#शुभ_रात्रि
जब मानवता की रक्षा एवं उसके लिए कुछ करने की बात आती है तो भारत सहित पूरे विश्व की राजनैतिक, सामाजिक आर्थिक, धार्मिक एवं अन्य सभी परिस्थितियों का आंकलन किया जाये तो स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है कि इन हालातों में जिसके पास शक्ति आ रही है, अधिकांशतः उसका दुरुपयोग ही हो रहा है। अब सवाल यह उठता है कि किसी भी समस्या का समाधान हमें वर्तमान में ही रहकर ढूंढ़ना होता है तो ऐसी स्थिति में वर्तमान में इस दिशा में कोई रास्ता दिखा पाने में सक्षम नहीं हो पा रहा है तो अतीत से सीख लेते हुए वर्तमान एवं भविष्य को सजाया-संवारा जा सकता है।
यदि हम अपनी गौरवमयी सनातन सभ्यता-संस्कृति, प्रकृति एवं महापुरुषों से कुछ जानना एवं सीखना चाहें तो सब कुछ आसान हो जाायेगा। सतयुग, त्रेता और द्वापर युग में तो ऐसे-ऐसे उदाहरण हमें देखने-सुनने को मिलेंगे कि यदि उस पर अमल कर लिया जाये तो उससे सीख लेते हुए वर्तमान में शक्ति का उपयोग मानवता के लिए होने लगेगा और बिल्कुल असहाय, लाचार एवं निराश्रित व्यक्तियों का भी जीवन आसानी से कट जायेगा।
अब हम अपनी गौरवमयी सनातन संस्कृति की तरफ चलें। ते्रता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हमारे लिए सबसे बड़े प्रेरणा स्रोत हैं। उन्हें दैवीय कृपा से जब शक्ति मिली तो उन्होंने शक्ति का दुरुपयोग करने के बजाय अपनी शक्ति का उपयोग मानवता की रक्षा के लिए किया। चैदह वर्ष तक जंगलों में रहकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने राक्षसों एवं दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों का वध करके ऋषियों-मुनियों एवं जनता-जर्नादन को शांति और सुखमय जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त किया। यदि वे चाहते तो माता कैकेयी की बात न मानकर अयोध्या का राजा बनकर ऐशो-आराम की जिंदगी बिताते किन्तु उन्होंने समाज एवं राष्ट्र का मार्गदर्शन कर बताया कि शक्ति का सदुपयोग मानवता की रक्षा के लिए होना चाहिए, न कि उसका दुरुपयोग होना चाहिए। इसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी शक्ति का उपयोग मानवता की रक्षा के लिए किया। बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर समाज को एक आदर्श जीवन जीने का रास्ता भी बताया। भगवान श्रीकृष्ण ने साफ तौर पर यह भी कहा है कि मानवता की राह पर चलते हुए यदि आप को कष्ट ही कष्ट मिलें तो भी उस पर चलते रहना चाहिए क्योंकि सद्मार्ग पर चलना स्वयं में मानवता की रक्षा ही है।
महात्मा बुद्ध, गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, सम्राट अशोक, चंद्र गुप्त मौर्य जैसी महान विभूतियों ने अपने त्याग एवं आचरण से सर्वदा यह बताने का कार्य किया है कि लोग जिस ऐशो-आराम एवं रुतबे के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने में लगे हैं, उससे कभी न कभी मन ऊब जाता है और मन में वैराग्य का भाव उत्पन्न हो जाता है तो ऐसी स्थिति में बिना लाग-लपेट के यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति को सदा वही कार्य करना चाहिए जिससे उसका मन कभी न ऊबे और वह सदा उस काम में लगा रहे। इस दृष्टि से यदि देखा जाये तो वह काम मात्र मानवता की रक्षा और उसकी सेवा ही है।
महान संत वाल्मीकि पहले डाकू थे किन्तु जब उन्हें यह ज्ञात कराया गया कि वे जिस रास्ते पर जा रहे हैं, वह अनीति एवं अधर्म का है तो उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया और सद्मार्ग पर चलकर मानवता की रक्षा में लग गये। यह सब लिखने के पीछे मेरा मकसद मात्र यही है कि मानवता के रास्ते पर आने और उस पर कार्य करने के लिए हमारी गौरवमयी सनातन संस्कृति बहुत मददगार साबित हो सकती है। हमारे वेद-पुराण और धार्मिक ग्रन्थ हमें यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि मानवता की राह पर चलकर न सिर्फ हमारा वर्तमान अच्छा बनता है अपितु भविष्य भी उज्जवल बनता है और पूर्व के पापों का भी निवारण होता है।
मानवता की रक्षा के लिए यदि हम कुछ सीखना चाहें तो प्रकृति हमारे लिए सबसे बेहतर शिक्षक की भूमिका निभा सकती है। प्रकृति की तमाम चीजों को भले ही नजर अंदाज कर दें किंतु यदि पंच तत्वों यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु को ही अपना शिक्षक मान लें तो अपनी शक्ति का उपयोग मानवता के लिए करने लग जायेंगे। शक्ति की बात यदि की जाये तो मानव इन पंच तत्वों के आगे कहीं टिकता भी नहीं है।
उदाहरण के तौर पर पृथ्वी यदि यह कह दे कि मेरा उपयोग मात्र कुछ लोग ही कर सकते हैं तो क्या होगा? इस बात का अंदाजा बिना किसी के समझाये ही लगाया जा सकता है किन्तु पृथ्वी की महानता देखिये, इतना शक्तिशाली होते हुए भी उसका भाव अमीर-गरीब, शक्तिशाली एवं कमजोर सभी के लिए एक जैसा ही है। इसी प्रकार हवा ने भी कभी यह नहीं कहा कि मेरा उपयोग सिर्फ अमीर कर सकते हैं, गरीबों क…