सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने एक जनहित याचिका दायर की जिसमें जबरन धर्मांतरण के विरुद्ध सीबीआई जाँच और धर्मांतरण विरोधी कानून का मसौदा तैयार करने की माँग की गई थी। इस पर तमिलनाडु सरकार की ओर से कहा गया है कि राज्य में पिछले कई सालों से जबरन धर्मांतरण कराने का कोई भी मामला सामने नहीं आया है।
तमिलनाडु की स्टालिन सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में यह भी कहा गया है कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का प्रचार करने का अधिकार देता है। इसलिए, ईसाई धर्म का प्रसार करने वाले मिशनरियों के कार्यों को कानून के खिलाफ नहीं देखा जा सकता है। अगर यह नैतिकता, स्वास्थ्य जैसी चीजों के खिलाफ है, तो इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
कोई पूंछे मिशनरियों का समर्थन करने वाली इन सरकारों से की प्रचार का मतलब धोखा करके लोगों को मतांतरित करना नहीं होता है , ईसाई मिशनरियां किस प्रकार धर्मान्तरण का धंधा करती हैं ये किसीसे छुपा नहीं है लेकिन कुछ राज्य सरकारें इन्हें रोकने के बजाय संविधान की आड़ में इनका समर्थन करती हैं , इन्हें बढ़ावा देती हैं
ईसाई मिशनरियों का समर्थन करते हुए तमिलनाडु सरकार ने स्पष्ट किया कि राज्यों के विभिन्न धर्मांतरण विरोधी कानूनों के तहत सजा पर कोई डेटा नहीं है। नागरिक उस धर्म को चुनने के लिए स्वतंत्र हैं, जिसका वे पालन करना चाहते हैं। याचिकाकर्ता की आलोचना करते हुए सरकार ने आगे कहा कि ईसाई मिशनरियों को निशाना बनाने की कोशिश की जा रही है।