भी क्या दिन थे...