अतीक की हत्या मीडिया ने की और उसी मीडिया ने पुलिस पर कायरता एवं कर्तव्यहीनता का आरोप लगाया। मीडिया के इस कमीनेपन का कारण है भाजपा सरकार की कायरता। जानबूझकर झूठी रिपोर्टिंग करना अभिव्यक्ति की सवतन्त्रता नहीं है, यह बात भाजपा समझने के लिए तैयार नहीं है।
हत्या होते ही पुलिस और सरकार का बयान आ गया था जिसमें पत्रकार को बताया गया कि आप आधी अधूरी क्लिपों के आधार पर कह रहे हैं कि पुलिस डरकर भाग गयी, जबकि पुलिस और सरकार के पास पूरी वीडियो है जिससे सिद्ध होता है कि पुलिस ने जानपर खेलकर हत्यारों को दबोचा।
एक मीडिया कम्पनी का उपकरण हत्यारे के पास कैसे आया? उसी आधार पर उसे अन्दर पँहुचने का अवसर मिला। उस मीडिया कम्पनी ने उपकरण चोरी होने की शिकायत की?
किन पत्रकारों ने झूठा प्रचार किया कि पुलिस डरकर भाग गयी? अब पुलिस ने पूरा वीडियो रिलीज किया है जिससे स्पष्ट है कि अचानक गोलीबारी आरम्भ होने पर एक पुलिसकर्मी चौंककर दो कदम पीछे हटा किन्तु एक सेकण्ड में ही उसी पुलिसकर्मी ने दौड़कर हत्यारे को दबोच लिया। दबोचने पर हत्यारा पुलिसकर्मी को भी हाथ पीछे घुमाकर गोली मार सकता था, किन्तु हत्यारों की संख्या पुलिस से कम थी जिस कारण हत्यारे ने ऐसा साहस नहीं किया और पकड़ा गया। उस पुलिसकर्मी को कर्तव्यपालन और साहस के लिए पुरस्कार मिलना चाहिए, किन्तु मीडिया ने जानबूढकर वीडियो की काट छाँट की और आरम्भ के उस हिस्से को दिखाया जिसमें पुलिसकर्मी दो कदम पीछे हटा, और उसी क्षण उसने दौड़कर हत्यारे को दबोचा इस हिस्से को मीडिया ने हटाकर पुलिस को बदनाम किया।
केवल TRP के लिए मीडिया ऐसा क्यों करेगी? क्या पुलिस पर झूठा आरोप लगाने से ही TRP बढ़ती है? क्या देशद्रोह करने और टुकड़े गैंग का साथ देने से ही TRP बढ़ती है? TRP तो जनता बढ़ाती है। जनता तो देशद्रोही नहीं है। अतः TRP कारण नहीं है। मीडिया इस बात की पड़ताल क्यों नहीं करती कि एक मीडिया घराने ने ही कम्पनी के उपकरण देकर हत्यारे को पुलिस घेरे के अन्दर घुसाया था!
भाजपा नेताओं और सरकार एवं पुलिस को लिखित सन्देश दें कि उस मीडिया घराने पर मुकदमा दर्ज हो। जिन पत्रकारों ने वीडियो की काट छाँट करके झूठी रिपोर्टिंग की उनपर भी मुकदमा दर्ज हो। पत्रकार तो वहाँ उपस्थित थे, सबकुछ देख रहे थे, तब झूठा प्रचार क्यों किया कि पुलिस ने हत्यारों को पकड़ा नहीं बल्कि हत्यारे ही सरेण्डर सरेण्डर चिल्लाते हुए आत्मसमर्पण कर रहे थे! चिल्लाने से पहले ही प्रमुख हत्यारा पकड़ा जा चुका था, तब तो आत्मसमर्पण करना ही था। अब उन हत्यारों के मित्र पत्तलकार भी आत्मसमर्पण कर दें तो ठीक रहेगा। किन्तु करेंगे नहीं।
झूठी रिपोर्टिंग बीबीसी से लेकर जर्मनी, सोवियत सङ्घ, अमरीका, चीन, पाकिस्तान आदि की सरकारी मीडिया करती रहीं हैं। भारत की सरकारी मीडिया अपवाद है, किन्तु निजी चैनलें तो झूठ बकने में गोल्ड मेडलिस्ट हैं, झूठ पकड़ाने पर भी गलती नहीं स्वीकारतीं! अतः दण्ड मिलना चाहिए।
मेरा निजी अनुभव यह है कि जानबूझकर झूठ बकने वाले पत्तलकारों और उनके मालिकों को नियमित रूप से दारू पीने, माँस खाने और अन्य कुकर्म करने का भी पुराना अभ्यास है, जिस कारण अच्छे पत्रकारों का दबाया जाता है।
सारे पत्रकार बुरे नहीं होते, किन्तु बुरे लोगों में एकता रहती है जबकि अच्छे लोग अलग थलग रहते हैं जिस कारण उनकी नहीं चलती। अन्य सभी क्षेत्रों में भी यही स्थिति है। उदाहरणार्थ नेता और अभिनेताओं को ही लें, वहाँ भी ऐसी ही बात है! सोशल मीडिया वीरों में भी यही बात है।
“बुरे लोगों में एकता रहती है जबकि अच्छे लोग अलग थलग रहते हैं”, यह बात W.B. Yeats ने कालचक्र पर अपनी कविता में लिखी थी; सौ वर्ष से भी अधिक हुए। कालचक्र के अन्तिम खण्ड में बुरे लोगों का वर्चस्व रहता है। तभी तो संहार होगा।
"Turning and turning in the widening gyre
The falcon cannot hear the falconer;"
(A gyre is a spiral that expands outward as it goes up, like a Pseudosphere.)