🚩सनातन के सूर्य आदिगुरु शंकराचार्य प्रकटोत्सव
🚩सनातन के सूर्य जिन्होंने विलुप्त होते धर्म को पुनः स्थापित किया...चारों दिशाओं में मठ, अनेकों अखाड़े, 8 वर्ष की उम्र में चारों वेदों का अध्यन, तीन बार पूरे भारत का भृमण (उस समय के विशाल भारत का) 32 वर्ष की आयु में धर्म का पुनरूत्थान कर समाधि ली।
🚩 जो आदिगुरु शंकराचार्य जी ने 32 वर्ष की उम्र में किया वो अद्वितीय है वो दिव्य है...ऐसे महान व्यक्तित्व को हर सनातनी को अवस्य ही जानना, समझना चाहिए
🚩 भारत की सांस्कृतिक आध्यात्मिक एकता के सूत्रधार, अद्वैत वेदांत दर्शन के प्रवर्तक, सनातन वैदिक धर्म के पुनरूद्धारक भगवान - भाष्यकार भगवदपाद आद्य-जगदगुरू शंकराचार्य जी के प्राकट्य दिवस पर कोटि कोटि नमन!
🕉️ धर्म व संस्कृति की सुरक्षा के लिए चारो दिशाओं में मठो एव विभिन्न अखाड़ो(नागा साधु) का निर्माण करने वाले आदिगुरु शंकराचार्य जी के बारे में सभी सनातन धर्मावलंबी अवश्य जाने।
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🙏 हिंदू कैलेंडर के अनुसार 788 ई में वैशाख माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को आदिगुरू शंकराचार्य जी का जन्म हुआ था। इस बार ये तिथि मंगलवार, 17 मई यानी आज है। इस दिन शंकराचार्य जयंती मनाई जाती है। आदि गुरु शंकराचार्य ने बहुत कम आयु में ही वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिए थे। इसके बाद 820 ई में इन्होंने हिमालय में (केदारनाथ) में समाधि ले ली थी।
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🙏 आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म केरल के कालड़ीगांव में हुआ था। माना जाता है कि भगवान शिव की कृपा से ही आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म हुआ। जब ये तीन वर्ष के थे तब इनके पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद गुरु के आश्रम में इन्हें 8 वर्ष की आयु में वेदों का ज्ञान हो गया। फिर ये भारत यात्रा पर निकले और इन्होंने देश के 4 हिस्सों में 4 पीठों की स्थापना की। कहा जाता है इन्होंने 3 बार पूरे भारत की यात्रा की।
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🙏 4 वेदों से जुड़े 4 पीठ
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🕉️ शंकराचार्य जी ने 4 वेदों और उनसे निकले अन्य शास्त्रों को सुरक्षित रखने के लिए 4 मठ यानी पीठों की स्थापना की।
🕉️ ये चारों पीठ एक-एक वेद से जुड़े हैं। ऋग्वेद से गोवर्धन पुरी मठ यानी जगन्नाथ पुरी, यजुर्वेद से श्रंगेरी जो कि रामेश्वरम् के नाम से जाना जाता है। सामवेद से शारदा मठ, जो कि द्वारिका में है और अथर्ववेद से ज्योतिर्मठ जुड़ा है। ये बद्रीनाथ में है। माना जाता है कि ये आखिरी मठ है और इसकी स्थापना के बाद ही आदि गुरु शंकराचार्य ने समाधि ले ली थी।
🙏 देश में सांस्कृतिक एकता
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♦️ भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता के लिए आदि शंकराचार्य ने विशेष व्यवस्था की थी। उन्होंने उत्तर भारत के हिमालय में स्थित बदरीनाथ धाम में दक्षिण भारत के पुजारी और दक्षिण भारत के मंदिर में उत्तर भारत के पुजारी को रखा। वहीं पूर्वी भारत के मंदिर में पश्चिम के पूजारी और पश्चिम भारत के मंदिर में पूर्वी भारत के पुजारी को रखा था। जिससे भारत चारों दिशाओं में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत हो रूप से एकता के सूत्र में बंध सके।
🙏 देश की रक्षा
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♦️ आदि शंकराचार्य ने दशनामी संन्यासी अखाड़ों को देश की रक्षा के लिए बांटा। इन अखाड़ों के सन्यासियों के नाम के पीछे लगने वाले शब्दों से उनकी पहचान होती है। उनके नाम के पीछे वन, अरण्य, पुरी, भारती, सरस्वती, गिरि, पर्वत, तीर्थ, सागर और आश्रम, ये शब्द लगते हैं। आदि शंकराचार्य ने इनके नाम के अनुसार ही इन्हें अलग-अलग जिम्मेदारियां दी।
🙏 इनमें वन और अरण्य नाम के संन्यासियों को छोटे-बड़े जंगलों में रहकर धर्म और प्रकृति की रक्षा करनी होती है। इन स्थानो से कोई अधर्मी देश में न आ सके, इसका ध्यान भी रखा जाता है।
♦️ पुरी, तीर्थ और आश्रम नाम के सन्यासियों को तीर्थों और प्राचीन मठों की रक्षा करनी होती है।
🙏 भारती और सरस्वती नाम के सन्यासियों का काम देश के इतिहास, आध्यात्म, धर्म ग्रंथों की रक्षा और देश में उच्च स्तर की शिक्षा की व्यवस्था करना है।
गिरि और पर्वत नाम के सन्यासियों को पहाड़, वहां के निवासी, औषधि और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए नियुक्त किया गया।
सागर नाम के संन्यासियों को समुद्र की रक्षा के लिए तैनात किया गया।
👆अनेकों आक्रमणों ने इस व्यवस्था को बहोत चोट पहुँचाई लेकिन आज भी ये व्यवस्था बहोत मजबूत है जो समय समय पर अपना असल रूप दिखाती भी है
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🚩 सनातन के सूर्य, आदि गुरु शंकराचार्य जी के विषय मे विस्तृत जनकारी से भरा व्यख्यान...पं संतोष आचार्य जी द्वारा.
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