इस दिन श्री हरि विष्णु के कच्छप (कछुआ) रूप की पूजा की जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ऋषि दुर्वासा को इंद्र पर क्रोध आ गया और उन्होंने देवताओं को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया। जब लक्ष्मी जी समुद्र में लुप्त हो गईं तो समुद्र मंथन का आरंभ किया गया।
मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को रस्सी बनाया गया। मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डुबने लगा।
यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए। इसके बाद मंथन संपन्न हुआ। उस दिन वैशाख माह की पूर्णिमा थी। तभी से प्रति वर्ष इस दिन कूर्म अवतार की पूजा का विधान है।
कूर्म जयंती की बहुत-बहुत शुभकामनाए!!
ॐ कूर्माय नम:
मान्यता अनुसार वैशाख मास में भगवान विष्णु ने कूर्म(कछुए) का अवतार लिया था और मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण करने समुद्र मंथन में सहायता की थी.
कूर्म अवतार कथा-
इस अवतार में भगवान के कच्छप रूप के दर्शन होते हैं.
कथा कहती है कि
एक बार देवराज इन्द्र को किसी कारण से नाराज़ हो कर महर्षि दुर्वासा ने श्राप देकर श्रीहीन कर दिया था, इन्द्र शक्तिहीन हो गये थे...इस अवसर का लाभ उठाकर दैत्यराज बलि नें तीनों लोकों पर अपना राज्य स्थापित कर लिया और इन्द्र सहित सभी देवतागण भटकने लगे.
सभी देवता ब्रह्मा जी के पास जाकर प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें इस संकट से बाहर निकालें. तब ब्रह्मा जी संकट से मुक्ति के लिए देवताओं समेत भगवान विष्णु जी के समक्ष पहुँचते हैं और भगवान विष्णु को अपनी विपदा सुनाते हैं. देवगणों की विपदा सुनकर भगवान विष्णु उन्हें दैत्यों से मिलकर समुद्र मंथन करने के कि सलाह देते हैं जिससे क्षीर सागर को मथ कर देवता उसमें से अमृत निकाल कर, उस अमृत का पान कर लें और अमृत पीकर वह अमर हो जाएंगे तथा उनमें दैत्यों को मारने का सामर्थ्य आ जायेगा.
भगवान विष्णु के आदेश अनुसार इंद्र दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए.. समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया.. मंदराचल को उखाड़ उसे समुद्र की ओर ले चले तथा जब मन्दराचल पर्वत को समुद्र में डाला गया तो वह डूबने लगा..
तब भगवान श्री विष्णु कूर्म अर्थात कच्छप अवतार लेकर समुद्र में जाकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर धारण कर लिया..समस्त लोकपाल दिक्पाल उनकी कूर्म आकृति में स्थित हो गये और भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा तथा इस प्रकार समुद्र मंथन का संपन्न हो सका.
कूर्म जयंती महत्व-
शास्त्रों में इस दिन की बहुत महत्ता मानी गई है.
इस दिन से निर्माण संबंधी कार्य शुरू किया जाना बेहद शुभ माना जाता है तथा इस अवसर पर वास्तु दोष दूर किए जा सकते हैं I