भारत में जो "जागरूक एवं राष्ट्रवादी" जनता है, वह यह अच्छी तरह से समझती है कि वर्तमान समय में "जातिवाद" को "राजनीतिक मुद्दा" अधिक बनाया जा रहा है।
भारत में आज दो विचार चल रहे है... जोगेंद्रनाथ मंडल जैसे कट्टरपंथी अलगावादी राष्ट्रद्रोही गद्दार (अधर्म) VS भीम जी जैसे उदारवादी एवं प्रखर राष्ट्रवादी (धर्म).. इसके पीछे का कारण क्या है ???
राजनीतिक मुद्दा" भी सिर्फ जनता को "उकसाने भड़काने लड़वाने" के लिए बनाया जा रहा है ताकि हिंदुओं को "DIVIDE, RULE & LOOT (बांटो, जंगलराज करके लूटपाट करो)" करके "सत्ता पैसा पॉवर" प्राप्त किया जा सके।
"जातिवाद" का मुद्दा भी भारत में सिर्फ तब तक ही है, जब तक हिंदु "बहुसंख्यक" है... आज "नापाक अफगान बंग्लादेश" में कोई जातिय राजनीति नहीं होती जबकि 1947 तक यह सब भारत का ही अभिन्न अंग थे, वहां कोई जाति का ठेकेदार नहीं है, अल्पसंख्यक बनते ही सब हिंदु बन जाते है, तब कोई "जातीय आरक्षण" के "पक्ष - विपक्ष" की बात नहीं होती बल्कि सब अपने परिवार/ प्रियजनों के प्राणों के "संरक्षण".की मांग ही करते है... सिर्फ जीने दो, यही एकमात्र मांग होती है.. परंतु वह कभी पूरी नहीं होती...
उदाहरण : कसाई खाने में बकरा मुर्गी कभी कसाई से चारा दाने की मांग नहीं करते, बल्कि सिर्फ उनके प्राण मत लेने की मांग करता है, परंतु कसाई को तो सिर्फ मांस "खाना एवं बेचना" ही आता है। ऐसे ही अल्पसंख्यक होते ही कश्मीर नापाक बंगलादेश अफगान जैसे हालात हो जायेगे, तब हिंदुओं में "एकजुटता एवं भाईचारा" भी आ जाएगी, परंतु अब पछताए होत जब चिड़िया चुग गई खेत।
हिंदुओं द्वारा अल्संख्यक होकर एकजुट होने का कोई लाभ नहीं है क्योंकि अधिक से अधिक तब इजरायल की तरह कोई भूमि का छोटा टुकड़ा लेकर अपने अस्तित्व के लिए आजीवन लड़ते मरते रहोगे जबकि अगर अभी एकजुट हो जाओगे तो अखंड भारत का सपना भी पूर्ण कर सकते हो..
आज जाति के 99.99% स्वयंघोषित ठेकेदार तो "सामाजिक स्तर" पर जातिवाद को जड़ से समाप्त करने के लिए "राजनीतिक समाजिक धार्मिक" स्तर पर प्रयास बिल्कुल भी नहीं कर रहे है। वह सिर्फ ठेकेदार बन कर अपनी अपनी जाति/वर्ग की जनता को दूसरी जाति/वर्ग के खिलाफ "उकसाने भड़काने लड़वाने" का ही कुकर्म कर रहे है।
जबकि वेदों शास्त्रों पुराणों के अनुसार तो पृथ्वी पर समस्त मानव जाति (समस्त मानव सभ्यता) ही ब्राह्मणों (सप्त ऋषियों) की संतान है। हम सबके सबसे पहले पूर्वज तो "सप्तऋषि" ( सात ब्राह्मण) ही थे। हम सब ही ब्राह्मणों की संतान है, फिर जातिवाद का मतभेद मनभेद क्यूं ???
