हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी से अनंत चौदस तक गणेशोत्सव को सेलिब्रेट किया जाता है. महाराष्ट्र समेत तमाम राज्यों में इस पर्व को काफी धूमधाम से मनाया जाता है. गणेशोत्सव के दौरान भगवान गणेश के भक्त उन्हें घर पर लेकर आते हैं, दस दिनों तक उनका विशेष पूजन करते हैं और इसके बाद गणपति का विसर्जन कर दिया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है इसकी शुरुवात किसने और किस उद्देश्य से की थी और अब इससे किस संकल्प की पूर्ति की का सकती है.?
कहा जाता है कि गणेशोत्सव की नींव आजादी की लड़ाई के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने रखी थी. 1890 के दशक में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तिलक अक्सर ये सोचते थे कि किस तरह से आमजन काे एकजुट किया जाए. इसके लिए उन्होंने धार्मिक मार्ग को चुना. महाराष्ट्र में पेशवाओं ने लंबे समय से गणपति की पूजा की परंपरा शुरू कर दी थी. इस बीच तिलक के मन में खयाल आया कि क्यों न गणेशोत्सव को घरों की बजाय सार्वजनिक स्थल पर मनाया जाए. तब 1894 में इस महापर्व की नींव रखी गई. सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाने का श्रेय बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है.
ऐसा माना जाता है कि जैसे-जैसे लोग एक साथ आने लगे, गणेशोत्सव स्वतंत्रता का एक बड़ा जन आंदोलन बन गया, खासकर महाराष्ट्र के वर्धा, नागपुर और अमरावती जैसे शहरों में। अंग्रेज गणेशोत्सव के सार्वजनिक उत्सव से घबरा गए थे और रॉलेट कमेटी की रिपोर्ट में भी इस बात पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई थी कि गणेशोत्सव के दौरान युवाओं के समूह सड़कों पर ब्रिटिश शासन का विरोध करते थे और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गाने गाते थे। गणेशोत्सव ने काफी हलचल मचाई और राज को परेशान कर दिया।
समय बीतने के साथ गणेशोत्सव बहुत लोकप्रिय हो गया। आज यह त्यौहार पूरे देश में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र के अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में गणेश चतुर्थी का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान गणेश की पूजा मंगलमूर्ति के रूप में की जाती है। जाति-पाति के बंधनों को तोड़कर सभी लोग भगवान की पूजा और उत्सव में हिस्सा लेते हैं।
वर्तमान स्थिति में राष्ट्र रक्षा के लिए गणेशोत्सव में क्या करें
गणेशोत्सव से जिस प्रकार देश की आजादी के लिए कार्य किए गए अब जब देश में विधार्मियों का आतंक है तब गणेशोत्सव के माध्यम से लोगों तक संदेश पहुंचकर उन्हें धर्म के प्रति सजग किया जा सकता है और विधारमियों का सच पहुंचकर उनके बहिष्कार का प्रयास किया का सकता है