हलाल इसके पीछे चल रहे भयानक षड्यंत्र को भी समझना समस्त हिंदुओं के लिए आवश्यक है।2 मिनट का समय निकालकर Thread अंत तक अवश्य पढ़े।🧵👇
🔏 लेखक : पंकज सनातनी
अधिकांश लोग जब हलाल की बात करते हैं, तो ज्यादातर लोगों को लगता है की किसी पशु के काटने के तरीके को हलाल या झटका बोला जाता है। मगर ये आधा सच है। इसलिए आज मैं आपको 'हलाल और झटका मांस' के विषय में बताने जा रहा हूँ। आज हम बताएंगे कि 'हलाल और झटका' मांस क्या है, और इनमें क्या अंतर होता है…?
इस मुद्दे को मैं पोस्ट में विस्तार से नहीं समझाऊँगा, ताकि आप खुद भी थोड़ा अध्ययन करें कि "हलाल VS झटका" क्या होता है…? इन दोनों प्रकार के माँस में क्या वैज्ञानिक अंतर है…? हलाल माँस के कारोबार कितने करोड़ रूपए का है, इससे कौन लोग जुड़े हैं, और झटका माँस का कारोबार कितने करोड़ रूपए का है और इस कारोबार में कौन लोग हैं इत्यादि।
जैसा कि हम जानते हैं कि आज के समय में शाकाहारी लोग बहुत कम रह गए हैं, और लोगों का पसंदीदा भोजन मांसाहार बन गया है। दोस्तों बाजार में आने वाला मांस दो प्रकार का होता है, एक हलाल और दूसरा झटका। लेकिन लोगों के मन में ये सवाल अक्सर आता है कि आखिर दोनों में अंतर क्या है इन्हीं सब सवालों के उत्तर आज मैं आपको इस आर्टिकल के माध्यम से समझाने जा रहा हूँ। तो चलिए शुरू करते हैं—
*🔰 हलाल और झटका मीट में अंतर —*
हलाल मीट इस्लामिक धर्म के लोगों की पद्धति है, जिसमे ये जानवरों और मुर्गे को हलाल करते हुए काटते हैं। जिसमे ये पहले कैरोटिड धमनी और विंडपाइप को काट देते हैं, जिसके बाद रक्त की आपूर्ति मस्तिष्क तक नहीं हो पाती है, जिससे फिर जानवर को दर्द का अहसास नहीं होता है। उसके बाद इनके शरीर को धीरे-धीरे काटा जाता है और जिसमें जानवर की हत्या से पहले "बिस्मिल्लाह, अल्लाह-हू-अकबर" का उच्चारण किया जाता है जो शरीयत के अनुसार अनिवार्य है। तथा पहले से मरे हुए पशु को या मारने से पहले बेहोश किए गए पशु का मांस खाना या झटका मीट खाना इस्लाम में वर्जित है।
जबकि, झटका मीट उस मांस को कहा जाता है, जिसमें जानवर को एक बार में काटा गया हो। हिंदुओं का मानना है कि ऐसा करने से जानवर को कम दर्द होता है और खून भी तेजी से बह जाता है। इसके अलावा उसकी मृत्यु भी तुरंत हो जाती है। दैनिक जीवन की बातचीत में हम 'एक झटके में' का टर्म कई बार कहते-सुनते हैं। इसका मतलब है- बिना लेट-लतीफ, फटाक से। तो जिस तरह हलाल मीट का संबंध पशु की हत्या के तरीके से है, उसी तरह झटका मीट का भी। झटका मीट वह है जो पशु के एक झटके में काटने के बाद मिले।
जैसा कि मैंने ऊपर बताया है— आज हलाल सिर्फ मांस तक ही सीमित नहीं है। बल्कि अब तो दुनियाभर में बहुत बड़ी 'हलाल इकॉनमी' खड़ी हो चुकी है। इस्लामी संगठन अब उत्पादों को हलाल सर्टिफिकेट देने के लिए कंपनियों से मोटी रकम वसूलते हैं। मगर सवाल यह है कि हलाल सर्टिफिकेट देने वाले ऐसे संगठन 'पर्यटन' के तौर-तरीकों पर भी हलाल-हराम का भेद करते हैं। भारत में भी कई ऐसे संगठन हैं जो कंपनियों को उनके प्रॉडक्ट्स के लिए हलाल सर्टिफिकेट जारी करते हैं और बदले में उनकी मोटी कमाई होती है।
