🔹अंग्रेजों ने भूखे मारे 30 लाख भारतीय, कुत्ते-गिद्ध खा रहे थे लाशें
🔹1943 में बंगाल की भुखमरी की शुरुआत
🔹क्या थी अंग्रेजों की 'डिनायल पॉलिसी’ जिसने 30 लाख भारतीयों की जान ली
🔹अनाज की कमी से नहीं, सरकार के फैसलों से मर रहे थे बंगाल के लोग
🔹तत्कालीन ब्रिटिश पीएम चर्चिल का वो एक फैसला, जिससे बंगाल में लोग भूख से मरने लगे
🔹तत्कालीन ब्रिटिश पीएम चर्चिल ने किसी अन्य देश को भी भूखे मर रहे बंगाल की मदद ना करने दी
🔹अकाल को छिपाने के लिए अंग्रेजों ने सेंसरशिप का सहारा लिया
🔹अंग्रेजों ने भूखे मारे 30 लाख भारतीय, कुत्ते-गिद्ध खा रहे थे लाशें :-
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की एक नीति जिसके कारण बंगाल के 30 लाख लोग भूख से मरने को मजबूर हो गए थे। खेतों में लाशें बिछी हुई थीं। बंगाल की कंसाई नदी में अनगिनत मृतकों की लाशें तैर रही थीं। कुत्ते और गिद्ध लाशों को नोच-नोच कर खा रहे थे। जानिए कैसे 1943 में तत्कालीन ब्रिटिश पीएम चर्चिल की गलत नीतियों के कारण भारत में सबसे बड़ा मानव निर्मित अकाल पड़ा जिसने 30 लाख भारतीयों को भूख से मरने पर मजबूर कर दिया।
🔹 1943 में बंगाल की भुखमरी की शुरुआत
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दिसंबर 1941 में जापानी सेना ने ब्रिटिश उपनिवेश सिंगापुर और बर्मा (म्यांमार) पर कब्ज़ा करने के लिए हमला कर दिया था। अगले 5 महीने तक चले युद्ध के बाद मई 1942 में जापानी सेना ने दोनों जगहों पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद जापानी सेना भारत की ओर बढ़ गई।
जल्द ही अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर भी जापानी सैनिकों का कब्ज़ा हो गया। माना जा रहा था कि जापान अब बंगाल पर हमला करेगा। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कलकत्ता (कोलकाता) ब्रिटिश युद्ध योजना का अहम केंद्र था। यही वजह थी कि ब्रिटिश सेना को जापानी नौसेना के हमले का अंदेशा था।
ऐसे में ब्रिटिश सरकार ने बंगाल के तटीय इलाकों जैसे चटगांव और मिदनापुर में डिनायल पॉलिसी लागू कर दी। जिस नीति से बंगाल में असंख्य लोगों के भूख से तड़प तड़प कर मारे जाने की शुरुआत हुई !
🔹क्या थी अंग्रेजों की 'डिनायल पॉलिसी’ जिसने 30 लाख भारतीयों की जान ली
डिनायल पॉलिसी' के तहत अंग्रेज सैनिक इस इलाके के गांवों में जाकर लोगों के घरों से अतिरिक्त चावल और नाव जब्त करने लगे।
इस पॉलिसी के पीछे अंग्रेजों की सोच थी कि जापानी नौसैनिक अगर ब्रिटिश गवर्मेंट से लड़ने के लिए भारत पहुंचते हैं तो उन्हें खाने के लिए कुछ भी नहीं मिल पाए।
दूसरी ओर, हज़ारों अंग्रेज़ सैनिक कलकत्ता पहुँच रहे थे। उनके खाने-पीने के लिए बड़ी मात्रा में अनाज की ज़रूरत थी। अंग्रेज़ सैनिकों को खाद्यान्न की कमी न हो, इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने एक नीति बनाई जिसके तहत सैन्य छावनियों और शहरों में अनाज की आपूर्ति की जाती थी।
इसकी वजह से बंगाल के गांवों में अनाज की कमी पड़ गई। गांवों में भूख से मरने वालों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी। सरकारी गोदामों में अनाज की कमी न हो, इसके लिए पुलिस लोगों के घरों से चावल जब्त कर ले जाने लगी। इस समय चावल का दाम लगभग आठ और दस गुना तक बढ गया। गांवों के बाजारों में चावल पूरी तरह से खत्म हो गए। कोलकाता, ढाका की सड़कें कंकालों से भर गई थीं. इंसानी ढांचे जो कई दिन से भूखे थे और सिर्फ़ मरने के लिए ही बंगाल के कस्बों और शहरों में पहुंचे थे." परिणाम ये हुआ कि कलकत्ता की सड़कों, पूर्वी बंगाल के गांवों और खेतों में इंसानी लाशें दिखाई देने लगीं। भुखमरी से उस समय हालात इतने खराब थे कि इतिहासकार माइक डेविस ने अपनी पुस्तक 'लेट विक्टोरियन होलोकॉस्ट' में बंगाल में भूख से मर रहे लोगों की तुलना नाजी शिविरों और हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बमों से मरने वालों से की थी।
🔹 अनाज की कमी से नहीं, सरकार के फैसलों से मर रहे थे बंगाल के लोग
जब बंगाल में भूख से लोग सड़कों पर मर रहे थे, तब हर इंसान को खिलाने के लिए सरकारी गोदामों में चावल तो काफी था, लेकिन बहुत कम लोगों के पास इस चावल को खरीदने का पैसा था। जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स ने भी अपने रिसर्च पेपर में बताया था कि 1943 में बंगाल का अकाल ग़ुलाम भारत का एक मात्र ऐसा अकाल था, जो सूखे की वजह से या फसलों के नष्ट होने की वजह से नहीं था, परंतु मानव सर्जित था !
