11 साल की बच्ची के मामले में भारत की सड़ी हुई न्यायपालिका ने कैसा फैसला किया है। कोई भी साधारण व्यक्ति भी इस फैसले के सुनेगा तो वो हैरान रह जाएगा को न्यायपालिका चाहती क्या है? वो किसे न्याय दे रही है .. पीड़िता को या अपराधी को? न्याय के आसान पर आसीन जज साहब का फैसला वाकई अत्यंत चिंताजनक है को क्या होगा भारत का भविष्य?
शायद जज साहब इस तरह मानेंगे रेप या रेप की कोशिश👉पहले रेपिस्ट को जोर से हा हा हा हा हंसना होता है, फिर कहना होता है, '---अब बचकर कहां जाओगी ?'' इसके बाद गुंडा को दरवाजा का सिटकिनी बंद करना होता है। फिर पीडि़ता को चिल्लाना पड़ता है, ''बचाओ, बचाओ, कोई तो बचाओ।'' ''अब तुम्हें यहां कोई नहीं बचाने आयेगा। तुम रंगा के चंगुल में पूरी तरह फंस चुकी हो,'' गुंडा ऐसे बोलेगा। फिर पीडि़ता कहेगी, ''भगवान के नाम पर मुझे छोड़ दो। मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? प्लीज भगवान के लिये मुझे छोड़ दो।''फिर अंदर से तरह तरह की आवाज आयेगी। आउँ करते हुए गुंडा बाहर आयेगा। पीडि़ता आधे अधूरे कपड़े में पड़ी रहेगी। फिर पीडि़ता छत से कूदने जायेगी, हीरो बनकर कोई बचायेगा, तब जाकर माना जायेगा कि पीडि़ता के साथ रेप या रेप की कोशिश हुई है। है कि नहीं जज साहब?