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आज केवल 'हलाल सर्टिफिकेशन' से होने वाली मोटी कमाई से इस्लामी संगठन आतंकियों, देश विरोधियों और जिहादियों के मुकदमे लड़ती है। तथा गैर-मुस्लिमों के खिलाफ तरह-तरह के जिहाद में संलिप्त मुसलमानों और उनके परिवारों की भी भरपूर मदद इन्हीं पैसों से होती है। इसी वजह से देश में जिहादी गतिविधियां दिन-प्रतिदिन तेजी से बढ़ रही हैं। खासकर लव-जिहाद के मामले करीब-करीब हर दिन ही सामने आते हैं। लेकिन इसके पीछे की वजह कोई समझ ही नहीं पाया या कहें कि कोई समझना ही नहीं चाहता।
एड्रोइट मार्केट रिसर्च के एक अध्ययन के मुताबिक— वैश्विक हलाल बाजार 4.54 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का है। तुलना करने कि दृष्टि से देखा जाए तो यह जर्मनी, भारत या यूनाइटेड किंगडम के सकल घरेलू उत्पाद से भी अधिक है। साल 2026 तक वैश्विक हलाल मांस उद्योग के 9.86 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जिस पर मुसलमानों का एकाधिकार है और इस आमदनी का उपयोग आतंकवाद, लव-जिहाद, लैंड जिहाद, व्यापार जिहाद, शिक्षण जिहाद, और कई जिहादों में लिया जाता है।
पहले आप लोग हलाल का मतलब ठीक से समझो क्योंकि अगर सिर्फ पशुओं का मांस ही सिर्फ हलाल होता है तो हल्दीराम के नमकीन हलाल क्युँ आते हैं…? उसमें तो मांस नही होता है…?
हलाल का मतलब है कि किसी भी प्रोडक्ट को बनाने से लेकर उसके ऑडिट करने वाला तक कम्पनी के सारे कर्मचारी मुसलमान होंगे। इसका मतलब ये हुआ कि हलाल के द्वारा ये लोग हमारी नौकरियाँ चुरा रहे हैं। इसके अलावा हलाल प्रोडक्ट का सर्टिफिकेशन करने वाली मुस्लिम कंपनियाँ हैं सारी दुनिया में, वो कम्पनी की टोटल सेल का कुछ फिक्स पैसा लेती हैं हलाल सर्टिफिकेट देने के बदले में। साल 1947 में भारत में पहली बार हलाल सर्टिफिकेशन की शुरुआत हुई थी।
इसका क्या मतलब हुआ…? दरअसल जब आप कोई भी हलाल प्रोडक्ट बाजार से खरीदते हो तो उसका कुछ प्रतिशत पैसा आप स्वयं जिहाद के लिए देते हो। फिर उन्हीं पैसों से ये मुस्लिम लोग हमे मारने के लिए हथियार खरीदते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि हलाल प्रमाणपत्र से होने वाली कमाई का इस्तेमाल आतंकवादियों को कानूनी सहायता देने के लिए भी किया जाता हैं। इसमें सबसे प्रमुख दिल्ली स्थित जमीयत उलेमा-ए-हिंद है जो कि हलाल प्रमाणपत्र जारी करके करोड़ों रुपए की कमाई करती है। यह संदिग्ध आतंकियों के मुकदमे लड़ने और जेल से बाहर निकाल कर उनके पुनर्वास में मदद करती है। इसमें जर्मन बेकरी ब्लास्ट केस के दोषी इंडियन मुजाहिद्दीन का आतंकी मिर्जा हिमायत बेग, लश्कर कनेक्शन मामले का आरोपी अब्दुल रहमान, जयपुर के ISIS केस का आरोपी सिराजुद्दीन, 26/11 मुंबई ब्लास्ट का आरोपी इंडियन मुजाहिद्दीन का आतंकी असद खान, 2008 अहमदाबाद आतंकी हमले का आरोपी अफज़ल उस्मानी जैसे कई नाम शामिल हैं।
