सुनो! हिंदू लड़कियो, तुम कौन हो ??
तुम उस नायिका देवी की कुलपुत्री हो, जिसने अपने दांतों में घोड़े की लगाम पकड़ रखी थी, दोनों हाथों से तलवारें लहराते हुए गौरी के सैनिकों का सूपड़ा साफ कर दिया था। मुहम्मद गौरी अपनी लंगोट पकड़कर भागा था। फिर कभी उसने आबू के रास्ते भारत में घुसने की कोशिश नहीं की।
तुम उस हीरा दे की आत्मजा हो, जिसने स्वामी से घात करने वाले अपने पति को मार डाला था।
तुम संतति हो, युद्ध से वापस लौट आने वाले पति के प्रवेश पर दुर्ग के द्वार बंद कर देने वाली रानी जसवंत दे हाड़ी की।
तुम उस सहल कंवर हाड़ी की परंपरा में पैदा हुई हो, जिसने युद्ध में जाने से आनाकानी कर रहे अपने पति को अपना शीश उतार कर निशानी के रूप में दे दिया था।
तुम अपनी रियासत एवम् औरंगजेब के विरुद्ध जाकर मेवाड़ नरेश राजसिंह को अपने वरण हेतु आमंत्रित करने वाली चारुमति की संतान हो।
अपने पति के एक गलत आचरण के कारण उसे आजीवन क्षमा नहीं किया उमादे भटियाणी ने, तुम नवकोटि मारवाड़ धणी के सामने नहीं झुकने वाली उस स्वाभिमानी रूठी रानी की रक्तवाहिका हो।
तुम्हारे भीतर अग्निकुंड में स्नान करने वाली मां पद्मिनी जैसी अगणित क्षत्राणियों की आग है।
तुम झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के क्षात्र-व्योम की तारिका हो।
तुम अपनी परंपरा पहचानो। तुम्हें कोई विधर्मी बरगला कैसे सकता है ? तुम पर धर्म, संस्कृति और इस राष्ट्र का महत् उत्तरदायित्व है, नारी।