"ब्राह्मण" शब्द संस्कृत के "ब्राह्मणम्" से आया है, जिसका अर्थ है "प्रार्थना" या "सार्वभौमिक आत्मा"। यास्क मुनि के निरुक्त के अनुसार, ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म को जानता है, इसलिए इसका अर्थ "ईश्वर का ज्ञाता" है। यानि हम सबके सबसे पहले पूर्वज तो भागवत दर्शन प्राप्त "ऋषि मुनि संत महात्मा" रूपी सात "सदगुरु भगवान" ही थे...
उदाहरण : जैसे आज अधिकत एक ही परिवार में पैदा हुए "भाई- भाई, भाई -बहन" की आपस में नहीं बनती। एक भाई अमीर है, दूसरा गरीब है, अमीर भाई बहन - अपने गरीब भाई बहन की मदद नहीं करते, ऊपर से आपसी प्रॉपर्टी विवाद में लड़ाई झगड़ होते रहे है। समय काल में ऐसे ही इस धरती में "मानव सभ्यता" के साथ भी हुआ है। समस्त मानव जाति ही "सप्त ऋषियों" (ब्राह्मणों) की संतान है, परंतु अपनी खुदगर्जियों (Selfish & Foolish नकारात्मक मानसिकता) की वजह से हम में "जागरूकता, एकजुटता, सद्भावना, प्रेम, भाईचारा" बिल्कुल नहीं है।
जब सब ही ब्राह्मणों की संतान है परंतु हमारे आचार विचार जीवनशैली भिन्न भिन्न क्यूं है ???
इन तीन गुणों ( सात्विक, राजसिक, तामसिक) से ही यह सृष्टि बनी हुई है, सबमें यह तीन गुण होते हैं परंतु सबमें किसी एक गुण की प्रधानता होती है, जो व्यक्ति का वैसे ही "जीवन आचार विचार सोच कर्म" बना देती है।
देवताओं/समाजसेवियों/मानवतावादियों/उदारवादियों में "सात्विक जीवनशैली" अधिक होती है।
"दानवों दैत्यों असुरों राक्षसों दुष्टों हिसंक उपद्रवियों अपराधियों आतंकियों जिहादियों नक्सलियों कट्टरपंथी अलगावादियो आदि" विभाजनकारी सोच वालो में "तामसिक" जीवनशैली अधिक होती है।
औसत मानवों में "राजसिक जीवनशैली" अधिकतर होती है, इनको संसार एवं संसार के भोग विलास पैसा सुख सुविधाएं अधिक अधिक प्रिय लगती है...
परंतु प्रभु प्राप्ति/भक्ति के लिए मानवों को "सात्विक जीवनशैली" से ही लाभ मिलता है क्योंकि सात्विक जीवनशैली से ही "मन पर नियंत्रण" करना संभव है...
"वर्ण व्यवस्था" एवं "जन्म आधारित जातिय व्यवस्था" , दोनो में बहुत अंतर है...
वेद पुराण शास्त्रों में "वर्ण व्यवस्था" (कर्म गुण कौशलता योग्यता) ही "समाजिक व्यवस्था" का आधार होती है, इनमें चार प्रमुख विभाग है। 1) ब्राह्मण - ज्ञान/ आध्यात्मिक भौतिक चिकित्सा आदि किसी भी क्षेत्र में प्राचीन ऋषि मुनि साधु से लेकर एवं वर्तमान के वैज्ञानिक शोधकर्ता बुद्धिजीवी {ज्ञान के दो विभाग : भगवान की प्राप्ति / आध्यात्मिक एवं भगवान की रचना : सृष्टि / भौतिक} , 2) क्षत्रिय - राष्ट्र, समाज एवं जनता की सुरक्षा / सेना पुलिस संगठन, 3) वैश्य - अर्थव्यवस्था व्यापार रोजगार सृजन/ व्यापारी उद्योगपति, 4) शूद्र -कर्मचारी)...