मुसलमान तो मस्जिदों में इतना पैसा डोनेट कर नहीं सकते कि लव-जिहाद करने वाले लड़कों को 2 से 8 लाख रूपये की आर्थिक सहायता दे सकें। तो ये पैसा आखिर आता कहाँ से है…? ये पैसा आता है हमारी और आपकी जेब से। आप जितनी बार हलाल चीज खरीदते हो, उतनी बार आप अपनी मौत के लिए पैसा देते हो। अपने घर में आने वाले साबुन से लेकर टूथपेस्ट तक उठा के देख लेना, सब कुछ हलाल ही मिलेगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगर ग्लोबल हलाल फूड मार्केट की बात की जाए तो साल 2021 में 1978 अरब डॉलर की थी। वहीं, साल 2027 तक यह अर्थव्यवस्था 3907.7 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है। वहीं, भारत में हलाल प्रोडक्ट की इकोनॉमी करीब 100 अरब डॉलर यानी 8.3 लाख करोड़ रुपये की है। इस समय भारत में हलाल मार्केट में काफी तेजी देखने को मिल रही है। अगर यूपी की बात की जाए तो यहां पर हलाल सर्टिफिकेट लेने वाले होटल और रेस्तरां की संख्या लगभग 1400 है। वहीं, यूपी में हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट का मार्केट करीब 30 हजार करोड़ का है। देश की विमानन सेवा वाली कंपनियां और स्विगी-जोमैटो, फूड चेन कंपनियां इसके बिना काम नहीं करती हैं।
सेक्युलर भारत में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) जैसी सरकारी व्यवस्था होते हुए भी 'हलाल सर्टिफिकेट' देने वाली इस्लामी संस्थाओं की क्या आवश्यकता है…? गौरतलब है कि हलाल को भारत में बैन करने की मांग भी लंबे समय से की जाती रही है।
आप एक अंदाजा भर लगाईये कि पूरे भारत में कितने करोड़ मांसाहारी हिन्दू होंगे…? अब उस अंदाजे में यह जोड़ लीजिए कि अगर अधिकांश मांसाहारी हिन्दू केवल यह प्रण कर लें और होटलों में माँग करें एवं फूड कंपनियों पर यह दबाव बनाकर रखें कि वे केवल और केवल झटका का माँस ही खाएँगे हलाल का नहीं। इसके बाद आप कल्पना भी नहीं कर सकेंगे, कि केवल इतना सा काम करने से आप माँसाहार करते हुए भी माँ भारती की कितनी बड़ी सेवा करेंगे।
और एक बात बताता चलूँ कि जानवरों का भक्षण करना ना तो प्रकृति के अनुरूप है, ना ही खाद्य श्रृंखला के अनुरूप और ना ही आपके शरीर के लिए उपयुक्त है। परंतु सामी परंपरा और धर्म का उदय ही ऐसे प्रकृति और वातावरण के गोद में हुआ, जहाँ उन्होंने इसे अनिवार्य रूप दे दिया। कालांतर में लोग अपनी जिह्वा और पेट के आनंद के लिए मांसाहारी भोजन का भक्षण करने लगे। इस भोजन की शुचिता के लिए जानवरों की दर्द को आनंद बना देना और इसे ही मान्यता देना क्रूरता का चरमोत्कर्ष है। ऐसा करने के पीछे इस क्रूर व्यापार पर सिर्फ मुसलमानों का एकाधिकार सुनिश्चित करना है। यह संवैधानिक रूप से भी गलत है, क्योंकि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार संविधान हमसे और शासन से पशु पक्षियों के संवर्धन और संरक्षण की अपेक्षा करता है। मुसलमान इस पद्धति को त्यागने के लिए उद्दत नहीं है और हमारी सरकार में शायद ग्रीस जैसा रीढ़ नहीं है।
> *हिन्दुओं की सबसे बड़ी कमजोरी है मन में अपने धर्म के प्रति आस्था से ज्यादा दिखावा करते है।*
*💲आइए आप लोगों को मैं एक बार की घटना से भी अवगत कराता हूँ—*
NCC के कैंप में आखिरी दिन मुर्गा पार्टी खाने का आयोजन किया गया। उस कैंप में मेरे साथ एक लड़का था जिसके पिताजी मंदिर में पुजारी थे। उसने अपना नाम मांसाहार के लिए लिखवाया और दूसरी तरफ एक मुस्लिम युवक था जिसने अपना नाम शाकाहारी के लिए लिखवाया।
