जब दिल्ली आया तो एक जगह का नाम सुनकर बड़ी बदबू सी फील होती थी, वह नाम था सराय काले खां, इसके नाम पर अंतरराज्यीय बस अड्डा सुबह तक था। काले खां औरंगजेब का सेनापति था, लोगों ने इसे सूफी संत कहकर पूजना शुरू किया। अव्वल तो मजहब में संत जैसा कुछ होता नहीं लेकिन संत का मुखौटा पहन कर हिंदुओं की श्रद्धा पाई जा सकती है यह विधर्मियों को पता था।
आज मियां काले खां की निशानी मोदी सरकार ने मिटा दी। दिल्ली में सराय काले खां को अब बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाना जाएगा। खैर मुगलों का एक और कलंक मिटा अब एक और काम हो, हजरत निजाम को गौतम बुद्ध चौक बना दिया जाय। ऐसे काम तब तक होते रहेंगे जब तक हिंदू एकजुट होकर राष्ट्रवादी सरकार को वोट देते रहेंगे... महाराष्ट्र / झारखंड के हिंदू संज्ञान लें
बीबी आरफा फिर ट्वीट करेंगी, रोज एक घाव! आह ये दुःख खत्म क्यों नहीं होता। रुदालियों का गिरोह छाती पीटेगा दुर्भाग्यवश उसमें अस्सी प्रतिशत वे लोग होंगे जिनके पुरखों को औरंगजेब ने त्रास दिया था।