Same sex marriege यानी समलैंगिक विवाह यानी लड़का लड़के से और लड़की लड़की से विवाह करेंगे। समलैंगिक रिश्तों को तो सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दे दी लेकिन अब समलैंगिक विवाह की मान्यता के लिए याचिका कोर्ट में लगाई हुई है जिसका पहले भी केंद्र सरकार ने विरोध किया था और एक बार फिर 16 अप्रैल को विरोध दर्ज कराया है।
केंद्र ने कहा कि समलैंगिक विवाह के अधिकारों की मांग करते हुए याचिकाकर्ता सामाजिक स्वीकार्यता को हासिल करने के लिए शहरी अभिजात्य सोच का विस्तार कर रहे हैं। केंद्र ने कहा कि सेम सेक्स मैरिज एक अर्बन एलीटिस्ट कॉन्सेप्ट है, जिसका देश के सामाजिक लोकाचार से कोई लेना-देना नहीं है। सरकार ने यह भी कहा है कि कोर्ट नई विवाह संस्था नहीं बना सकता।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि विधायिका को इस पर व्यापक नजरिए और सभी ग्रामीण एवं शहरी आबादी के विचारों, धर्म-संप्रदाय और पर्सनल लॉ को ध्यान में रखते हुए फैसला लेना है। इसमें विवाह संबंधी रीति-रिवाज भी अहम हैं। केंद्र के इस जवाब के बाद विचारों के टकराव की स्थिति भी पैदा हो सकती है क्योंकि सरकार ने कहा है कि विवाह एक संस्था है जिससे संबंधित फैसले सक्षम विधायिका ही ले सकती है।
NCPCR ने भी सुनवाई के लिए अपनी याचिका लगाई
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक शादी को मान्यता देने की याचिका के साथ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights) ने सुनवाई के लिए अपनी याचिका लगा दी है। एनसीपीसीआर ने अपनी याचिका में कहा है कि समलैंगिक जोड़े द्वारा बच्चों को गोद लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। आयोग का कहना है कि समलैंगिक अभिभावक द्वारा पाले गए बच्चों की पहचान की समझ को प्रभावित कर सकते है। इन बच्चों का एक्सपोजर सीमित रहेगा और उनके समग्र व्यक्तित्व विकास पर असर पड़ेगा।