यह अजीब सी बिडंबना है जो उदारवादियों की कलुषित सोच को उजागर करती है।ये लोग ना उपराष्ट्रपति धनकड़ साहब के लिए आगे आए, ना जस्टिस शेखर यादव के लिए आगे आयेंगे!लेकिन अगर हिंदू समाज में अलगाव पैदा करना हो, तो सभी जातिवादियों की अस्मिता तुरंत जाग उठेगी।
ना किसी जातिवादी कीड़े को अनुसूचित जाती, जनजाति से लेना देना है न यादव , जाट से इन्हें केवल अपनी दलाली से मतलब है । तभी तो हो एक उपराष्ट्रपति जी और एक जस्टिस के विरुद्ध बनाए जा रहे माहौल में भी ये सब या तो खामोश हैं या इनके खिलाफ ही माहौल बना रहे हैं। ये सच्चाई सभी सनातनी हिंदुओं को समझनी चाहिए और एकजुट होकर इन जातिवादी कीड़ों को खत्म करना चाहिए