सब में ही यह चार गुण ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र) होते है, परंतु जो गुण प्रधान होता है, वही रोजगार नौकरी पेशा या जीवन यापन का साधन बन जाता है..
वेद पुराण शास्त्रों में चारों वर्णों के बारे में यह लिखा है कि ब्राह्मण तो भगवान का मुंह (ज्ञान) है, क्षत्रीय तो भगवान की बाजू (शक्ति) है, वैश्य तो भगवान का पेट है (पालन), शुद्र तो भगवान के पैर है (सेवा/कर्म)... "चारों वर्ण" ही भगवान के ही अभिन्न अंग है, इसलिए "चारों वर्ण" ही एक समान पवित्र है, परंतु सबकी उपयोगिता/कार्य क्षेत्र अलग अलग है.. एक के बिना भी इस संसार/समाज का अस्तित्व ही सम्भव नहीं है..
वर्तमान की शिक्षा व्यवस्था की तरह ही प्राचीन काल में भी भारत की गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था में भी सभी विद्यार्थी अपने अपने "गुणों कौशल इच्छा योग्यता" अनुसार ही अपनी अपनी नौकरी पेशा रोजगार करते थे...
प्राचीन काल एवं वर्तमा में भी जो भी सच्चा गुरु निष्ट व्यक्ति (किसी भी वर्ण क्षेत्र जाति आदि) जो "आध्यात्मिक क्षेत्र" (भगवत प्राप्ति) में उन्नति चाहता था एवं है, उसको उसके गुरु का ही "गोत्र" मिल जाता था एवं है क्योंकि आध्यात्मिक "गुरु दीक्षा" होने के बाद वह उस "गुरु, गुरुकुल, संगठन, संस्था, पंथ" से ही जुड़ जाता था एवं है, अब गुरु ही उसके "माता पिता" समान हो जाते थे एवं है, सभी अन्य दीक्षित विद्यार्थी भी "गुरु भाई बहन" हो जाते थे एवं है..
आज भी अधिकतर (90%) "डॉक्टर (पुरुष) - डॉक्टर (महिला)/ डॉक्टरी परिवार" में विवाह करता है, ऐसे ही सरकारी कर्मचारी, IT SECTOR कर्मचारी, निजी क्षेत्र कर्मचारी, कलाकार (फिल्म टीवी सीरियल इंडस्ट्री) आदि अनादि सब अपने अपने क्षेत्र/ नौकरी पेशा रोजगार में ही विवाह करते है, क्योंकि "आपसी तालमेल समझ" बेहतर होती है.. यही संपूर्व विश्व में आज भी अधिकतर होता है.. प्रेम विवाह या अन्य पारिवारिक कारणों से विवाह भी होते है... परंतु अधिकतर यही होता है... अब क्या यह जातिवाद या भेदभाव है... नहीं, बिल्कुल भी नहीं, यह बस एक सामाजिक व्यवस्था है, जिसमें नए युवा दंपती का जीवन बहुत ही सहज हो जाता है.....
हजारों वर्ष की अरबी आक्रमणों, मुगलों, अंग्रेजो के जंगलराज में गुरुकुल समाप्त हो गए, गुरुओं को मिटा दिया गया, हमारे पुराणों शास्त्रों को जला दिया गया। अब जो माता पिता स्वयं जीवन यापन को जानते है, वही अपने बच्चे को सिखाते.. ऐसे ही समाज में धीरे धीरे "जन्म आधारित जातिय व्यवस्था" का जन्म हुआ.. मतलब जन्म लेते ही व्यक्ति के नौकरी पेशा का चयन हो जाता था... परंतु दुर्भाग्य एवं विडम्बना यह है कि हम इस ऐतिहासिक अपराध (षडयंत्र) को समझ नहीं पा रहे... आज भी कुछ "जाति का अहंकार या अन्य जाति के प्रति हीन" भाव रखते है.. जो पूर्ण रूप से गलत है...
