हमारे 27 भाई जो मारे गए हैं, उन्हें उनकी पत्नियों के सामने, बच्चे की उपस्थिति में, पैंट उतार कर गोली मारी गई है। उन बालक-बालिकाओं के मस्तिष्क में जो आजीवन घाव लगा है, क्या उनके हृदय नहीं थे?
पाकिस्तानी बच्चे रहें या मर जाएँ, शत्रु राष्ट्र के व्यक्तियों या संततियों के प्रति कोई मानवता का भाव नहीं आ सकता। राष्ट्र की सीमाएँ हैं, मजहब बताता है कि हिन्दुओं की हत्या करो और तुम सामूहिक रूप से वो किताबें पढ़ते हो जो हमारे अस्तित्व को मिटाने का आदेश देता है, मैं तुम्हारे प्रति मानवीयता तब तक नहीं रख सकता जब तक तुम कुरान और मोहम्मद से स्वयं को अलग न कर लो। वैसे भी पाकिस्तानी बच्चे बड़े होकर क्या बनेंगे कौन जाने? हो सकता है ये भी आतंकी बनकर आतंक हो फैलाएं