किसी राष्ट्र की आत्मा तब रोती है, जब उसके सच्चे रक्षक गुमनाम रह जाते हैं। और वह मुस्कुराती है, जब देर से ही सही, उन्हें गले लगाकर कहा जाता है – भारत को तुम पर गर्व है।यह तस्वीर एक घोषणापत्र है – उस नये भारत का, जहाँ सत्ता के सिंहासन से कोई घोष नहीं होता, बल्कि झुर्रियों से भरे हाथों को चूमकर इतिहास गढ़ा जाता है।
भीमाव्वा डोड्डाबलप्पा शिलेक्याथारा — एक 96 वर्षीय तपस्विनी, जिन्होंने कठपुतलियों में रामायण और महाभारत को जीवित रखा — न मीडिया की गूंज में रहीं, न बौद्धिक गलियारों की चर्चाओं में। लेकिन अब भारत में, उन्हें वह सम्मान मिला है जो दशकों से अधूरी आत्मा को पूर्णता देता है — पद्मश्री।कठपुतलियों की उंगलियों से संस्कृति की नब्ज़ पकड़ने वाली वह स्त्री, आज इस देश की आत्मा की नायिका है।एक झुकी हुई पीठ को सहारा देकर राष्ट्रपति भवन तक लाया जाना – यह केवल सम्मान नहीं, यह भारत माता के घावों पर मरहम है