"जन्म आधारित जातिय व्यवस्था" तो चंद्रगुप्त साम्राज्य एवं अशोका साम्राज्य तक में नहीं थी.. चंद्रगुप्त जी स्वयं OBC वर्ग से थे परंतु चाणक्य जी ने उनको उनकी कुशलता एवं योग्यता को निखारा एवं राष्ट्र की सेवा का मोक्का दिया..
आज वर्तमान में संघ ही चाणक्य का रोल निभा रहा है, मोदी जी जैसे असंख्य चंद्रगुप्त को तैयार कर रहा है, जो मां भारती की निस्वार्थ भाव से सेवा करे...
डॉक्टर के घर जन्म लेने पर उनके बच्चों के भी डॉक्टर बनने की प्रबल संभावना जरूर होती है, परंतु जरूरी नहीं, वह बड़े हो कर डॉक्टर ही बने.. ऐसे ही हर परिवार में ही होता है... इसलिए जन्म से कोई भी "ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र" नहीं होता परंतु सिर्फ अपने "कर्मों गुणों योग्यता, कौशलता" से ही कोई कुछ होता है...
हर "वर्ग जाति पंथ मजहब स्थान" में अच्छे बुरे लोग होते है।
संख्या का अंतर ही होता है, कही ज्यादा अधिक अच्छे होते है, कही ज्यादा अधिक बुरे होते है.. जैसे नापाक में अधिक बुरे लोग ही है, भारत में अधिकतर अच्छे लोग ही है..
भारत एवं संपूर्व विश्व में दो तरह की सोच ही होती है...
राष्ट्रद्रोही कट्टरपंथी दानवतावादी खुदगर्ज VS राष्ट्रवादी उदारवादी मानवतावादी समाजसेवी...
जोगेंद्रनाथ मंडल VS प्रखर राष्ट्रवादी भीम जी.. (एक ही वर्ग...).*
जिन्ना VS अब्दुल कलाम जी.. (एक ही अरबी मजहब..)
लहरू पप्पू पिंकी VS वीर सावरकर जी...(एक ही जाति / ब्राह्मण...)
परम आदरणीय प्रखर राष्ट्रवादी बाबासाहेब भीम जी के खिलाफ कुछ लोग अभी भी पूर्ण सत्य नहीं जानते है..
भीम जी ने 370 का विरोध किया था भीम जी ने गांधी का विरोध किया था
भीम जी का विरोध तो लहरू ने भी किया था, ऊपर से इनको चुनाव में हरवा कर राजनीतिक रूप से कमजोर किया था,..
लहरू ने तो वीर सावरकर जी, भगत सिंह जी, बोस जी, पटेल जी, संघ आदि अनादि सब राष्ट्रवादियों विरोध भी किया था। मतलब लहरू जिसका विरोध करेगा, वह प्रखर राष्ट्रवादी ही होगा, यह काफी है भीम जी को समझने के लिए...
SC OBC वर्ग द्वारा अन्य मजहब ( अरबी या मिजरी) में धर्मांतरण करने पर "जातीय आरक्षण" की सुविधा समाप्त करने का प्रावधान भी तो प्रखर राष्ट्रवादी भीम साहेब जी ने ही संविधान में लिखा था...
इसी वजह से 1947 से अब तक 70% हिंदुओं ने अन्य पंथ मजहब में धर्मांतरण नहीं किया वर्ना सिर्फ 1947 के बाद अगले 25 वर्षों में ही 90% भारत ने "मुलजिम या मिजरी" द्वारा दिए गए प्रलोभनों (पैसा, मुफ्त चावल रोटी, मुफ्त अंग्रेजी शिक्षा, मुफ्त चिकित्सा आदि) की वजह से धर्मांतरण कर जाना था क्योंकि भीम जी जानते थे कि हजारों वर्ष तक भारत ही "मुगलों अंग्रेजो" का गुलाम रहा है.. इसलिए समाज में जो भी सामाजिक कुरीतिया होती है, वह शासकों द्वारा ही "मिटाई या बढ़ाई" जाती है।
अच्छा शासक (धर्मात्मा देवता जैसे राम राज्य, अशोका राज्य..) तो समाज में बुराई को मिटाएगा...
