जिस वक्त लोकसभा में अमित शाह भारत की खुफिया एजेंसियों की ऐतिहासिक विजय — ऑपरेशन सिंदूर की घोषणा कर रहे थे,उस समय अखिलेश यादव की आँखों में देश की जीत नहीं,आतंकियों की "#कौम" दिख रही थी। शर्मनाक ये नहीं कि उन्होंने सवाल उठाए — शर्मनाक ये था कि उन्होंने सवाल आतंकियों के पक्ष में खड़े होकर उठाए। मानो LOC पार बैठे जैश-ए-मोहम्मद के प्रवक्ता संसद में अवतार लेकर आ गए हों!
"अखिलेश जी,आतंकियों का धर्म देख दुखी मत होइए" — जब अमित शाह का ये वाक्य गूंजा,तो मानो संसद नहीं,एक राजनीतिक श्मशान था जहां अखिलेश की तथाकथित समाजवादी सोच की अर्थी उठ चुकी थी।एक नेता,जो मुख्यमंत्री रह चुका है,अब एक राजनीतिक मुफ्तखोर बन चुका है — जिसे न देश की फिक्र है,न जवान की कुर्बानी की कद्र।
अखिलेश आज सिर्फ हारे नहीं — वे नंगे हो गए।
तर्कों से,तथ्यों से,और राष्ट्रीय भावना से।जब देश #ऑपरेशन_महादेव के नाम पर आतंक का सफाया कर रहा है,तब ये नेता संसद में खड़ा होकर पूछता है कि सीज़फायर ट्रंप ने क्यों बोला? भाई,तुम्हें मोदी-ट्रंप की दोस्ती की खुजली है या आतंकवाद की हार से मिर्ची?सच तो ये है कि अखिलेश की राजनीति अब ‘जाली सेक्युलरिज़्म का टिन का डब्बा’ बन चुकी है — बजता खूब है,पर भीतर खोखलापन और वोटबैंक की बदबू के सिवा कुछ नहीं।
ये समाजवाद नहीं,'#समुदायवाद' है,अखिलेश जी!जहां आतंकी पहले मुसलमान होता है,फिर दुश्मन।जहां देशभक्ति नारेबाज़ी बन जाती है,औरजहां संसद को मज़ाक बनाकर,आप जैसे नेता लोकतंत्र को गटर बना देते हैं।
अमित शाह ने आपको मारा नहीं —आपकी असलियत को एक्सपोज़ कर दिया।और अब देश देख चुका है कि आपकी विचारधारा की अस्थियां पाकिस्तान के विमर्श से कितनी मिलती-जुलती हैं।
राम राम रहेगी सभी को!
साभार.... सोशल मीडिया कॉपी पेस्ट
अखिलेश यादव: संसद में #सेक्युलरिज़्म की लाश ढोता सियासी #भांड
अवधेश प्रताप सिंह कानपुर उत्तर प्रदेश,9451221253