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एक गांव में एक अंधा आदमी और उसकी पत्नी रहा करते थे। अब वो गांव था और लाइट वगैरह की ज्यादा व्यवस्था नहीं थी तो लालटेन की रोशनी में भोजन बनाया जाता था। लेकिन, एक छोटी सी समस्या यह थी कि जब उसकी पत्नी भोजन बनाती थी तो भोजन बनाते समय हमेशा एक बिल्ली रसोई घर में घुस आती थी और परेशान करती थी, जिसे बार-बार भगाना पड़ता था।
इस समस्या से निपटने के लिए पत्नी ने एक उपाय निकाला और उसने अपने पति को समझाया कि चूंकि, अंधा होने की वजह से वो बिल्ली को देख पाने अथवा उसे भगा पाने में असमर्थ था इसीलिए, जब वो रसोई घर में खाना बनाए तो उसका पति हांथ में एक डंडा लेकर रसोई घर के पास बैठे, और वो उस डंडे को जमीन को पटक कर "ठक-ठक" की आवाज निकालते रहे, जिससे कि बिल्ली रसोई घर में प्रवेश ना करने पाए।
समझाने के बाद उसका पति ऐसा ही करने लगा और उस ठक-ठक की आवाज से डर कर बिल्ली का रसोई घर में आना बंद हो गया।
इस दौरान घर के जो छोटे बच्चे थे वे बड़े हो गए और नए बच्चों ने भी जन्म लिया। तो घर के बच्चों ने जन्म से ही देखा कि जब घर में मम्मी भोजन बनाती है तो पिता जी रसोई घर के पास बैठ कर डंडे से "ठक ठक" की आवाज निकालते हैं। फिर, जब उन बच्चों की भी शादी हुई तो उन्होंने भी इस परंपरा को जारी रखा और जब उनकी पत्नियाँ भोजन बनाती थी तो वो रसोई घर के पास बैठकर किसी डंडे से ठक-ठक की आवाज निकालते थे।
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कालांतर में, उनके भी बच्चे हुए और उनमें से कुछ लोग अमेरिका, फ्रांस आदि में जाकर बस गए और व्यस्तता की वजह से भोजन बनाते समय उनके लिए रसोई घर के पास बैठकर ठक-ठक का आवाज निकालना संभव नहीं रह गया। इसीलिए उन्होंने एक ऐसी मशीन बनवा ली जो स्विच ऑन करने पर डंडे से ठक-ठक की आवाज निकालते थे। और घर में भोजन बनते समय वे इस मशीन को ऑन कर दिया करते थे ताकि उनकी पारिवारिक परंपरा कायम रह सके।
कहने का मतलब कि एक सामान्य सी घटना अनजाने में ही पारिवारिक परम्परा बन गई और अगर समय रहते इसकी वैज्ञानिकता को समझा गया होता तो शायद ऐसी नौबत कभी नहीं आती।
कुछ ऐसा ही हमारे त्यौहार धनतेरस के साथ है आज हम सनातन हिन्दुओं के धनतेरस का त्योहार है। और भले ही धनतेरस दीपावली के दो दिन पूर्व मनाया जाता है तथा धनतेरस के नाम में "धन" शब्द जुड़ा हुआ है। लेकिन धनतेरस का धन की देवी माँ लक्ष्मी अथवा कुबेर से कोई संबंध नहीं है। बल्कि धनतेरस का ये महापर्व आरोग्य के देवता "धनवंतरी" की याद में मनाया जाता है।
तथा धनतेरस शब्द में "धन" माता लक्ष्मी के कारण नहीं बल्कि "धनवंतरी" से लिया गया है। और चूंकि ये महापर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के "त्रयोदशी" को मनाया जाता है इसीलिए इसमें "तेरस" शब्द आता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान आज ही के दिन आरोग्य के देवता "धनवंतरी" हांथ में अमृत भरे कलश लेकर प्रकट हुए थे। उन्हीं के याद में आज हम हिन्दू सनातनधर्मी धनतेरस का महापर्व मनाते हैं। और आज के दिन एक न एक पात्र (बर्तन) खरीदने की परंपरा है। तथा वो पात्र इस आस्था और विश्वास के साथ खरीदा जाता है कि हमारे इस पात्र में भी अमृत की कुछ बूंदे मौजूद रहेंगी। और हम तथा हमारे परिवार आरोग्य के देवता भगवान धनवंतरी की कृपा से हमेशा स्वस्थ रहेंगे। क्योंकि सनातन हिन्दू संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान हमेशा ही धन से ऊपर माना जाता रहा है।