बुरा शासक (दैत्य राक्षस आसुरी जैसे मुगल अंग्रेज) समाज में बुराई को बढ़ाएंगा...
"मुगलों अंग्रेजो" ने समाज में अधिकतर समय "जातिवाद भेदभाव छुआछूत अंधविश्वास" को बढ़ावा ही दिया था.. पंखड़ियों धूर्तो कालनेमी को बढ़ावा दिया, सच्चे गुरुओं को खत्म कर किया...
अरबी आक्रांताओं एवं मुगलों ने तो नरसंहार बलात्कार हिंसा महालूट के महापाप कर रखे थे...
अंग्रेज तो भारतीयों को कत्ता ही समझते थे.. Indians & Dogs are not allowed.. भारत को लूट कर कंगाल बना दिया था....आज तक भारत उस महालूट से उभर नहीं पाया है...
वैसे भी जनता तो शासक का ही अनुकरण करती है। धर्मांतरण करने के बाद जनता की सोच धीरे धीरे कैसे बदल जाती है...
उदाहरण : जैसे Zoo में रहने वाले जंगली जानवरों की अगली पीढ़ियों के साथ होता है, जो जंगल से जबरन लाए गए, वह जानवर तो बहुत दुःखी थे परंतु जो अगली पीढ़ियां उस Zoo में ही पैदा हुई, उनके लिए मानव कर्मचारी ही उनके "मालिक/ राजा /रक्षक/ भगवान" होते है.. नई पीढ़ी को आजादी का मतलब ही नहीं मालूम, वह पूरी जिंदगी उस पिंजरे में ही घुट घुट कर मर जाते है.. ऐसे ही धर्मांतरण होने के बाद जो अगली नई पीढ़ी आती है, वह बिल्कुल अपने पूर्वजों से अलग हो जाती है...
भीम जी की लड़ाई तो समाजिक बुराइयों भेदभाव जातिवाद अंधविश्वास से थी, किसी जाति या वर्ग विशेष के खिलाफ नहीं थी। सामाजिक बुराइयां एवं कुरीतिया ही हिंदुओं की एकजुटता में सबसे बड़ी बाधक थी एवं है। आज अगर हिन्दू समाज एकजुट हो रहा है क्योंकि भीम जी के जोरदार विरोध से ही समाजिक बुराइयां कमजोर होनी शुरू हुई है, उसके प्रति जागरूकता में भीम जी का बहुत बड़ा योगदान था..
कई बार उन्होंने कटु वचन भी कहे क्योंकि "कुछ" जातिवादी अभी भी सामाजिक बुराइयों कुरीतियों को मिटाने के खिलाफ नहीं थे... उनके कटु वचनों को उस संदर्भ में देख कर ही समझना चाहिए... उनके वचनों के पीछे उनका भाव क्या था ???
भीम जी को "अरबी या मिजरी" बनने के लिए करोड़ो रूपये एवं प्रलोभन तक दिए गए परंतु उन्होंने भगवान विष्णु जी के अवतार भगवान श्री गौतम बुद्ध जी के पंथ को ही चुना जो "शांति अहिंसा" का मार्ग है क्योंकि वह जानते थे कि उनके समाज के "स्वयंघोषित जातिवादी ठेकेदार" (जोगेंद्रनाथ मंडल, रावण जैसे) इनको गुमराह करके "उकसाएंगे भड़काएगे लगवाएंगे".. परंतु भगवान बुध द्वारा दिया "शांति एवं अहिंसा" (सात्विक गुण) का मार्ग ही इनको "सामाजिक एकजुटता" की तरफ लेकर जाएगा।
जनता का "जागरूक एवं एकजुट" होना जरूरी है..