. #शुभ_रात्रि
संघर्ष भरी जीवन राहों पर चलने की हिम्मत प्राप्त करने का पवित्र साधन प्रार्थना है। प्रार्थना अपने प्रेम को भगवान के प्रति अर्पित करने का सरल किन्तु विशेष ढंग है। उस परम सत्ता के प्रति प्रेम, उसकी कृपाओं को याद करके अंतःकरण में खुशी के आंसू और मुस्कान भर उठने की हूक जगाती है प्रार्थना। कहते हैं भाव श्रद्धा से जब सिर झुकते हैं आभार के लिए, और वाणी बह उठती है धन्यवाद के लिए, तब प्रार्थना का उदय होता है। इसी अवस्था में प्रार्थना ताकत पाती है।
प्रार्थना के लिए सर्वप्रथम मन पूरी तरह भगवान को समर्पित होना जरूरी है। श्रद्धा भाव से भरे पवित्र मन की गहराई से पुकारने पर अवश्य वह कृपा करता है। वेदों-उपनिषदों की प्रार्थनाएं, ऋषियों के हृदय से प्रकट हुई प्रार्थनायें, संत साधक, सिद्ध के हृदय से प्रकट हुई प्रार्थनायें, पवित्र हृदयी महामनाओं द्वारा शिलाओं पर बैठकर की गयी प्रार्थनाएं सर्वाधिक इसीलिए कुबूल हुई हैं। क्योंकि इन सभी ने अपने अहम को विलीन करके दूसरों के हित कल्याण के लिए प्रार्थनायें की हैं। अतः यही ढंग होना चाहिए हमारी भी प्रार्थना का। जब मांगने की बारी आयी, तब उन संतों ने ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।’’ के भाव से मांगा। इसलिए परमात्मा उनकी झोली कभी खाली नहीं रहने दी।
वास्तव में प्रार्थना की सफलता के लिए भावों की निष्छलता और लोक कल्याण भावना का होना बहुत आवश्यक है। प्रार्थना में जब निश्छल प्रेम के साथ भक्त अपने भगवान के प्रेम में निमग्न हो, उसे उसका हो जाने की चाहत के साथ पुकारता है, पूर्ण प्रेम अर्पण कर पुकारता है, तो प्रार्थना अवश्य स्वीकार होती है। प्रार्थना की इस अवस्था में भक्त के भाव हृदय की भाषा बनकर प्रकट होते हैं।
ऐसी प्रार्थना में तीव्र संवेदना, गहरी चाह होती है, पर किसी के अनिष्ट की भावना कदापि नहीं होती। प्रार्थना द्वारा भक्त अपने भगवान की सत्ता का प्रयोग केवल अपनी सुख-सुविधाओं और विलासिता के लिए भी नहीं करता, अपितु अपना दुःख-दर्द दूर करने, अपनी खुशी के लिए, जीवन पर छाये गहरे कुहासे हटाने के लिए प्रार्थना करता है।
प्रार्थना भी एक प्रकार का संवेदनाभरा विज्ञान है, प्रार्थना के प्रयोगकर्ताओं का कहना है कि हर दिन की प्रार्थनायें ताजी हों, क्योंकि पुराने रटे-रटाये शब्द भावों से खाली होने के कारण प्रभावी नहीं रह पाते। जैसे ताजे फूलों को भगवान के चरणों में चढ़ाते हैं, ऐसे ही प्रार्थना के ताजे भाव अन्दर से नित्य पैदा करें। इसके लिए गहरी श्रद्धा जरूरी है।
अंदर श्रद्धा-भावना गहरी होता है, तो प्रार्थना अन्दर से पैदा होती है, फिर वह सफलता, सौभाग्य के साथ शान्ति भी देती है। वैसे प्रार्थना में शब्द बोलने की जरूरत नहीं है, अपितु हृदय खोलने की जरूरत है। श्रद्धामय हृदय से जो निकलेगा, वह परमात्मा सुनेगा, टूटे-फूटे शब्दों में भी। सच कहें तो प्रार्थना के समय केवल भक्त की श्रद्धा भावनाएं पहुंचती हैं, शब्द नहीं।’
‘‘प्रार्थना आध्यात्मिक प्रयोग है, जो हमारी श्रद्धा की शक्ति के साथ जुड़कर चमत्कार दिखाती है। कोई भी व्यक्ति जब प्रार्थना का सहारा लेकर उस असीम, अनन्त सत्ता के प्रति श्रद्धा भाव से झुकता है, तो परमसत्ता आर्त भाव से की गयी उसकी पुकार सुनकर सहायता अवश्य करता है। वैसे धन्यवादी भाव से की गयी प्रार्थना जीवन में अकल्पनीय चमत्कार लाती है।
. 🚩जय सियाराम 🚩
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