17 वीं शताब्दी पूर्वार्द्ध मेवाड़, भारत..
महाराणा प्रताप का असमय देहांत हो चुका था। राणा लाखा के पुत्र चुंडा के वंशज चूंडावत सरदार से रुष्ट राणा अमरसिंह ने सेना में अग्रिम अर्थात हरावल में चलने का अधिकार शक्तिसिंह के 16 पुत्रों को दे दिया जो शक्तावत कहलाते थे।
चूंडावतों और शक्तावतों के बीच युद्ध में आगे चलकर मरने के इस 'सम्मान' के लिये तलवारें खिंच गईं।
निदान, राणा अमरसिंह ने शर्त रखी कि जो ऊंटाला के अभेद्य दुर्ग को 'मुगलो से मुक्त' कराएगा और दुर्ग में पहले प्रवेश करेगा रणभूमि में आगे चलने का सम्मान उसी को मिलेगा।
दोंनों पक्ष अविलंब दौड़ पड़े। शक्तावतों ने हाथियों द्वारा दरवाजे को तोड़ने की क्षमता पर भरोसा किया और चूंडावतों ने घोड़ों और नसेनियों की सहायता से बुर्ज पर चढ़ किले को जीतने का।
परंतु शक्तावतों के साथ समस्या हो गई क्योंकि भयभीत हाथी किले के द्वार पर लगे बड़े कीलों से डरकर बार बार पीछे हट रहा था और उधर चूंडावत दीवारों की नीचे पहुंच गए थे और सीढियां लगाना शुरू कर चुके थे।
ज्येष्ठ शक्तावत बालोजी अधीर हो उठे और सहसा कुछ सोचकर लोहे का विशाल तवा मंगाया और उसे लेकर हाथी के मस्तक पर खुद को बांध लिया और महावत की ओर जलती निगाहों से देखकर आदेश दिया,
"हाथी हूल दो"
हाथी को कांटे दिखना बंद हो गए थे अतः उसने बालोजी के शरीर सहित जोरदार टक्कर दरवाजे में मारी और फिर दूसरी। बालोजी शक्तावत के शरीर मे छेद हो गए और खून की धाराएं फुट निकलीं। दरवाजा बस टूटने ही वाला था।
उधार चूंडावत सरदार ने आकुल व्याकुल हो दरवाजे की ओर देखा जो बस धराशायी होने वाला था और साथ में उनका वंश परंपरागत सम्मान भी। उन्होंने सहसा एक चूंडावत को पकड़ा और गरज उठे,
"मेरा सिर काटो और किले में फैंको"
युवा चूंडावत ने बिना हिचकिचाहट के अपने सरदार की गर्दन पर वार किया और रक्त के फव्वारे छोड़ते सिर को किले में फेंक दिया और निशान के तौर पर साथ में एक बाण भी। चूंडावत युवक बुर्जियों पर पहुंच गए थे।
उधर उसी समय दरवाजा टूटा और आंधी तूफान की तरह शक्तावत घुस पड़े।
दोंनों दलों ने बिना कोई रहम किये सारे मुगल सैनिकों को काट डाला और राणाजी को किला उपहार में दे दिया।
तकनीकी आधार पर चूंडावतों को विजयी घोषित किया गया और उनके पास हरावल का अधिकार सुरक्षित रहा। शक्तावतों को राणाजी द्वारा 'पराजित विजेता' कहा गया और उन्हें एक अन्य अतिविशिष्ट सम्मान दिया गया जो आज तक दिया जाता है।
महाराणा प्रताप की जयंती के इस पावन पर्व पर उनकी इस महान विरासत का सम्मान करो।
इन महान प्रसंगों को याद करो।
जिस दिन शक्तावतों और चूंडावतों के बीच प्राण देने के लिये हुई प्रतियोगिता की भांति हिंदुओं के विभिन्न व्यक्तियों समूहों व जातियों में आपस में लड़ने के स्थान पर देश के लिये बलिदान देने की होड़ लग जायेगी उस दिन हिंदुत्व और भारत की राह रोकने की क्षमता संसार की सारी शक्तियाँ मिलकर भी नहीं जुटा पायेंगी।
But hystory saying that cooperation is no longer take place between parties after winning battle. There take place a dispute on getting the power to the throne once again 😁
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