🪔इसी उपलक्ष में एक मुहिम आम हिंदू जनमानस द्वारा शुरू की गई है " हिंदू नवराज दिव्य दीप उत्सव " जिसमें सभी सनातनियों को अपने घर में अथवा निकटतम मंदिर में नव वर्ष के दिन 11 दीपक प्रज्वलित करने हैं ठीक संध्या 8 बजे।
🪔इस मुहिम में सभी सनातनियों को हिस्सा लेना चाहिए और नव वर्ष की संध्या को हिंदू राष्ट्र के संकल्प के साथ 11 दीपक प्रज्वलित कर जगमग कर देना है।
इस मुहिम को ट्विटर पर भी मजबूती से उठाएं और दीपक प्रज्वलित कर अपनी एक सेल्फी लेकर हिंदू नव वर्ष २०८० लिखकर ट्वीट करें आप चाहें तो @officialteamps को टैग कर सकते हैं
सभी सनातनियों को इस महापर्व को दिव्य और भव्य बनाने की तैयारी शुरू करनी ही चाहिए और सबको सूचित भी करना चाहिए। चैत्र प्रतिपदा "हिंदू नववर्ष" एक अत्यंत महत्वपूर्ण उत्सव है जिसे मनाने के पीछे अनेकों कारण हैं।
विक्रम संवत को हिन्दू नववर्ष इसलिए बोला जाता है क्योंकि यह प्राचीन हिन्दू पंचांग पर आधारित है।
हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा गुड़ी पड़वा से होता है। इस नववर्ष को प्रत्येक राज्य में अलग अलग नाम से पुकारा जाता है परंतु है यह नवसंवत्सर। गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी, चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है।
वैज्ञानिक पद्धति से तैयार किया गया विक्रम संवत कैलेंडर पूर्ण रूप से वैज्ञानिक गणना पर आधारित है जहाँ नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में मनाया जाता है। चैत्र माह में प्रकृति में चारों ओर उत्साह एवं सौंदर्य प्रदर्शित होता है एवं बसंत ऋतु का आगमन होता है। हिन्दू नववर्ष के अवसर पर सम्पूर्ण प्रकृति ही नए साल का स्वागत करने के लिए तैयार प्रतीत होती है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी हिन्दू नववर्ष को अत्यंत पवित्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। विक्रम कैलेंडर की इस धारणा को यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने अपनाया। बाद में भारत के अन्य प्रांतों ने अपने-अपने कैलेंडर इसी के आधार पर विकसित किए।
प्राकृति का नववर्ष : मार्च में प्रकृति और धरती का एक चक्र पूरा होता है। जनवरी में प्रकृति का चक्र पूरा नहीं होता। धरती के अपनी धूरी पर घुमने और धरती के सूर्य का एक चक्कर लगाने लेने के बाद जब दूसरा चक्र प्रारंभ होता है असल में वही नववर्ष होता है। नववर्ष में नए सिरे से प्रकृति में जीवन की शुरुआत होती है। वसंत की बहार आती है। चैत्र माह अंग्रेजी कैलेंडर के मार्च और अप्रैल के मध्य होता है। इसी समस्या पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा कर लेती है, उस वक्त दिन और रात बराबर होते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि इसी दिन से धरती प्राकृतिक नववर्ष प्रारंभ होता है।
सूर्योदस से शुरु होता है नववर्ष प्रारंभ : रात्रि के अंधकार में नववर्ष का स्वागत नहीं होता। नया वर्ष सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार रात 12 बजे ही नववर्ष प्रारंभ मान लिया जाता है जो कि वैज्ञानिक नहीं है। दिन और रात को मिलाकर ही एक दिवस पूर्ण होता है। दिवस का प्रारंभ सूर्योदय से होता है और अगले सूर्योदय तक यह चलता है। सूर्यास्त को दिन और रात का संधिकाल मना जाता है।
सूर्य, चंद्र और नक्षत्र : हिन्दू कैलेंडर सौरमास, नक्षत्रमास, सावन माह और चंद्रमास पर आधारित है। मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क आदि सौरवर्ष के माह हैं। यह 365 दिनों का है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि चंद्रवर्ष के माह हैं। चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है, जो चैत्र माह से शुरू होता है। सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं। तीसरा नक्षत्रमाह होता है। लगभग 27 दिनों का एक नक्षत्रमास होता है। नक्षत्रमास चित्रा नक्षत्र से प्रारंभ होता है। चित्रा नक्षत्र चैत्र मास में प्रारंभ होता है। सावन वर्ष 360 दिनों का होता है। इसमें एक माह की अवधि पूरे तीस दिन की होती है।
