👉👎ब्रह्मकुमारीज का भांडा फोड़-3👎👹
ब्रह्मकुमारी का भंडाफोड़
✒कार्य व उद्देश्य : 👉ब्रह्माकुमारी संस्था का उद्देश्य सदियों से वैदिक मार्ग पर चलने वाले हिन्दूओं को भटकाना है, हिन्दू-धर्म में भ्रम पैदा कराना है, ताकि हिन्दू अपने ही धर्म से घृणा करने लग जाय। ब्रह्माकुमारी संस्था के माध्यम से धर्मांतरण की भूमिका तैयार की जाती है। यह संस्था सनातन धर्म के शास्त्रों के सिद्धांतों को विकृत ढंग से पेश करनेे वाली पुस्तकें, प्रदर्शनियाँ, सम्मेलन, सार्वजनिक कार्यक्रम आदि द्वारा लोगों का नैतिक, सामाजिक, धार्मिक विकृतीकरण व पतन करने का कार्य करती है।
👉लोगों के विरोध से बचने व अपनी काली करतूतों को छुपाने के लिये दवाईयों का वितरण व नशा-मुक्ति कार्यक्रम आदि किया जाता है
👉लोगों को आकर्षित करने के लिए इनकी अनेक संस्थाओं में से निम्न दो संस्थाओं का प्रचार-प्रसार तेजी से किया जा रहा है।
(1) राजयोग शिक्षा एवं शोध प्रतिष्ठान
(2) वर्ल्ड रिन्युवल स्प्रीच्युअल
✒प्रचार-प्रसार : इनके कार्यक्रम हमेशा चलते रहते हैं, परन्तु सुबह व शाम को इनके अड्डों पर भाषण (मुरली) हुआ करते हैं। ब्रह्माकुमारियां अड्डे के आसपास रहने वाली स्त्रियों को प्रभावित कर अपनी शिष्या बनाती हैं, सनातन शास्त्रों के विरुद्ध भाषण सुनाने उनके घरों पर भी जाती हैं। कहने को तो इनके सम्प्रदाय में पुरुष भी भर्ती होते हैं जिन्हें 'ब्रह्माकुमार' कहा जाता है, परन्तुु ज्यादातर ये औरतों व नवयुवतियों को ही अपनी संस्था में रखते हैं जिन्हें 'ब्रह्माकुमारी' कहते हैं ।
✒ ईसाइयतका नया रुप- ब्रह्माकुमारी:
👉आजादी से पूर्व ईसाईयों की एक बड़ी टीम, जिसमें मैक्समूलर (सन् 1823-1900), अर्थर एेंथोनी मैक्डोनल (सन् 1854-1930), मौनियर विलियम्स, जोन्स, वारेन हेस्टिंग्ज, वैब, विल्सन, विंटर्निट्स, मैकाले, मिल, फ्लीट बुहलर आदि शामिल थे, इन लोगों ने भारत के इतिहास से छेड़छाड़, सनातन धर्म के शास्त्रों का विकृतीकरण, हिन्दू-धर्म के प्रति अनास्था पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इसी परंपरा को ब्रह्माकुमारी संस्था आगे बढ़ा रही है।
👉ब्रह्माकुमारी संस्था के साहित्य विभाग की पूरी टीम द्वारा सनातन धर्म को विकृत करने वाले 100 से अधिक साहित्य, जैसे गीता का सत्य-सार, ज्ञान-माला, ज्ञान-निधि, भारत के त्यौहार आदि बनाये व छापे गये। ब्रह्माकुमारी संस्था को ईसाईयत का नया रुप दिया गया है, जो पश्चिम से बिल्कुल भिन्न है, लेकिन मूल रूप में वही है। यह संस्था भारत के खिलाफ बहुत-बड़े गुप्त मिशन पर काम कर रही है। 25 अगस्त 1856 को मैक्समूलर द्वारा बुनसन को लिखे पत्र से ईसाईयत के नये रूप की स्वयंसिद्धि हो जाती है:
👉''भारत में जो कुछ भी विचार जन्म लेता है शीघ्र ही वह सारे एशिया में फैल जाता है और कहीं भी दूसरी जगह ईसाईयत की महान शक्ति अधिक शान से नहीं समझी जा सकती, जितनी कि दुनिया इसे (ईसाईयत को) दुबारा उसी भूमी पर पनपती देखे, पर पश्चिम से बिल्कुल भिन्न प्रकार से, लेकिन फिर भी मूल रूप वही हो।''
✒सालों से देश-विदेश में लोग ईसाईयत को छोड़ रहे हैं, चर्च बिक रहे हेैं।
👉ब्रह्माकुमारी संस्था के नाम पर हर जगह अपनी नई जमात खड़ी करने व हिन्दुत्व को मिटाने का यह गुप्त मिशन चलाया जा रहा है, जिसके लिए देश-विदेशों से धन लगाया जा रहा है।
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