जब कुश्ती फेडरेशन में महिला पहलवानों के शोषण का प्रकरण उठा था तो क्या उसी समय महिला कुश्ती फेडरेशन अलग गठित करके इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं किया जा सकता था ..? प्रारंभ में ही लगा था कि यह एक जाट बनाम गैरजाट की राजनीतिक समस्या खड़ी की जा रही है और यही समाधान है.
अनुराग ठाकुर की सीमित राजनीतिक समझ इस समाधान में आड़े आ गयी होगी. यह भी संभव है कि यह सामान्य सी बात अपने हितों की रक्षा के खेल में आकंठ डूबे राजनीतिक खिलाड़ी सोच भी न पाये होंगे. ब्रजभूषण शरण सिंह के स्तर से इसका समाधान होना भी नहीं था. समाधान की सोच होती तो इस विवाद को उसके प्रारंभ होते ही दफन किया जा सकता था. नये फेडरेशन का गठन होते ही महिला पहलवान, कोच लोग नये महिला फेडरेशन के पदों की लाइन में लग जाते, वहां मलाई खोजते और जाट गैर जाट का मुद्दा टांय टांय फिस्स हो जाता.
लेकिन क्या किया जाये.. राजनीति की सीमित मानसिकता क्षमता के स्वार्थी चरित्रों ने हर क्षेत्र में देश का बेड़ा गर्क कर रखा है. खेल और कुश्ती तो इस लाइलाज बीमारी की एक बानगी भर है.
किसी ने पूंछा क्या कि 117 की बड़ी टीम लेकर गये थे और 6 मेडल लेकर आए हो..? ओलंपिक पर्यटन पर गये थे क्या ? हां, विनेश फोगट का 100 ग्राम का विवाद और लेकर आ गये. चुनाव आ रहे हैं, देश की बेटी दल विशेष का प्रचार करती दिखेगी.. और देसी राजनीति का एक चक्र पूरा होगा.