🌸 रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ 🌸
रक्षा बंधन केवल भाई-बहन का पर्व नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें हमारे वैदिक और पुराणिक संस्कारों में गहराई तक जुड़ी हैं। प्राचीन काल में इसे रक्षा सूत्र परिवर्तन का पर्व कहा जाता था, जब प्रत्येक वर्ष नया कलावा ब्राह्मण अथवा परिवार की बहन से बंधवाया जाता था, ताकि वह वर्षभर धर्म, सत्य और कल्याण की रक्षा करे।
शास्त्रों में रक्षा सूत्र की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है
येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
*(जिस मंत्र से महाबली राजा बलि को बांधा गया था, उसी मंत्र से मैं तुम्हें बांधता हूँ, हे रक्षासूत्र, अचल रहो, अटल रहो।)*
जब विदेशी आक्रमणों से असुरक्षा का वातावरण व्याप्त हुआ, तब राजपूत और वीर परिवारों की बहनों ने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधना प्रारंभ किया। यह केवल एक धागा नहीं था, बल्कि *रक्त से भी गाढ़ा संकल्प* था, “हम एक-दूसरे की रक्षा करेंगे, चाहे प्राण भी देने पड़ें।”
धीरे-धीरे यह परंपरा पूरे भारत में फैल गई और रक्षा सूत्र का पर्व भाई-बहन के पवित्र स्नेह और एक-दूसरे की सुरक्षा के प्रतीक में बदल गया। आज यह केवल रिश्तों का नहीं, बल्कि विश्वास, त्याग और एकता का उत्सव है।
रक्षा बंधन का भाव यही है—
भवतु सर्वमंगलं, लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु
(संपूर्ण लोक का कल्याण हो, सभी सुखी हों।)
इस धागे में न केवल बहन की ममता और आशीर्वाद है, बल्कि वह शक्ति भी है जो युगों से हमारे परिवारों और समाज को जोड़ती आई है।