गान्धर्ववेद (संगीतशास्त्र) में स्वर सात बतलाये गये हैं। इन्हीं सात स्वरोंके मिश्रणसे सभी राग-रागिनियोंका स्वरूप निर्धारित हुआ है। स्वर साधना एवं नादानुसंधानके है विविध प्रयोग निर्दिष्ट हैं। इनसे शरीर, स्वास्थ्यको भी बल मिलता है। जानिए कैसे...
इन सात स्वरोंके नाम हैं-सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
*सा - (षड्ज) -* नासिका, कण्ठ, उर, तालु, जिह्वा और दाँत इन छः स्थानोंके सहयोगसे उत्पन्न होनेके कारण इसे षड्ज कहते हैं। अन्य छः स्वरोंकी उत्पत्तिका आधार होनेके कारण भी इसे षड्ज कहा जाता है।
इसका स्वभाव ठंडा, रंग गुलाबी और स्थान नाभि- प्रदेश है। इसका देवता अग्नि है। यह स्वर पित्तज रोगोंका शमन करता है। उदाहरण-मोरका स्वर षड्ज होता है।
*रे - (ऋषभ) -* नाभिसे उठता हुआ वायु जब कण्ठ और शीर्षसे टकराकर ध्वनि करता है तो उस स्वरको रे (ऋषभ) कहते हैं।
इसकी प्रकृति शीतल तथा शुष्क, रंग हरा एवं पीला मिला हुआ और स्थान हृदय-प्रदेश है। इसका देवता ब्रहा है। यह स्वर कफ एवं पित्तप्रधान रोगोंका शमन करता है।
उदाहरण-पपीहाका स्वर ऋषभ होता है।
*ग (गन्धार)-* नाभिसे उठता हुआ वायु जब कण्ठ और शीर्षसे टकराकर नासिकाकी गन्धसे युक्त होकर निकलता है, तब उसे गन्धार कहते हैं। इसका स्वभाव ठंडा, रंग नारंगी और स्थान फेफड़ोंमें है। इसका देवता सरस्वती है। यह पित्तज रोगोंका शमन करता है।
उदाहरण-बकरेका स्वर गन्धार होता है।
*म (मध्यम)-* नाभिसे उठा हुआ वायु जब उर-प्रदेश और हृदयसे टकराकर मध्यभागमें नाद करता है, तब उसे मध्यम स्वर कहते हैं। इसका स्वभाव - शुष्क, रंग गुलाबी और पीला मिश्रित तथा स्थान कण्ठ है। इसकी प्रकृति चंचल है। इस स्वरके देवता महादेव हैं।
यह वात और कफ रोगोंका शमन करता है।
*प (पंचम) -* नाभि, उर, हृदय, कण्ठ और शीर्ष- इन पाँच स्थानोंका स्पर्श करनेके कारण इस स्वरको पंचम कहते हैं। सात स्वरोंकी श्रृंखलामें पाँचवे स्थानपर - होनेसे भी यह पंचम कहा जाता है।
इसकी प्रकृति उत्साहपूर्ण, रंग लाल और स्थान मुख है। इसका देवता लक्ष्मी कहा गया है। यह कफ प्रधान रोगोंका शमन करता है। उदाहरण-कोयलका स्वर।
उदाहरण-कौआ मध्यम स्वरमें बोलता है।
*ध (धैवत)-* पूर्वके पाँच स्वरोंका अनुसंधान करनेवाले इस स्वरकी प्रकृति चित्तको प्रसन्न और उदासीन - दोनों बनाती है। इसका स्थान तालु है और देवता गणेश हैं।यह पित्तज रोगोंका शमन करता है।
उदाहरण- मेढकका स्वर।
*नि (निषाद)-* यह स्वर अपनी तीव्रतासे सभी स्वरोंको दबा देता है, अतः निषाद कहा गया है। इसका स्वभाव ठंडा-शुष्क, रंग काला और स्थान नासिका है। इसकी प्रकृति जोशीली और आह्लादकारी है। इसके देवता सूर्य हैं। यह वातज रोगोंका शमन करता है।
उदाहरण-हाथीका स्वर।