सचिव पदों पर OBC को लेकर समाज में जहर घोल रहा राहुल, एक बार मामला उठा कर फिर से उठाना साबित करता है कि घटिया राजनीति खेल रहा है।
आज़ादी के 75 साल भी राहुल गांधी जातिवाद के नाम पर समाज में जहर घोलने का काम कर रहा है। पिछले वर्ष 20 सितंबर को राहुल ने हल्ला मचाया था कि सरकार के 90 सचिवों में केवल 3 OBC के हैं और भारत के बजट का केवल 5% वो कंट्रोल करते हैं। मुझे तो उसकी बात का मतलब ही नहीं समझ आया कि 3 सचिव बजट का 5% कंट्रोल करते है। क्या वित्त मंत्री का कोई रोल नहीं है बजट में।
उस दिन भी भाजपा अध्यक्ष ने राहुल को जवाब दिया था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार 1992 से सिविल सर्विसेज में रिजर्वेशन के लिए कहा गया परन्तु वर्तमान में जो सचिव हैं वे सभी 1992 के पहले के हैं तो उसमें OBC कैसे हो सकती है। लेकिन उसकी समझ कुछ नहीं आया और कल फिर वो ही राग अलाप दिया जिसका नड्डा जी ने पहले की तरह ठोक कर वही जवाब देते हुए कहा कि लीडर में लीडरशिप होने के लिए लीडर बनना पड़ता है ट्यूशन से काम नहीं चलता। उन्होंने पूछा 2004 से 2014 तक आपकी सरकार में कितने सचिव OBC थे।
अब उस 2004 से 2014 के कालखंड की बात करते है। वर्ष 2011 में Department of Personnel की एक रिपोर्ट के मुताबिक 149 सचिवों में SC कोई नहीं था और ST केवल 4 थे यानी मात्र 2.68%। अन्य जूनियर सचिवों के लिए भी सूचना दी गई थी लेकिन OBC की संख्या के बारे में कहा गया था कि 1994 के पहले अधिकारियों की नियुक्ति के समय उनका OBC status नहीं पूछा जाता था और इसलिए OBC का डाटा उपलब्ध नहीं है। किसी ने इस पर एतराज़ नहीं किया क्योंकि बात तर्कसंगत थी लेकिन अब यह बात राहुल की मूढ़ मति में नहीं घुस रही।
राहुल कहता चाहता है कि OBC की आबादी 41% है तो उतनी प्रतिशत संख्या में सचिव क्यों नहीं है। तो राहुल “गंदगी” ये बताओ कि 2011 में आपकी सरकार में 149 सचिवों में कोई SC क्यों नहीं था जबकि SC की जनसंख्या 16% है और ST केवल 4 (2.68%) क्यों थे जबकि ST जनसंख्या 8.6 % है। कोई जवाब नहीं है तो बकबक करना बंद कर दो।
जितनी जनसंख्या SC/ST की है उतनी संख्या उनकी नौकरी में भी होने चाहिए, इसका भ्रम ये सांसद राजनीति करने के लिए बहुत समय से फैलाते रहे हैं। बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ 1969 में जबकि बैंक तो बहुत पहले से चल रहे थे और तब उनमें SC/ST नाममात्र को थे। राष्ट्रीयकरण के बाद ही बैंकों में SC/ST का आरक्षण शुरू हुआ यानी 1969 के बाद।
मैं जब बैंक में रहते हुए कॉरपोरेट स्तर पर SC/ST का आरक्षण लागू करना देखता था तब मेरे कार्यकाल में 30 सांसदों की 7 संसदीय समितियां आरक्षण लागू हो रहा है या नहीं इसकी जांच के आई थी (1985 से 1990 के बीच)। हर समिति के सदस्यों को फितूर रहता था कि बैंक में SC/ST की संख्या कम क्यों है जबकि उनकी आबादी ज्यादा है। लेकिन उन्हें समझ नहीं आता था कि बैंकों में आरक्षण 1969 में शुरू होकर SC/ST की संख्या उनकी आबादी के अनुपात में नहीं हो सकती। वे इसलिए नहीं समझते थे कि उन्हें अपने क्षेत्र में जाकर ढोल पीटना होता था कि उन्होंने SC/ST के लिए क्या आवाज़ उठाई।
यह काम अब राहुल गांधी कर रहा है और करता रहेगा क्योंकि भेजे में तो कुछ घुसने नहीं देता।
#साभार: सुभाष चन्द्र