नहीं! हम आज तक नहीं जानते!
हजारों साल पहले महर्षि चरक ने सही भोजन विधि बताई थी, फिर भी आज 99% लोग सबसे पहला नियम तोड़ देते हैं।यह बताने की जरूरत नहीं कि खाना शरीर के लिए कितना जरूरी है। इसलिए खाना सबसे बड़ी बीमारियों का कारण भी बन सकता है और इन्हीं बीमारियों से हमारी रक्षा भी कर सकता है।
महर्षि चरक ने आयुर्वेदिक आहार नियमों में इसका विस्तृत वर्णन किया है।
पहला नियम – “ऊष्णम्” (Unam)
मतलब – गर्म।
जो भी खाना खा रहे हों, वह ताज़ा और गर्म होना चाहिए। लेकिन आज अधिकांश लोग यह नियम भूल गए हैं। आजकल ज्यादातर लोग फ्रोजन या प्रोसेस्ड फूड खाते हैं।जल्दी में खाना बनाकर फ्रिज में रख दिया जाता है और फिर रात में गर्म कर खा लिया जाता है। यही आदत बीमारियों को न्योता देती है।
दूसरा नियम – “स्निग्धम्” (Snigdham)
मतलब – चिकनाईयुक्त।
हमारा शरीर 7 धातुओं से बना है, जिनमें से 6 धातुएं स्निग्ध (चिकनी) हैं।इसलिए भोजन में थोड़ा तेल और घी लेना आवश्यक है।लेकिन इसे पचाने के लिए जठराग्नि (Digestive Fire) प्रबल होनी चाहिए, नहीं तो कफ दोष उत्पन्न हो सकता है।हल्का गुनगुना पानी भोजन के साथ लेना अच्छा है, इससे खाना अच्छी तरह पचता है। आयुर्वेद में कहा गया है – भोजन के साथ 3 घूंट गुनगुना पानी लें।
तीसरा नियम – “मात्रावत” (Matraavat)
मतलब – उचित मात्रा में खाना।
भोजन की मात्रा तय करने के लिए शरीर के संकेतों पर ध्यान दें
अगर पेट में कोई भारीपन न हो, इंद्रियाँ संतुष्ट हो जाएँ, और आराम से बैठा जा सके, तो समझिए मात्रा सही थी।आयुर्वेद कहता है:50% ठोस आहार + 25% तरल + 25% पेट खाली रहना चाहिए।
चौथा नियम – “जीर्णे” (Jirne)
मतलब – पूरा पाचन होने के बाद ही अगला भोजन करें।
अगर पिछला खाना पूरी तरह पचे बिना नया खा लिया, तो अधपचा और नया भोजन मिलकर दोषों को बढ़ा देते हैं।
इससे गैस, सूजन, पेट दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
पाँचवां नियम – “देशे देशे” (Deshe Deshe)
मतलब – शांत और अनुकूल वातावरण में भोजन करना चाहिए।टीवी, मोबाइल, लड़ाई-झगड़े, तेज़ शोर – ये सब मन और पाचन तंत्र को प्रभावित करते हैं।
छठा नियम – “सर्वोपकरणयुक्तं” (Sarvopkaranayuktam)
मतलब – संपूर्ण पोषण और सभी 6 स्वादों वाला भोजन (षडरस) होना चाहिए
मधुर (मीठा), अम्ल (खट्टा), लवण (नमकीन), कटु (तीखा), तिक्त (कड़वा), कषाय (कसैला)।
हर भोजन में इन रसों का संतुलन शरीर के स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है।
सातवाँ नियम – ना बहुत तेज खाओ, ना बहुत धीरे
बहुत तेज खाने से खाना गलत रास्ते पर चला जाता है, पाचन खराब होता है। इससे वात दोष बढ़ता है।जल्दी खाने से हिचकी, अपच, गैस जैसी समस्याएं हो सकती हैं।भोजन करते समय मोबाइल, टीवी आदि से बचें और भोजन को 32 बार चबा कर खाएं।
आठवाँ नियम – शांत चित्त से भोजन करें
“अजल्पं, अहसनं, तन्मना भुञ्जीत”
मतलब – खाते समय बोलना नहीं, हँसना नहीं, और पूरी एकाग्रता से खाना चाहिए।
जो भोजन सामने है, वही शरीर में बदलने वाला है। इसलिए उसे ध्यान, आभार और सम्मान के साथ ग्रहण करें।बुजुर्ग भी कहते हैं – खाते वक्त बात मत करो – क्योंकि इससे भोजन का पाचन सही होता है।
यदि हम महर्षि चरक के इन 8 सरल नियमों को अपनाएं, तो आज की 90% बीमारियाँ अपने आप दूर हो सकती हैं।