दुनिया के किसी भी हिस्से के किसी भी कालखंड की कहानी उठाकर देख लौजिए। जब भी कोई आक्रमणकारी किसी दूसरे देश पर आक्रमण करता है तो सबसे पहले उनके ग्रंथ नष्ट कर देता है, क्योंकि मनुष्य को तब तक दास नहीं बनाया जा सकता, जब तक की उसकी संस्कृति स्वतंत्र है।किताबें नष्ट कर देना, जला देना अपराध है, लेकिन उससे भी बड़ा अपराध है किताबों में कुछ अशोभनीय व असत्य को जोड़कर उनके महत्व को, उनकी पवित्रता को खंडित कर देना। श्री वाल्मीकि रामायण के साथ यही षड्यंत्र हुआ। शताब्दियों से हम मानते आए हैं कि श्रीराम ने अपनी गर्भवती पत्नी देवी सीता को किसी के कहने पर निर्वासित कर दिया था। सीता परित्याग की पूरी कहानी वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड में मिलती है।
वाल्मीकि रामायण ही रामायण का वास्तविक और मूर्त रूप है, क्योंकि ऋषि वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे और कई घटनाओं के स्वयं साक्षी भी थे। सच तो यह है कि ऋषि वाल्मीकि ने कभी उत्तरकांड लिखा ही नहीं था।आपने अंग्रेजी के नॉवेल पढ़े होंगे। अक्सर वे समाप्त कैसे होते हैं - 'और वे खुशी-खुशी रहने लगे।' इसके बाद कहने के लिए कोई कहानी बचती ही नहीं। वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड का 128वां सर्ग कहता है- श्रीराम राजा बन गए, विभीषण लंका चले गए, सुग्रीव किष्किंधा लौट गए, भरत सेनापति नियुक्त हो गए और इसके बाद श्लोक संख्या 95 से लेकर 106 तक में 'इसके बाद सब खुशी-खुशी रहने लगे' का वर्णन है।
106वें श्लोक के बाद फलश्रुति है, यानी कथा सुनने के फल। इसका मतलब है कि औपचारिक रूप से रामायण की कथा समाप्त हुई, कुछ और लिखने के लिए शेष नहीं रहा।
युद्ध कांड के अंतिम सर्ग का 119वां श्लोक सुनिए, *'रामायण मिदं कृत्स्नम श्रणवतः पठतः सदा.. प्रीयते सततम रामः स हि विष्णुः सनातनः'* यानी यही सम्पूर्ण रामायण है। आगे 121वें श्लोक में वाल्मीकि लिखते हैं,*'एवमेतत पुराव्रत्त माख्यानम भद्रमस्तु वः.... प्रव्या हरत विस्त्रब्धम बलम विश्णोः प्रवर्धताम'* यानी यह इतिहास सम्पन्न हुआ। यहां वाल्मीकि राम की कथा को पूर्ण घोषित कर देते हैं। जब कथा पूर्ण हो गई तो फिर अचानक उत्तर रामायण कहां से आ गई?
साफ जाहिर है कि उत्तर कांड बाद में जोड़ा गया और वह पूरी तरह काल्पनिक है।युद्ध कांड में वाल्मीकि राम को 'भ्रात्रभिः सहितः श्रीमान' कहकर सम्बोधित करते हैं, यानी श्रीदेवी सीता हमेशा राम के साथ रहीं, तभी वो श्रीमान कहलाए।युद्ध कांड के 128वें सर्ग में वाल्मीकि साफ़-साफ़ लिखते हैं कि भगवान राम ने सीता जी के साथ हजारों वर्षों तक अयोध्या पर राज किया। जब हजारों वर्षों तक राम, सीता के साथ रहे, तो वनवास कब दिया ?
लेकिन यह सच है कि अग्निपरीक्षा तो सीता ने दी थी, लेकिन अयोध्या में नहीं, लंका में। सीता ने रावण वध के बाद अपने निष्कलंक सतीत्व का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए अग्निपरीक्षा दी थी, न कि राम का संदेह दूर करने के लिए क्योंकि राम को तो कभी अपनी सीता पर संदेह था ही नहीं। युद्ध कांड के 116वें सर्ग में सीता जी कहती हैं, 'यदि मेरा हृदय एक क्षण के लिए भी श्रीराम से अलग नहीं रहा तो सम्पूर्ण लोकों के साक्षी अग्नि मेरी रक्षा करें।
' अग्निदेव ने स्वयं प्रकट होकर श्रीराम से कहा कि देवी सीता में कोई पाप या दोष नहीं है, आप इन्हें स्वीकार करें। भगवान राम ने अग्नि के सामने प्रतिज्ञा ली, 'हे अग्नि देव, मैं आपको वचन देता हूं कि जैसे एक यशस्वी व्यक्ति अपनी कीर्ति का त्याग नहीं करता, मैं जीवन भर सीता का त्याग नहीं करूंगा।' आप खुद सोचिए, अग्निदेव के सामने जीवन भर सीता के साथ रहने का वचन देने वाले राम क्या किसी के कहने पर उन्हें त्याग देंगे?