एक क्षण में नरेन्द्र मोदी व्यापारी, बनिया, कायर, कूटनीति समझने में विफल, पराजित और निकृष्ट हो गए, जबकि यह आपरेशन पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर नौ हमलों के बाद ही समाप्त माना जा रहा था। वह तो पाकिस्तान ने पलट कर हमले किए और हमने उसे घुसकर मारा, अभूतपूर्व मारा तो खिंच गया। एक तरह से वह गिड़गिड़ाने लगा। अब आप उसे भी झुठला दीजिए, जिस पर गरज गरज कर उछल रहे थे। सीजफायर हुआ तो मोदीजी हार गए? इंदिरा गांधी याद आने लगीं? जबकि इंदिरा गांधी ने 1971 के युद्ध में कुछ हासिल नहीं किया था। जो बांग्लादेश बना था, आज वह हमारे लिए नासूर है। एक इंच जमीन नहीं ले पाई पाकिस्तान से। उम्मीद रखो, यही नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान का परमानेंट इलाज करेगा।
इस पटल के महाविद्वानों को अगर यह भ्रम है कि मोदी कूटनीति की मेज पर कुछ गंवा कर भारत का अहित करेंगे तो यह भ्रम मात्र है। नरेन्द्र मोदी इंदिरा गांधी नहीं हैं। आपके उद्वेलित होकर जय-जय करने और आपकी इच्छा के प्रतिकूल होते ही गरियाने से नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व छोटा नहीं होता।