जब भयभीत हिंदू सैनिक सुरक्षा की मांग करते तो बापू समझाते कि उन्हें बहादुरी से काम लेना चाहिए क्योंकि दुनिया की कितनी भी बड़ी सेना कायरों की रक्षा नहीं कर सकती
वैसे कहा जाता है की गांधी जी ने ऐसा भी कहा था "हमें मुसलमानों के हाथों मरने में गर्व की अनुभूति होनी चाहिए क्योंकि हमारे बलिदान से हमारे भाई मुसलमानों को अपना मनचाहा इस्लामिक राज्य मिल जाएगा।"
Gandhi Opinion on Muslims: ‘मुझे रत्ती भर भी शक नहीं है कि ज़्यादातर झगड़ों में हिंदू लोग ही पिटते हैं। मेरे निजी तजुर्बे से भी इस राय की तस्दीक़ होती है कि मुसलमान आम तौर पर धींगामुश्ती करने वाला और हिंदू दब्बू होता है। रेलगाड़ियों में, रास्तों पर और ऐसे झगड़ों का निपटारा करने के जो मौक़े मुझे मिले हैं, उनमें भी मैंने यही देखा है। क्या अपने दब्बूपन के लिए हिंदू, मुसलमानों को दोष दे सकते हैं? जहां कायर होंगे, वहां ज़ालिम भी होंगे ही… इसमें ग़लती किसकी थी? ये सच है कि मुसलमान अपने इस घृणित बर्ताव पर किसी भी तरह की सफ़ाई नहीं दे सकते, पर एक हिंदू की हैसियत से मैं तो मुसलमानों की गुंडागर्दी के लिए उन पर ग़ुस्सा होने से कहीं ज़्यादा, हिंदुओं की नामर्दी पर शर्मिंदा होता हूं। जिनके घर लुट गए, वो अपने माल असबाब की हिफ़ाज़त में जूझते हुए वहीं क्यों नहीं मर मिटे?… मेरे अहिंसा धर्म में ख़तरे के वक़्त अपने परिजनों को असुरक्षित छोड़कर भाग खड़े होने की गुंजाइश नहीं है। हिंसा और कायरतापूर्ण पलायन से अगर मुझे किसी एक को पसंद करना पड़े, तो मैं हिंसा को ही पसंद करूंगा।’
Ref : Navbharat Gold