समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही है , मामला पूरे समाज से जुड़ा है यानि लगभग १४२ करोड़ लोगों से लेकिन केवल कुछ लोगों की याचिका पर कुछ लोग बहस कर रहे हैं, ऐसे में जो भी फैंसला आएगा क्या उसे समाज पर थोंपा जाना कहना गलत होगा?
क्या भारतीय समाज लीव इन रिलेशनशिप को स्वीकार्यता देता हैं? क्या कोई सभ्य परिवार चाहेगा की उसकी बेटी या बेटा बिना शादी किये किसीके साथ रहे , रंगरेलियां मनाये? क्या इससे हिन्दू धर्म के १६ संस्कारों में से एक विवाह संस्कार पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता? और लीवइन रिलेशनशिप के तो श्रद्धा मर्डर कैसे जैसे कई दुष्परिणाम भी समजा देख चूका है ..और इसके अधिकतर मामलों में दुष्परिणाम लड़की को ही भुगतने पड़ेंगे.
आखिर किस आधार पर लीव इन रिलेशनशिप को मान्यता देकर कानूनी रूप दिया गया और समाज पर थौंप दिया गया ? जिसे भारतीय समाज बदचलनी कहता हैं , जिसे भारतीय समाज घ्रणित नजर से देखता है ऐसी चीजों को कानून बनाकर जबरदस्ती भारतीय समाज पर थोंपना क्या अंग्रेजों की तरह गुलाम बनाने जैसा नहीं हैं?
क्या भारतीय समाज जो संस्कृति और सभ्यता से भरा होता है जिसकी संस्कृति को आज विदेशी भी अपना रहे हैं उस समाज की संस्कृति को बर्बाद करने का कोई बड़ा खेल बड़े लेवल पर हो रहा है ?
लेकिन दुर्भाग्य की भारतीय समाज सब कुछ स्वीकार कर रहा है जिसके कारण ये सब खेल मजबूती से आगे बढ़ रहे हैं और समाज के संस्कृति गुणों को नष्ट करते जा रहे हैं ..अब बिन ब्याही मां बनने का गिरा हुवा काम करने वाले सेलिब्रिटी खुलकर बड़े शान से बताते हैं की में मां बनने वाली हूँ और कोई बाप का नाम पूँछ ले तो उस सेलेब्रिटी के ओछे समर्थक उस सेलिब्रिटी की घटिया हरकत का पक्ष लेते हैं , ये लोग सायद खुद भी अपनी बहन बेटी को बिन ब्याही मां बनते देखना चाहते हैं
ये सब कुछ बड़ी गहरी प्लानिंग के साथ हो रहा है, बॉलीवुड फिल्मों , वेब सीरीज , धारावाहिक आदि के माध्यम से इन सभी कुसंस्कारों को एक्सप्लोर किया जाता है लोगों के दिगमग में बिठाया जाता है की ये सब नार्मल है और फिर ग्राउंड टीम तैयार होती हैं , न्यूज़ चैनल से लेकर NGO से लेकर कई कानूनी सलाहकारों तक , वामपंथी आदि के साथ मिलकर मामले को उठाया जाता है और फिर न्यायपालिका के माध्यम से भारतीय समाज पर थौंप दिया जाता है , और सर्वोच्च न्यायलय का विरोध करने की तो किसीमें हिम्मत है नहीं और किसीने कोशिश की तो उसपर न्यायलय की अवमानना का केश लगाकर....
प्रगतिशीलता और आधुनिकता के नाम पर हमारे समाज में स्लो पाइजन की तरह भयानक कू संस्कारों को इंजेक्ट किया जा रहा है और दर्भाग्य ये है की हमारा समाज इसका विरोध भी नहीं कर रहा जिसे समाज की मूक सहमति समझा जा रहा है. स्कूल - कॉलेज में आजकल पढाई काम और लव-सेक्स-धोका ज्यादा चल रहा है , इससे ऊपर उठाकर लव मेर्रिज को समाज में आम बनाया गया , फिर लीव इन रिलेशनशिप को बढ़ावा दिया गया , फिर एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर के लिए माय बॉडी माय चॉइस जाइए शिगूफे फेंके गए और आजादी के नाम पर हर तरफ सेक्स- सेक्स- सेक्स फैलाया जा रहा है , और अब एक बीमारी को ख़त्म करने की बजाये बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि वो समाज में फैले और भारत की जो समाज व्यवस्था कुछ बहुत बची है वो भी पूरी तरह बर्बाद हो जाए
यदि आज समाज संगठित होकर आवाज नहीं उठता है तो आने वाली पीढ़ियां पूरी तरह व्यभिचार के दलदल में फंस जाएँगी , शुद्ध भारतीय संस्कार पूरी तरह नष्ट भ्रष्ट हो जायेंगे , जो काम मुग़ल और अंग्रेज १००० वर्षों में नहीं कर पाए वो काम बस कुछ ही वर्षों में हो जायेगा.
समाधान : अब समाज इन सब चीजों का विरोध नहीं करेगा तो ये सब तो समाज में आएँगी ही लेकिन जो लोग जागरूक है और इन बिमारियों से अपने परिवार , परिजन आदि को बचाना चाहते हैं उन्हें जागरूक करें और धर्म ज्ञान , धर्म संस्कार के माध्यम से व्यभिचार से शुद्ध प्रेम ,ब्रह्मचर्य , आदि का महत्व समझकर उसके निकट ले जाएँ ... यदि हमारे अपनों को हमने दिन में १५ मिनट के लिए भी हनुमान चालीसा और श्रीमद्भागवत गीता से जोड़ दिया तो यकीन मानिये कोई भी कुरीति, कोई भी सामाजिक बुराई या ये कहीं बीमारी हमारे अपनों को छु भी नहीं पाएंगी