क्यों कहते हैं नवसंवत्सर : जैसे बारह माह होते हैं उसी तरह 60 संवत्सर होते हैं। संवत्सर अर्थात बारह महीने का कालविशेष। सूर्यसिद्धान्त अनुसार संवत्सर बृहस्पति ग्रह के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं। 60 संवत्सरों में 20-20-20 के तीन हिस्से हैं जिनको ब्रह्माविंशति (1-20), विष्णुविंशति (21-40) और शिवविंशति (41-60) कहते हैं।
बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि साठ वर्षों में बारह युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में पांच-पांच वत्सर होते हैं। बारह युगों के नाम हैं– प्रजापति, धाता, वृष, व्यय, खर, दुर्मुख, प्लव, पराभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय। प्रत्येक युग के जो पांच वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम संवत्सर है। दूसरा परिवत्सर, तीसरा इद्वत्सर, चौथा अनुवत्सर और पांचवा युगवत्सर है। 12 वर्ष बृहस्पति वर्ष माना गया है। बृहस्पति के उदय और अस्त के क्रम से इस वर्ष की गणना की जाती है। इसमें 60 विभिन्न नामों के 361 दिन के वर्ष माने गए हैं। बृहस्पति के राशि बदलने से इसका आरंभ माना जाता है।
60 संवत्सर : संवत्सर को वर्ष कहते हैं: प्रत्येक वर्ष का अलग नाम होता है। कुल 60 वर्ष होते हैं तो एक चक्र पूरा हो जाता है। इनके नाम इस प्रकार हैं:- प्रभव, विभव, शुक्ल, प्रमोद, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा, धाता, ईश्वर, बहुधान्य, प्रमाथी, विक्रम, वृषप्रजा, चित्रभानु, सुभानु, तारण, पार्थिव, अव्यय, सर्वजीत, सर्वधारी, विरोधी, विकृति, खर, नंदन, विजय, जय, मन्मथ, दुर्मुख, हेमलम्बी, विलम्बी, विकारी, शार्वरी, प्लव, शुभकृत, शोभकृत, क्रोधी, विश्वावसु, पराभव, प्ल्वंग, कीलक, सौम्य, साधारण, विरोधकृत, परिधावी, प्रमादी, आनंद, राक्षस, नल, पिंगल, काल, सिद्धार्थ, रौद्रि, दुर्मति, दुन्दुभी, रूधिरोद्गारी, रक्ताक्षी, क्रोधन और अक्षय।
पांचांग : उक्त सभी कैलेंडर पंचांग पर आधारित है। पंचांग के पांच अंग हैं- 1. तिथि, 2. नक्षत्र, 3. योग, 4. करण, 5. वार (सप्ताह के सात दिनों के नाम)। भारत में प्राचलित श्रीकृष्ण संवत, विक्रम संवत और शक संवत सभी उक्त काल गणना और पंचांग पर ही आधारित है।
हिंदू नववर्ष को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर मनाने के कुछ कारण
पौराणिक कारण- हिन्दू नववर्ष के प्रारम्भ होने के पौराणिक कारणों में विभिन तथ्यों को माना जाता है जिनमे में कुछ कारण निम्न है :-
🔹माना जाता है की इस दिन प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था।
🔹इस दिवस के अवसर पर ही प्रभु राम द्वारा बाली का वध किया गया था।
🔹धर्मराज युधिष्ठर का राज्याभिषेक दिवस भी हिन्दू नववर्ष के दिन माना जाता है।
🔹लंकापति रावण के विजय के अवसर पर इस दिवस अयोध्यावासियों ने अपने घरो पर भगवान राम के सम्मान में विजय पताका फहराई थी।
🔹नवरात्र की शुरुआत भी नववर्ष से मानी जाती है।
ब्रह्मांड निर्माण का दिवस- पौराणिक ग्रंथों के अनुसार नववर्ष के अवसर पर ही ब्रह्मा जी ने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया था। यही कारण है की इस दिवस को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।
सृष्टि निर्माण का दिवस- ब्रह्मा जी द्वारा ब्रह्मांड निर्माण के कुछ समय पश्चात ही इस सुन्दर सृष्टि की रचना की गयी थी। यही कारण है की सृष्टि निर्माण के अवसर को भी नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।