उद्धव ठाकरे की शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय लेख में बीजेपी के "मुस्लिम प्रेम" को "पूतना" जैसा बताया गया। मुसलमानों के साथ बीजेपी के व्यवहार की भी आलोचना की गई है. उद्धव गुट की शिवसेना को मुस्लिमों की बड़ी चिंता है, अच्छी बात है लेकिन हिंदुओं की चिंता क्यों नहीं होती ये एक बड़ा प्रश्न है। बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड आदि जगह हिंदुओं के साथ होते व्यहवार पर उद्धव साहब को पीड़ा होती है? क्या उसपर कोई लेख सामना में दिखा?
एक तरह से देखा जाए तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना के मुखपत्र सामना में बीजेपी के लिए लिखी गई यह बातें बीजेपी समर्थकों को बड़ी पसंद आएंगी और उनका मनोबल बढ़ाएगी क्योंकि बीजेपी खुद तो यह सब बातें बताएं कि नहीं और बीजेपी समर्थक कई बार बीजेपी की ऐसी हरकतों से गड़बड़ा जाते हैं और BJP को ही गरियाने लगते हैं। कई समर्थक हो इस बात को समझते हैं वो डिफेंड करते हैं उनके लिए भी ये आर्टिकल अच्छा है, क्योंकि वो अब लोगों को दिखा सकते हैं और बीजेपी की कथित मुस्लिम परस्ती को डिफेंड कर सकते हैं।
हम ये भी नहीं कहते की शिवसेना ने जो कहा है सब उचित है लेकिन बीजेपी समर्थक तो यही चाहते हैं की BJP का मुस्लिम प्रेम वास्तव में पूतना जैसा ही हो।
सामना में और क्या लिखा 👇
मुस्लिम वोटों के लिए है प्रेम
बीजेपी के मुस्लिम नेता, केंद्रीय मंत्री, राज्य मंत्री विभिन्न दरगाहों पर जाएंगे और वहां कव्वाली सुनेंगे. पूरे देश में यह मुहिम चलाई जाएगी. ऐसे में बीजेपी के अल्पसंख्यक विभाग की ओर से ‘सूफी संवाद महाअधिवेशन’ के आयोजन की तैयारी चल रही है. साथ ही बताया कि सूफी दरगाहों पर जाने वाले मुसलमानों को कव्वाली के जरिए ऐसा कहा जाएगा कि मुसलमानों के संदर्भ में बीजेपी के मन में किसी तरह का द्वेष नहीं है. बीजेपी का यह मुस्लिम प्रेम असली न होकर पूतना मौसी वाला ही है. ऐसी आत्मीयता मुस्लिम समाज के प्रति नहीं, बल्कि मुस्लिम वोटों के लिए
लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी कर रही है ऐसा
सामना संपादकीय में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बीजेपी की रणनीति पर कमेंट है. सामना संपादकीय में लिखा गया कि 2024 के लोकसभा चुनाव में अब केवल एक साल ही रह गया है, जिसकी वजह से बीजेपी को मुस्लिम प्रेम की हिचकी आने लगी है. यह हिचकी एक साल तक जारी रहेगी और चुनाव खत्म होते ही रुक जाएगी. एक तरफ हिंदू-मुस्लिम विवाद भड़काकर दंगे कराना और उस पर खुद की राजनीतिक रोटी सेंकना, यही इस टोली का ‘हिंदुत्ववाद’ है. साथ ही कहा कि अब तो इस विवाद में तथाकथित ‘कथावाचकों’ के भड़काऊ भाषण का तेल डालने और धार्मिक दंगों को जोरदार ढंग से भड़काने की योजना अमल में लाई जा रही है.
सामना में शिवसेना ने ममता बनर्जी के बयान का भी सपोर्ट करना चाहा उन्होंने ममता बनर्जी की तरह ही रामनवमी पर हुए हिंसा का जिम्मेदार बीजेपी को ही ठहराया जबकि ममता के बयानों की असलियत कमेटी की रिपोर्ट के बाद सामने आ चुकी है। यानी शिवसेना को भी हिंदुओं के विरुद्ध हुई हिंसा से ज्यादा चिंता बीजेपी के बढ़ते कद से है उसे कोई दिक्कत नहीं कि देश भर में रामनवमी पर जो हिंसा हुई और उसके अनेकों हिंदू शिकार हुए।
खैर बीजेपी समर्थकों को थोड़ा बारीकी से अध्ययन करना होगा और समझना होगा कि आखिर बीजेपी कर क्या रही क्योंकि यदि किसी पार्टी के समर्थक उसे ठीक से ना समझे तो उसके कामों को समझना संभव नहीं रह जाता। बीजेपी को केवल देश के अंदर ही नहीं देश के बाहर भी राजनीति संभालनी होती है। भारत की छवि को कुछ अंदरूनी पार्टियां खराब कर देना चाहती है जिसे संभालने के लिए बीजेपी को कई सारे काम करने पड़ते हैं हो सकता है उसमें से कुछ काम समर्थकों के हिसाब से ना हो और उन्हें पसंद ना भी आएं, लेकिन अब इस वैचारिक युद्ध के युग में बीजेपी समर्थकों को थोड़ी समझदारी तो दिखानी ही होगी।