विस्मृत इतिहास :
"घुड़ला पर्व" का ऐतिहासिक सत्य .............
हिन्दुत्व को बचाने के लिये आपके द्वारा इस सत्य से हिन्दुओं को अवगत कराना आवश्यक है, नहीं तो कालांतर में अर्थ का अनर्थ हो सकता है।
मारवाड़ में होली के बाद एक पर्व शुरू होता है, जिसे घुड़ला पर्व कहते हैं। कुँवारी लड़कियाँ अपने सर पर एक मटका उठाकर, उसके अंदर दीपक जलाकर गाँव में घूमती हैं और घर-घर घुड़लो जैसा गीत गाती हैं।
अब यह घुड़ला क्या है ............ ?
😞आज के दौर में कोई नहीं जानता है, लेकिन घुड़ला की पूजा शुरू हो गयी। यह भी ऐसा ही घटिया और घातक षड्यंत्र है जैसा कि अकबर को महान बोल दिया गया।
वास्तव में हुआ ये था कि घुड़ला खान अकबर का मुग़ल सरदार था और अत्याचार और पैशाचिकता में भी अकबर जैसा ही दुष्ट प्रकृति का था। ज़िला नागोर राजस्थान के पीपाड़ गाँव के पास एक गाँव है कोसाणा। उस गाँव में लगभग 200 कुँवारी कन्याएँ गणगोर पर्व की पूजा कर रही थीं। वे व्रत में थीं। उनको मारवाड़ी भाषा में तीजणियाँ कहते हैं।
गाँव के बाहर स्थित तालाब पर पूजन करने के लिये सभी बच्चियाँ गयी हुई थीं। उधर से ही घुडला खान मुगल सरदार अपनी फ़ौज के साथ निकल रहा था। उसकी गंदी नज़र उन बच्चियों पर पड़ी तो उसकी वंशानुगत पैशाचिकता जाग उठी। उसने सभी बच्चियों का बलात्कार के उद्देश्य से अपहरण कर लिया। जिस भी गाँव वाले ने विरोध किया, उसको उसने मौत के घाट उतार दिया।
इसकी सूचना घुड़सवारों ने जोधपुर के राव सातल सिंह जी राठौड़ को दी। राव सातल सिंह जी और उनके घुड़सवारों ने घुड़ला खान का पीछा किया और कुछ समय में ही घुड़ला खान को रोक लिया। घुड़ला खान का चेहरा पीला पड़ गया। उसने सातल सिंह जी की वीरता के बारे में सुन रखा था।
उसने अपने आपको संयत करते हुए कहा, राव तुम मुझे नहीं, दिल्ली के बादशाह अकबर को रोक रहे हो। इसका बुरा परिणाम तुम्हें और जोधपुर को भुगतना पड़ सकता है। राव सातल सिंह बोले, पापी दुष्ट, ये तो बाद की बात है पर अभी तो मैं ही तुझे तेरे इस गंदे काम का बुरा परिणाम भुगता देता हूँ। राजपूतों की तलवारों ने दुष्ट मुग़लों के ख़ून से प्यास बुझाना शुरू कर दिया था। संख्या में अधिक मुग़ल सेना के पाँव उखड़ गये। भागती मुग़ल सेना का पीछा कर सबको समाप्त कर दिया गया। राव सातल ने तलवार के भरपूर वार से घुड़ला खान का सिर धड़ से अलग कर दिया। राव सातल सिंह ने सभी बच्चियों को मुक्त करवा, उनके सतीत्व की रक्षा की।
इस युद्ध में वीर सातल सिंह जी अत्यधिक घाव लगने से वीरगति को प्राप्त हुए। उसी गाँव के तालाब पर सातल सिंह जी का अंतिम संस्कार किया गया। वहाँ स्थित सातल सिंह जी की समाधि उनकी वीरता और त्याग की अमिट गाथा सुना रही है। गाँव वालों ने बच्चियों को उस दुष्ट घुड़ला खान का सिर सौंप दिया। बच्चियों ने घुड़ला खान के सिर को घड़े में रख कर, उस घड़े में जितने घाव घुड़ला खान के शरीर पर हुए, उतने छेद किये और फिर पूरे गाँव में घुमाया और हर घर में रोशनी की गयी ! यह है घुड़ले की वास्तविक कहानी।
हिन्दू , राव सातल सिंह जी को तो भूल गए और पापी दुष्ट घुड़ला खान को पूजने लग गये। अब बताओ कैसे हो हिन्दुओं का उद्धार ?
इतिहास से जुड़ें और सत्य की पूजा करें। सातल सिंह जी को याद करें, घुड़ले खान को जूते मारें ....
जनजागरण हेतु समिति के ट्वीट को रीट्वीट कर सत्य को आगे बढ़ाएं
https://twitter.com/Prashask_Samiti/status/1635551982793654274?t=_vqgAqtKfYCzbZmpG2IO3A&s=19
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