जब मैंने उस ब्राह्मण लड़के से पूछा— तुम पुजारी परिवार से हो फिर भी मीट खा रहे हो…? तो इस पर उसका तर्क था कि यहां कौन सा मेरे घर वाले देख रहे हैं। दूसरी तरफ जब मैंने मुस्लिम युवक से पूछा कि क्या तुम मांस नहीं खाते…? तो इस पर उस लड़के का कहना था कि मुझे नहीं पता कि यहां जो मांस पकेगा वो हलाल होगा या नहीं।
यह 'टू नेशन थ्योरी' का सबसे सटीक उदाहरण है। उदार से उदार मुसलमान भी कभी हिन्दू या सिक्ख की मीट शॉप से मीट नहीं खरीदेगा क्योंकि उसे केवल हलाल मीट चाहिए। इस्लामिक पद्धति से जिबाह करे गए जानवर की मीट। जो सेक्युलर हिन्दू इस बात पर खुश है कि उन्हें ईद पर दावत पर बुलाया गया है वो कभी अपने मुसलमान दोस्तों को दावत पर बुलाएं और हिन्दू दुकान से खरीदा गया मीट ऑफर करके देखें।
आपके सारे सेक्युलरिज्म का ढोंग उतर जाएगा। यह सेक्युलरिज्म, दोस्ती तभी तक है जब तक आप हलाल खा रहे हैं उन्हें कभी झटका ऑफर करके देखिए। उनके लिए मीट की पूरी हलाल अर्थव्यवस्था है जिसमें आपकी कोई जगह नहीं है। और दूसरी तरफ हम हिन्दू है, जो कोई नहीं देख रहा है तो कुछ भी धर्म के विरुद्ध काम करने को तैयार हो जाते है, इसका सबसे बड़ा कारण है हमारी मैकाले शिक्षा व्यवस्था, पश्चिम देशों के सभ्यता का अनुकरण।
*🔰 हिन्दू धर्म में मांस खाना मना है या नहीं है इस संबंध में भी कई लोगों के मन में भ्रम होते हैं आइए थोड़ा इस पर भी प्रकाश डालते हैं —*
*(क) वेदों के अनुसार—*
वेद ही हिन्दू धर्म के धर्म ग्रंथ है। वेदों का सार उपनिषद और उपनिषदों का सार गीता है। यहां तीनों का मत जानेंगे। वेदों में मांस खाने के संबंध में स्पष्ट मना किया गया है। वेदों में पशु हत्या पाप मानी गई है। वेदों में कुछ पशुओं के संबंध में तो सख्त अनुदेश दिए गए है।
_यः पौरुषेयेण करविषा समङकते यो अश्वेयेन पशुयातुधानः ।_
_यो अघ्न्याया भरति कषीरमग्ने तेषांशीर्षाणि हरसापि वर्श्च ॥_
*अर्थात-* जो मनुष्य नर, अश्व अथवा किसी अन्य पशु का मांस सेवन कर उसको अपने शरीर का भाग बनाता है, गौमाता की हत्या कर अन्य जनों को दूध आदि से वंचित रखता है, हे अग्निस्वरूप राजा, अगर वह दुष्ट व्यक्ति किसी और प्रकार से न सुने तो आप उसका मस्तिष्क शरीर से विदारित करने के लिए संकोच मत कीजिए।
*(ख) गीता के अनुसार—*
गीता में मांस खाने या नहीं खाने के उल्लेख के बजाय अन्न को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। 1. सत्व, 2. रज और 3. तम।
*गीता के अनुसार—* अन्न से ही मन और विचार बनते हैं। जो मनुष्य सात्विक भोजन ग्रहण करता है उसकी सोच भी सात्विक होगी। अत: सात्विकता के लिए सात्विक भोजन, राजसिकता के लिए राजसिक भोजन और तामसी कार्यों के लिए तामसी भोजन होता है। यदि कोई सात्विक व्यक्ति तामसी भोजन करने लगेगा तो उसके विचार और कर्म भी तामसी हो जाएंगे।
👁️🗨️ निष्कर्ष :-वैसे तो आप पूरा लेख पढ़कर समझ ही गए होंगे कि अब आगे आप लोगों को क्या करना है। हलाल खाना या ना खाना आपका वैचारिक मत हो सकता है लेकिन इसके पीछे चल रहे षड्यंत्र को भी समझना होगा। और अगर इसके बावजूद भी हलाल खाने के शौकीन लोग नहीं समझ पाये तो यूँ समझे कि जिहाद को बढ़ने में आप लोग ही पानी डाल रहे हैं। और जब तक पानी डालते रहेंगे तब तक जिहाद नहीं रुकने वाला। दूसरी बात कि हलाल इस्लामिक पद्धति है तो किसी दूसरे पर क्यों थोपा जाए।
✍️ साभार
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