यह कहावत आज भी प्रचलित है कि…
_पहला सुख निरोगी काया,_
_दूजा सुख घर में माया॥_
इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है जो भारतीय संस्कृति के हिसाब से बिल्कुल अनुकूल है। लेकिन उसी रसोई घर के पास बैठ कर डंडे से ठक-ठक की आवाज निकालने के तौर पर आजकल अनजाने में लोग धनतेरस के उपलक्ष्य में कार, बाइक्स, स्टील की आलमारी वगैरह बहुतायत में खरीदते हैं।
क्योंकि हम सब बचपन से ही अपने घर वालों को आज धनतेरस के दिन खरीददारी करते देखते आ रहे हैं तो हम लोग भी "कुछ न कुछ" खरीदना अपना धर्म समझते हैं। और अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार कार से लेकर बाइक, स्कूटी, आलमारी और काफी चीजें खरीद लेते हैं।
लेकिन शास्त्रानुसार धनतेरस के दिन लोहे का सामान, स्टील के बर्तन, प्लास्टिक की वस्तुएं एवं कोई धारदार सामान खरीदने से परहेज करना चाहिए। क्योंकि लोहे का संबंध शनि ग्रह से माना जाता है और स्टील को राहु ग्रह का प्रतीक माना जाता है।
उसी तरह प्लास्टिक, चीनी मिट्टी एवं कांच के सामान को भी राहु का प्रतीक मानकर उसे खरीदे जाने से वर्जित किया गया है।
इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण ये हो सकता है — कि लोहा, स्टील, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी आदि (खासकर इन मेटल्स के बर्तन/प्लेट्स) स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। साथ ही धारदार चीज से कोई क्षति भी हो सकती है। इसीलिए इन्हें खरीदने को वर्जित किया गया होगा क्योंकि जब खरीदेंगे नहीं तो ऐसी चीजों का प्रयोग भी नहीं करेंगे और हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।
खैर आज धनतेरस के दिन सोना, चांदी, तांबे, कांसे और पीतल के बर्तन खरीदने शुभ माने गए हैं। और इसका भी वही कारण मुझे समझ आता है कि जहाँ सोना और चाँदी हमारे लिए एक रिजर्व धन के रूप में प्रयोग होता है। वहीं तांबे, कांसे और पीतल के बर्तन में भोजन करना वैज्ञानिक दृष्टि से स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।
और ये तो सामान्य समझ की बात है कि हम जो बर्तन खरीदेंगे वही तो प्रयोग करेंगे। इसके साथ ही साथ आज झाडू और भगवान लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा भी खरीदना शुभ माना जाता है। झाडू इसीलिए शुभ माना जाता है क्योंकि साफ-सफाई तो झाडू से ही होनी है। और झाडू साफ-सफाई के बिना तो अच्छे स्वास्थ्य की कल्पना ही नहीं की जा सकती।
वहीं प्रतिमा खरीदने के पीछे का उद्देश्य ये होगा — कि घर की साफ सफाई धनतेरस से पहले ही पूरी कर लें तभी तो खरीदी गई प्रतिमा को उचित स्थान पर रख पाएंगे। साथ ही धनतेरस को ही प्रतिमा खरीद लेने से दीपावली के दिन गहमा-गहमी से भी बचा जा सकता है।
खैर कारण जो भी हो लेकिन सभी का लक्ष्य एक ही है कि लोगों को जागरूक करना एवं उन्हें अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रेरित करना। तथा वैसे काम/खरीदारी से परहेज करना जिनसे उनके स्वास्थ्य के प्रभावित होने की आशंका हो।
इसीलिए परंपरा का पालन अवश्य करना चाहिए लेकिन साथ ही यह भी बेहद जरूरी है कि हम ये जानें कि आखिर ये परम्परा है क्यों और उसका क्या वैज्ञानिक कारण है।
खैर ज्ञान और वैज्ञानिकता से इतर आज सभी सनातनी हिन्दू मित्रों को हमारे महापर्व धनतेरस की ढेरों सारी शुभकामनाएँ। भगवान धनवंतरी आपको एवं आपके परिवार को हमेशा स्वस्थ एवं प्रसन्नचित्त रखें।
जय देव धनवंतरी 🙏
✍️ साभार
🔏 लेखक : पंकज सनातनी