. #शुभ_रात्रि
ईश्वर की ओर से मनुष्य को मिली एक अद्भुत और अनोखी देन बुद्धि है। जिस व्यक्ति में सद्बुद्धि है, वह अपनी और दूसरों की सभी समस्याओं का सहज समाधान निकाल लेता है।
ईश्वर की ओर से मनुष्य को मिली एक अद्भुत और अनोखी देन बुद्धि है। गीता में कहा गया है कि इस संसार में ज्ञान के समान और कुछ पवित्र नहीं है। जिस व्यक्ति में सद्बुद्धि है, वह अपनी और दूसरों की सभी समस्याओं का सहज समाधान निकाल लेता है, लेकिन दुर्बुद्धि से घिरे इंसान का और उसके करीबियों के जीवन का सर्वनाश निश्चित है। किसी व्यक्ति के पास धन का अधिक मात्रा में संग्रह होने पर उसे सौभाग्यशाली नहीं कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि सद्बुद्धि के अभाव में यही पैसा नशे का काम करता है। सद्बुद्धि न होने पर अनावश्यक संपत्ति मनुष्य के किसी काम नहीं आती। दूसरी तरफ कम पैसा होने के बावजूद सद्बुद्धि वाला इंसान अपना जीवन आनंद से बिताता है। मनुष्य के जीवन में तमाम समस्याएं दुर्बुद्धि के कारण ही आती हैं। कहा गया है कि यदि आपके बच्चे सद्बुद्धि वाले हैं तो उनके लिए धन का संचय नहीं करना चाहिए, क्योंकि पैसा के बगैर भी वे अपना जीवन सुखमय बिता सकते हैं।
सद्बुद्धि से बढ़कर इस संसार में और कुछ नहीं है। सद्बुद्धि से मन-मस्तिष्क पर अनुकूल असर पड़ता है। मनुष्य के विचारों में संतुलन और स्थिरता आती है। इसके साथ ही उसके धैर्य, चिंतन-मनन और संकल्प की शक्ति बढ़ती है। जिसकी बुद्धि दोष रहित है वह मनुष्य सदा ही पवित्र और शुभ करता हुआ जीवन में महान आनंद प्राप्त करता है। सद्बुद्धि वाला इंसान कठिन परिस्थितियों से भी बाहर निकल जाता है। सम्राट अशोक ने कहा कि भले ही युद्ध लड़े मैदान में जाते हैं, लेकिन जीते दिमाग से जाते हैं। किसी भी इंसान में सद्बुद्धि उसके द्वारा चीजों को देखने और उन्हें समझने से विकसित होती है। जो व्यक्ति दूसरों में सिर्फ दोष देखता है या फिर दूसरों की निंदा करता रहता है, तो धीरे-धीरे ये बातें उसके अंदर ही प्रवेश कर जाती हैं। तब व्यक्ति स्वयं में दोष खोजने लगता है और अपनी ही निंदा करने लगता है। उसके भीतर नकारात्मकता इस तरह घर कर जाती है कि उसे अपने जीवन में और अपने आसपास कुछ भी अच्छा होता दिखाई नहींदेता है। स्वर्ग-नर्क कहीं और नहीं, बल्कि इसी धरती पर हैं, लेकिन फर्क बस इतना-सा है कि सद्बुद्धि मनुष्य को स्वर्ग का अहसास कराती है और दुर्बुद्धि नर्क का।
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