कांग्रेस के भ्रष्टाचारी बीजेपी में शामिल हो रहे है, पिछले कुछ दिनों से यह दलील आसमान पर है।
2008 का समय याद कीजिए, शायद ही कोई महीना हो जब आतंकवादी हमले नही हुए। 2 दर्जन से ज्यादा आतंकी हमले अकेले 2008 में हुए थे, इसके बावजूद 2009 में कांग्रेस फिर सत्ता में आ गई।
इसके विपरित 2004 में मात्र प्याज महंगी होने से वाजपेई सरकार गिर गई थी। जो सिद्ध करता है की कांग्रेस के वोटर बिल्कुल पक्के है, वे कांग्रेस पार्टी से ज्यादा अपने अपने नेताओ के लिए वोट करते है। इसलिए कांग्रेस कितना भी जहर उगल ले उसके वोट प्रतिशत पर ज्यादा असर नही दिखता।
बीजेपी का केस बिल्कुल उलट है यहां 303 सांसद है लेकिन गारंटी है की 250 सीटो पर लोग अपने सांसद से खुश नही होंगे। वे सिर्फ बीजेपी की विचारधारा देखकर वोट दे रहे है। यदि कांग्रेस आज सिर्फ राहुल गांधी का चेहरा दिखा कर लड़ ले तो उसका सफाया निश्चित है।
अब ऐसे में बीजेपी का अंकगणित सिर्फ दो ही लोग मजबूत बनाते है, एक नए वोटर और दूसरे परिवर्तित वोटर। 2014 में रिकॉर्ड तोड 68% वोटिंग हुई थी जो पहले 58% के आसपास थी, क्योंकि नया वोटर सरकार बदलने के लिए भीड़ गया था और इसीलिए मोदीजी 1990 के युवाओं के कंधो पर बैठकर दिल्ली पहुंचे थे।
यह वर्ग बीजेपी का कोर वोटर बन चुका है अब बारी 2000 के युवाओं की है। लेकिन हर पीढ़ी बीजेपी की तरफ हो ऐसा जरूरी नही है इसलिए इस बार परिवर्तित वोटो पर हाथ मारा गया है। उदाहरण के लिए अशोक चव्हाण बीजेपी में आए, अब यह निश्चित है की सिर्फ उनका चेहरा देखकर वोट करने वाले 20 से 30 हजार वोटर भी बीजेपी की ओर आ चुके है।
इतना कनवर्जन बहुत मायने रखता है, अशोक चव्हाण के स्तर का एक नेता तीन जिलों में अपनी दमखम रखता है। यही कारण है की ना चाहते हुए भी बीजेपी को इन नेताओ को अपनी ओर करना ही होगा। ये जोड़ तोड़ की राजनीति वाजपेई जी के सिद्धांतो के विरुद्ध थी यही कारण था की एक वोट से भी उनकी सरकार गिरा दी गई थी।
आज मोदीजी जो निर्णय ले रहे है वे वाजपेई जी सपने में नही सोच सकते थे क्योंकि उन्होंने राम की तरह मर्यादाएं नही त्यागी। लेकिन जब आपके विपक्ष में राहुल, ममता, लालू भालू जैसे लोग हो तो ये मर्यादाएं एक काव्य बनकर रह जाती है।