तत्कालीन ब्रिटिश पीएम चर्चिल का वो एक फैसला, जिससे बंगाल के लाखों लोग भूख से मरने लगे
अनाज की क़िल्लत से जब बंगाल में लोग मर रहे थे , तब ब्रिटिश पीएम चर्चिल ने ने मारे जा रहे भारतीयों की कोई परवाह नहीं की !
4 अगस्त को ब्रिटिश पीएम चर्चिल के नेतृत्व में वॉर कैबिनेट की बैठक हुई। इस बैठक में बंगाल में भूख से मर रहे लोगों के लिए अनाज भेजे जाने का मुद्दा उठा। अधिकारियों ने तत्काल 5 लाख टन गेहूं भारत भेजने की सिफारिश की, बैठक में चर्चिल ने यह कहते हुए भारत में अनाज भेजने से मना करते हुए कहा था कि “खरगोश की तरह बच्चा पैदा करने वाले भारतीय लोग इस अकाल के लिए खुद जिम्मेदार हैं।’
इससे विपरीत इसी बैठक में चर्चिल ने यूरोप के बाकी हिस्सों में अनाज भेजने के आदेश दिए थे। ताकि जंग के दौरान अंग्रेज सैनिकों के लिए खाने की कमी न हो।
🔹तत्कालीन ब्रिटिश पीएम चर्चिल ने किसी अन्य देश को भी भूखे मर रहे बंगाल की मदद ना करने दी
अगस्त 1943 में कलकत्ता के मेयर सैयद बदरुद्दीन शाह ने अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट को पत्र लिखकर जल्द से जल्द खाद्यान्न भेजने की अपील की थी। ऐसा माना जाता है कि विंस्टन चर्चिल ने भारत को आपातकालीन खाद्यान्न आपूर्ति करने के अमेरिकी सरकार के फैसले को खारिज कर दिया था। इतना ही नहीं, जब कनाडा ने सहायता के तौर पर भारत को 1 लाख टन गेहूं भेजना चाहा तो एक ब्रिटिश समिति ने इस पर भी रोक लगा दी। चर्चिल ने भारत के सरकारी गोदामों में जमा अतिरिक्त खाद्यान्न को श्रीलंका में तैनात ब्रिटिश सैनिकों को भेजने का भी आदेश दिया। ऑस्ट्रेलिया से गेहूं से लदे जहाज जब भारतीय बंदरगाहों पर पहुंचे तो ब्रिटिश अधिकारियों ने इस जहाज को यहां से सीधे मध्य पूर्व भेज दिया।
🔹अकाल को छिपाने के लिए अंग्रेजों ने सेंसरशिप का सहारा लिया
ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल को बंगाल में भूख से मर रहे लाखों लोगों की कोई चिंता नहीं है। वह केवल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय संसाधनों का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने बंगाल में मरने वाले लाखों लोगों की खबरों को दबाने के लिए सेंसरशिप और प्रोपेगेंडा का सहारा लिया। प्रधानमंत्री चर्चिल नहीं चाहते थे कि भारत में भूख से मर रहे लोगों की खबर उनके देश के लोगों तक पहुंचे। इसीलिए उनकी सरकार ने इस अकाल के लिए भारत की जमींदारी प्रथा और मानसून को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया।