ये एक अकेला क्रांतिकारी ब्रिटिशों की नींद उड़ाने के लिए काफी था
टंट्या मामा के शौर्य और साहस का गवाह है महू खण्डवा रेलवे ट्रेक, इनके बीच के जंगल,
उसमे रहने वाले आदिवासी समेत समग्र समाज जो उन्हें आज भी भगवान की तरह पूजते है
आज पातालपानी एक पिकनिक स्पॉट के रूप में प्रसिद्ध है परंतु कम ही लोग जानते होंगे कि अंग्रेजो ने 4 दिसम्बर 1889 को जबलपुर सेंट्रल जेल में टंट्या मामा को फांसी देने के बाद इसी झरने में उनकी देह को फेंक दिया था
डरे हुए अंग्रेज जानते थे कहीं जनता उनके नायक का मृत शरीर देख कर छावनी में आग न लगा दें।
मध्यप्रदेश का जननायक टंट्या भील आजादी के आंदोलन में उन महान नायकों में शामिल है, जिन्होंने आखिरी सांस तक अंग्रेजी सत्ता की नाक में दम कर रखा था। टंट्या भील को आदिवासियों का रॉबिनहुड भी कहा जाता है, क्योंकि वो अंग्रेजों के भारत की जनता से लूटे गए माल को अपनी जनता में ही बांट देते थे। टंट्या भील को टंट्या मामा के नाम से भी जाना जाता है। आज यानी 4 दिसंबर को उनका बलिदान दिवस मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं उनकी शौर्य गाथा को।
इंदौर से लगभग 25 किलोमीटर दूर पातालपानी क्रांतिकारी टंट्या भील की कर्म स्थली है। यही वह जगह है जहां टंट्या भील अंग्रेजों की रेलगाड़ियों को तीर कामठी और गोफन के दम पर अपने साथियों के साथ रोक लिया करते थे। इन रेलगाड़ियों में भरा धन, जेवरात, अनाज, तेल और नमक लूट कर गरीबों में बांट दिया करते थे। टंट्या भील देवी के मंदिर में आराधना कर शक्ति प्राप्त करते थे और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर आस पास घने जंगलों में रहा करते थे। टंट्या भील 7 फीट 10 इंच के थे और काफी शक्तिशाली थे, उन्होंने अंग्रेजों को थका दिया था
लंदन के अखबारों ने उन्हें इंडियन रॉबिनहुड कहा था परंतु तथाकथित भारतीय इतिहासकारों (लाल गुलामों) को मार्क्स, माओ के तलवे चाटने से फुर्सत नही मिली।
इसलिए टंट्या मामा को स्कूली पाठ्यक्रमों में पढ़ाया नहीं गया
स्वतन्त्रता, समता, स्वाभिमान, सम्मान और सांकृतिक पंरपराओं के रक्षा की आवाज है टंट्या मामा भील
सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षणिक शोषण के विरुद्ध वंचित, पीड़ित, प्रताड़ित, उपहासित श्रमवीरों का काम पूरा होने तक #टंट्या_भील रूप बदल कर आते रहेंगे
ट्रेन सलामी देती है...
यहां आज भी वह मंदिर है, जहां वह आया करते थे। मंदिर में टंट्या मामा की प्रतिमा और तस्वीर लगी हुए हैं। महू अकोला रेल लाइन पर मौजूद इस स्थान पर आज भी रेलगाड़ियों के ड्राइवर टंट्या मामा को सलामी देने के लिए रुकते हैं। कहा जाता है कि उनकी सलामी के लिए रेलगाड़ियां रोकी जाती हैं। उसका वैज्ञानिक कारण यह है कि घाट सेक्शन उतरने से पहले रेलगाड़ियां के ब्रेक चेक किए जाते हैं, जबकि मान्यता यह है कि टंट्या मामा को सलामी देने के लिए रेल गाड़ियां रूकती हैं। बता दें 4 दिसंबर 1840 को उन्हें जबलपुर जेल में फांसी दे दी गई थी, आज उनका बलिदान दिवस है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आज यहां आएंगे और उनकी कर्मस्थली को नमन करते हुए उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे।
रॉबिनहुड बनने की कहानी...
टंट्या एक गांव से दूसरे गांव घूमते रहे। वह मालदारों से माल लूटकर वह गरीबों में बांटने लगे। लोगों के सुख-दुःख में सहयोगी बनने लगे। इसके अलावा गरीब कन्याओं की शादी कराना, निर्धन और असहाय लोगों की मदद करने से टंट्या मामा सबके प्रिय बन गए, जिससे उसकी पूजा होने लगी। बता दें कि रॉबिनहुड विदेश में कुशल तलवारबाज और तीरंदाज था, जो अमीरों से माल लूटकर गरीबों में बांटता था।
जानिए, कौन थे टंट्या मामा...
इतिहासकारों की मानें तो साल 1842 खंडवा जिले की पंधाना तहसील के बडदा में भाऊसिंह के घर टंट्या का जन्म हुआ था। पिता ने टंट्या को लाठी-गोफन और तीर-कमान चलाने का प्रशिक्षण दिया। टंट्या ने धर्नुविद्या के साथ-साथ लाठी चलाने और गोफन कला में भी दक्षता हासिल कर ली। युवावस्था में अंग्रेजों के सहयोगी साहूकारों की प्रताड़ना से तंग आकर वह अपने साथियों के साथ जंगल में कूद गया। टंट्या मामा भील ने आखिरी सांस तक अंग्रेजी सत्ता की ईंट से ईंट बजाने की मुहिम जारी रखी थी।
टंट्या मामा भील पर राजद्रोह का मुकदमा...
एमपी के राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ निवासी योगेश मैथिल ने बताया कि नरसिंहगढ़ में टंट्या मामा भील पर न्यायालय में राजद्रोह का मुकदमा चला, यहां से उन्हें बाइज्जत बरी किया गया। मामा पर यह मुकदमा प्रताप निवास पैलेस वर्तमान तहसीलदार कार्यालय एसडीएम ऑफिस के भवन में चलाया गया था।
जय हिंद
वंदे मातरम