नवजोत सिंह सिद्धू को याद कीजिए। हज़ारों लोगों की भीड़ के बीच, एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने सोनिया गांधी के पैर छुए थे। पूरी दुनिया ने तस्वीर देखी। और उसी पार्टी में उनकी पत्नी, डॉ. नवजोत कौर सिद्धू ने जैसे ही भ्रष्टाचार पर ज़रा सी उंगली उठाई, उसी पल उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
उन्होंने बस इतना कहा था कि—कांग्रेस में वही मुख्यमंत्री बन सकता है जिसके पास “बहुत मोटा पैसा ऊपर तक पहुँचाने का दम हो।”। उनका सीधा इशारा था कि बड़े पद पैसों की ताक़त से तय होते हैं, न कि काबिलियत से।
बस, इतना कहना ही काफी था। तुरंत अनुशासन-भंग का नोटिस, सस्पेंशन, और राजनीतिक करियर पर सीधा वार।
फिर बाद में कहा गया कि बयान तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। लेकिन सवाल तो फिर भी वही है—अगर बात गलत थी तो इतनी जल्दबाज़ी क्यों? और अगर बात सही थी… तो प्रतिक्रिया और भी समझ में आती है।
डॉ. सिद्धू का यह भी कहना था कि उनके पति राजनीति में तभी लौटेंगे जब उन्हें मुख्यमंत्री पद का भरोसा दिया जाए। यानी कांग्रेस में आने-जाने के फैसले भी पद और पैसों की डील पर टिके थे — यह बात उन्होंने खुद स्वीकार की। यह कोई आरोप नहीं, उन्हीं की बातों का सार है।
यह विडंबना ही है कि आज भी कुछ लोग ऊँची आवाज़ में कहते हैं कि “मोदी सरकार बोलने की आज़ादी छीन रही है।”
अरे भाई, जहाँ अपनी पार्टी में दो सच की लाइन बोलने से नेता बाहर फेंक दिया जाता है, वह किस नैतिक आधार पर दूसरों पर सवाल उठा सकता है?
कांग्रेस में यह कोई नई घटना नहीं है।
यहाँ जो भी नेता पार्टी के बंद कमरों की सच्चाई बाहर लेकर आता है, उसका वही हश्र होता है—निलंबन या किनारे कर देना।
सालों से इस पार्टी का ढांचा ही ऐसा रहा है कि भ्रष्टाचार सिर्फ़ रुक-रुक कर होने वाली गलती नहीं, बल्कि व्यवस्था की रीढ़ बन चुका है। मनरेगा जैसी योजनाओं में लाखों फर्जी खातों का खेल किसी से छुपा नहीं। यह पैसा जनता के लिए नहीं, बल्कि “ऊपर” तक पहुँचने वाली व्यवस्था के लिए बनाया गया था।
अंग्रेज़ों ने भारत से 45 ट्रिलियन डॉलर लूटे थे।
लेकिन यह सोचकर डर लगता है कि स्वतंत्र भारत में पिछले 75 सालों में कितनी लूट हुई होगी—जिसका हिसाब कोई किताब, कोई रिपोर्ट नहीं दे सकती।
नेहरू और बाद के गांधी परिवार ने देश को जिस राजनीति की परंपरा में धकेला, वह राजशाही की तरह चलती रही—जनता नाम की चीज़ सिर्फ़ चुनाव में याद आई।
लेकिन समय सबका हिसाब लेता है।
अंग्रेज़ भी अपनी ताकत के मुकाम से गिर पड़े।
और जिन लोगों ने भारत को अपनी जागीर समझ लिया था, उनका अंत भी उसी रास्ते पर है।
आज का भारत जाग चुका है।
लोग पहले की तरह चुप नहीं रहते।
सवाल पूछते हैं, जवाब माँगते हैं और सच्चाई छिपाना आसान नहीं रह गया।
यही वजह है कि सच्चाई जितनी चाहे दबाई जाए, लेकिन एक न एक दिन सबको दिख ही जाती है।

