एक इतिहासकार के रूप में रामपाल के दावों की समीक्षा:-
२. तैमुर लंग और कबीर की भेंट
पाखंड गुरू रामपाल अपनी पुस्तक भक्तिबोध के पृष्ठ 84 पर लिखता है कि
जैसे एक रोटी तैमुरलंग ने कविर्देव (कबीर साहब) को दी थी, उसे कबीर साहेब ने सात पीढी का राज्य दे दिया।
समीक्षा:- रामपाल ने कबीरदास को बदनाम करने मे कोई कसर नहीं छोड़ी हैं। कोई भी विवेकी मनुष्य भक्तिबोध को पढ़ेगा तो सोचेगा कि जिस तैमूर लंग ने भारत को लूट कर हजारों निर्दोष भारतीयों को गाजर मूली की तरह काटा , जिस तैमुर लंग से हजारों गाँव उजाड़ दिए, हजारों अबला औरतों की अस्मत उसके सैनिकों ने लूट ली, लाखों भारतवासियों को बंदी बनाकर गुलामों के बाज़ार में बेच दिया।
उसी मतान्ध अत्याचारी मुस्लिम आक्रान्ता तैमुर लंग को कबीर दासने उसे सात पीढी तक राज्य करने का वरदान दिया ?क्या कबीर दास जी मे इतनी बुद्धि नहीं थी कि हजारों निर्दोषों का कत्ल करने वाले तैमूरलंग की सात पीढी का राज्य देना गलत है? तैमूर से ज्यादा रोटियां तो कबीर जी के माता पिता ने दी होंगी और उन भारत वासियों ने दी होगी जिन निरपराधों को तैमुर ने मौत की नींद सुला दिया था। तो फिर कबीर जी ने उन्हे राज्य क्यों नहीं दे दिया?
रामपाल कितना बड़ा जूठा हैं यह इतिहास को देखने से मालूम चलता हैं । तैमूर का जीवनकाल (9 अप्रैल 1336 से 18 फरवरी 1405) है।
कबीर दास जी का जन्म 1398 मे हुआ। तैमूर ने 17 दिसम्बर 1398 को दिल्ली मे मुहम्मद तुगलक से लड़ाई की। न तो कबीर दास 7 साल की आयु तक दिल्ली गए और न ही तैमूर अपने जीवन में कभी बनारस गया था। हमें तो पहले से ही मालूम हैं की रामपाल जूठा हैं पर क्या उसका यह सफ़ेद झूठ उसके अंधे चेलो की समझ में नहीं आता?
३. गुरु नानक और कबीर दास की ज्ञान चर्चा
अपनी पुस्तक अध्यात्मिक ज्ञान गंगा पृष्ठ-45-46 पर पाखंडी रामपाल की एक और हेराफ़ेरी सामने आती हैं।
एक दिन एक जिन्दा फकीर बेई दरिया पर मिले तथा नानक जी से कहा की आप बहुत अच्छे प्रभु भक्त नजर आते हो। कृपा मुझे भी भक्ति मार्ग बताने की कृपा करे। मैं बहुत भटक लिया हूँ। मेरा संशय समाप्त नहीं हो पाया हैं। जिन्दा रूप में कबीर परमेश्वर ने कहा की गुरु किसे बनाऊँ? कोई पूरा गुरु मिल ही नहीं रहा जो मन के संशय समाप्त करके मन को भक्ति में लगा सके।
स्वामी रामानंद जी मेरे गुरु हैं पर उनसे मेरा संशय समाप्त नहीं हो पाया हैं। नानक जी ने कहा मुझे गुरु बनाओ आपका कल्याण निश्चित हैं।
समीक्षा:- कबीर जी का जन्म हुआ सन 1398 में हुआ था जबकि गुरू नानक देव जी का जन्म हुआ 1469 में अर्थात कबीर दास और नानक जी की आयु में करीब 70 साल का अन्तर है। यदि यह भी माना जाए कि कबीर जी को गुरू नानक देव जी 20-30 साल की उम्र में मिले होंगे। तो क्या 20-30 साल के युवक गुरू नानक जी इतने अपरिपक्व थे कि 90-100 साल के वृद्ध कबीर दास को अपना चेला बनने की सलाह दी। वैसे भी यदि ये बेई नदी जालन्धर की काली बेईं है तो कबीर दास जी के जीवन मे जालन्धर जाने का कोई वर्णन नही है।
इसी पृष्ठ पर यह भी लिखा है कि गुरू नानक देव जी सतयुग मे राजा अम्बरीष, त्रेता युग मे राजा जनक (सीता माता जी के पिता और श्रीराम जी के श्वसुर) और द्वापर मे ॠषि व्यास के पुत्र सुखदेव जी थे।
समीक्षा:- अब सबको विचार करना चाहिए कि रामपाल बेसिरपैर की हांकता है और खुद को तत्वदर्शी सन्त बताता है। न तो किसी भी पुस्तक मे ये गप्प है और न ही स्वयं गुरू नानक जी ने कहीं पर ये कहा है कि मै पिछले जन्म मे क्या था। सच तो ये है कि कबीर दास और गुरू नानक देव जी दोनो ने समाज मे फ़ैले हुए अन्धविश्वास के विरूद्ध बिगुल बजाया। अब कबीर के भक्तों की करतूत देखिए। सन्त कबीर जी को रामपाल किस्म के लोगों ने ईश्वर बना दिया।