ऋषियों ज्ञानियों के अनुसार सारा विश्व वर्णमयी भगवती पराशक्ति के 'हकार' से उद्भूत होता है और अन्ततः उसी में लीन हो जाता है। भगवती पराशक्ति का स्वरूप अक्षरात्मक ही है--
अकचटतपयायैः सप्तभि वर्णवर्गेर्विरचितमुखबाहापादमध्याख्यहृत्का।
सकलजगदधीशा शाश्वता विश्वयोनिर्वितरतु परिशुद्धिं चेतसः शारदा वः ।।
तात्पर्य यह कि 'अवर्ग, कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग तथा यवर्ग नामक सात वर्षों की मातकाओं से जिसके मुख, बाहु, पाद, मध्यभाग और हृदय की रचना हुई, जगत् की अधीश्वरी और समस्त विश्व को जन्म देने वाली वह शाश्वती शक्ति शारदा हमारी आपकी चेतना को विशुद्ध बनाये।
भोगमोक्षप्रदायनी भगवती शारदा का शरीर अवर्ग आदि सात वगों में विभक्त ५१ मातृकाओं से निर्मित है ।
🔥 अवर्ग की अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, ल, लु, ए, ऐ, ओ, औ, अं और अ: - ये १६ मातकाएं भगवती के मुखमंडल के क्रमशः ब्रह्मरंध्र,मुख, दक्ष नेत्र, वाम नेत्र, दक्ष कर्ण, वाम कर्ण, दक्षिण,नासापुट, वाम नासापुट, दक्षिण कपोल, वाम कपोल, ऊर्ध्व ओष्ठ, अधर ओष्ठ, ऊर्ध्व दन्तपंक्ति, अधः दन्तपंक्ति, तालु और जिह्वा ये १६ अंग हैं ।
🔥 क वर्ग की क्रमशः क, ख, ग, घ, ङ - ये पांच मातृकाएं क्रमशः उनकी दक्षिण बाहु के बाहुमूल, कूर्पर, मणिबन्ध, अंगुलिमूल और अंगुलियों के अग्रभाग हैं ।
🔥 च वर्ग की च, छ, ज, झ और ञ - ये पांच मातृकाएं भगवती के वाम बाहु के क्रमशः बाहुमूल, कर्पूर, मणिबन्ध अंगुलिमूल और अंगुल्यग्रभाग हैं।
🔥 ट वर्ग की क्रमशः ट, ठ, ड, ढ और ण - इन पांचों मातृकाओं से भगवती पराम्बा के दक्षिण पाद की जंघा, जानु, (घुटना) गुल्फ (टखना) अंगुलिमूल तथा अंगुल्यग्र का निर्माण हुआ है।
🔥 त वर्ग की क्रमशः त, थ, द, ध - इन पांच मातृकाओं से वाम पाद के उक्त अंगों का निर्माण हुआ है।
🔥 प वर्ग की क्रमशः प, फ, ब, भ और म - ये पांच मातृकाएं भगवती के दक्षिण कुक्षि, वाम कुक्षि, पृष्ठ, नाभि तथा जठर नामक पांच मध्य अंग हैं ।
🔥 य वर्ग की क्रमशः य, र, ल, व, श, ष, स, ह, ळ तथा क्ष - ये १० मातृकाएं भगवती के हृदय प्रदेश के क्रमशः हृदय, दक्षिण स्कन्ध, ककुद् (गर्दन), वामस्कन्ध, हृदय से दक्षिणकर पर्यन्त भाग, हृदयादि वामकर पर्यन्त भाग, हृदय से लेकर दक्षिण पाद पर्यन्त भाग, हृदयादि वामपाद पर्यन्त भाग, नाभि से लेकर हृदय पर्यन्त भाग और हृदयादि भ्रूमध्य भाग है।