आज तक के इतिहास में पहली बार , सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद पर बैठे गंवई पर फेंका गया जूता..सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के ऊपर उनकी ही अदालत में जूते से हमला करना एक अत्यंत गंभीर मामला है। आज तक ऐसा सिर्फ नेताओं के ऊपर ही देखा गया था।जब देश की न्याय व्यवस्था चंद वामपंथियों, कांग्रेसियों, मिशनरियों, और भारत एवं सनातन विरोधी शक्तियों के हाथों में खेलने लगती है तो ऐसा होना स्वाभाविक ही है।
आखिर कब तक इस देश का हिंदू आपके इस “माई लॉर्ड” वाले प्रिविलेज को ढोता रहेगा और आपकी बकवास बर्दाश्त करेगा? न्याय के मंदिर को अगर अपनी तुच्छ राजनीति और विकृत सनातन विरोधी मानसिकता का अड्डा बनाकर रखोगे तो जूते फेंकने के अलावा हिंदुओं के पास और चारा ही क्या बचेगा। अब भले ही जूता फेंकने वाले को सजा मिले लेकिन गवई जी ने सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में जूता खाने वाले पहले मुख्य न्यायाधीश के नाम से अपना नाम अंकित करवा लिया..हमे लगता है कि वास्तव में यह जूता किसी न्यायाधीश को नहीं मारा गया बल्कि उसे पर फेंका गया जिसे करोड़ों हिंदुओं की आस्था को मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठकर कुचला था
एक आम पीड़ित व्यक्ति के पास या तो न्याय व्यवस्था का सहारा होता है या फिर भगवान का। भगवान से तो वह प्रार्थना कर सकता है उसका नतीजा उस व्यक्ति के हाथ में नहीं होता है लेकिन हमारी न्याय व्यवस्था के इन कीड़ों ने न्याय के मंदिर की ऐसी हालत बना दी हैं कि प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन भगवान से प्रार्थना करता है कि प्रभु कभी उसे कोर्ट कचहरी के चक्कर ना काटने पड़ें।
जिन जजों के दिल पिथौरागढ़ की 7 वर्ष की कशिश के बलात्कारियों को बाइज्जत बरी करते हुए नहीं कांपे, किरन नेगी के बलात्कारियों को रिहा करते हुए नहीं कांपे, निठारी के मासूमों के कातिलों को रिहा करते हुए नहीं कांपे, आतंकवादियों के लिए रात को दो बजे सुनवाई करते हुए नहीं कांपे,तीस्ता सीतलवाड़ के लिए एक दिन में दो-दो बैच बनाते हुए नहीं कांपे,बार बार सनातन को अपमानित करते हुए नहीं कांपे, इन्हें वास्तव में जूता ट्रीटमेंट ही सुधार सकता है।
आपको लगता है कि काला कोट पहनकर और हथौड़ा पकड़कर आप भगवान से भी ऊपर हो गए। आपने जो बोल दिया वही बस अंतिम सत्य हो गया। आपको लाइसेंस मिल गया उस कुर्सी पर बैठकर कि आप अपनी राजनीतिक सोच को खुलकर प्रदर्शित करें और सनातन को अपमानित करें।
यह घटना एक नजीर बननी चाहिए। केवल जजों के लिए ही नहीं वरन इस देश में कीड़ों की तरह पल रहे सैकड़ों सनातन विरोधी संस्थाओं और प्रतिष्ठानों के लिए भी। जनता के सब्र की परीक्षा लेना बंद कीजिए माई लॉर्ड, वरना सड़कों पर निकलना भी मुश्किल हो जाएगा। जनता सबसे बड़ी जनार्दन है, यदि न्याय नहीं मिलता है तो खुद ही न्याय कर देती है।
पोस्ट राघव पंत