श्रीमद् भागवत के महात्म्य मे ‘गोकर्णोपाख्यान’व‘भक्ति’ के कष्ट निवारण दोनोंके माध्यम से ये बताया हैकि श्रीमद् भागवत के केवल श्रवण मात्र सेकैसे जीवोद्धार होता है।श्रवण की महिमा ही इसका सार है।
आइए जानें क्या सिखाता है हमे श्रीमद् भागवत महात्म्य;
*⚜️।।प्रथम स्कन्ध।।⚜️*
प्रथम स्कन्ध मे कुन्ती और भीष्म से ‘भक्ति योग’ के बारे मे बताया गया और ‘परीक्षित की कथा’ के माध्यम से ये बताया गया है कि एक मरते हुये व्यक्ति को क्या करना चाहिये?क्योंकि ये प्रश्न केवल परीक्षित का नहीं,हम सबका है क्योंकि ‘सात दिन’ ही प्रत्येक जीव के पास हैं,आठवां दिन है ही नही, इन्ही सात दिन मे उसका जन्म होता है और इन्ही सात दिन में मर जाता है।
*⚜️।।द्वितीय स्कन्ध।।⚜️*
द्वितीय स्कन्ध में ‘योग-धारणा’ के द्वारा शरीर त्याग की विधि बताई गयी है, भगवान का ध्यान कैसे करना चाहिये उसके बारे में बताया गया है।
*⚜️।।तृतीय स्कन्ध।।⚜️*
इसमे ‘कपिल-गीता’ का वर्णन है जिसमे ‘भक्ति का मर्म’ ‘काल की महिमा’ और देह-गेह मे आसक्त पुरुषों की ‘अधोगति’ का वर्णन मनुष्य योनि को प्राप्त हुये जीव की गति क्या होती है। केवल भक्ति से ही वह इन सब से छूटकर भगवान की और जा सकता है।
*⚜️।।चतुर्थ स्कन्ध।।⚜️*
इसमे यह बताया गया है कि यदि भक्ति सच्ची हो तो उम्र का बंधन नहीं होता ‘ध्रुव की कथा’ ने यही सिद्ध किया है।‘पुरजनोपाख्यान’ मे इन्द्रियों की प्रबलता के बारे में बताया गया है।
*⚜️।।पंचम स्कन्ध।।⚜️*
इसमे ‘भरत-चरित्र’ के माध्यम से यह बताया गया है कि भरतजी कैसे एक हिरण के मोह में पड़कर अपने तीन जन्म गवां देते हैं। ‘भवाट जी’ के प्रसंग में यह बताया गया है कि व्यक्ति अपनी इन्द्रियों के बस मे होकर कैसे अपनी दुर्गति करता है।‘नरकों का वर्णन’ में बताया गया है कि मरने के बाद व्यक्ति की अपने-अपने कर्मों के हिसाब से कैसे नरकों की यातना भोगनी पड़ती है।
*⚜️।।षष्ट स्कन्ध।।⚜️*
षष्ट स्कन्ध में भगवान ‘नाम की महिमा’ के सम्बन्ध में ‘अजामिलोपाख्यान’ है। “नारायणह कवच” का वर्णन है जिससे वृत्रासुर का वध होता है,नारायण कवच वास्तव मे भगवान के विभिन्न नाम है जिसे धारण करने वाले व्यक्ति को कोई परास्त नहीं कर सकता। ‘पुंसवन विधि’ एक संस्कार है जिसके बारे में बताया गया है।
*⚜️।।सप्तम स्कन्ध।।⚜️*
इसमें ‘प्रहलाद-चरित्र’ के माध्यम से बताया गया है कि हजारों मुसीबत आने पर भी भगवान का नाम न छूटे, भगवान का बैरी यदि पिता ही क्यों न हो तो उसे भी छोड़ देना चाहिये।मानव-धर्म, वर्ण-धर्म, स्त्री-धर्म, ब्रह्मचर्य गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रमो के नियम का कैसे पालन करना चाहिये, इसका निरुपण है। कर्म व्यक्ति को कैसे करना चाहिये, यहि इस स्कन्ध का सार है।
*⚜️।।अष्टम स्कन्ध।।⚜️*
भगवान कैसे भक्त के चरण पकड़े हुए व्यक्ति का पहले और बाद में भक्त का उद्धार करते हैं यह ‘गजेन्द्र-गाह कथा’ के माध्यम से बताया गया है। ‘समुद्र मंथन’, ‘मोहिनी अवतार’, वामन अवतार’, के माध्यम से भगवान की भक्ति और लीलाओं का वर्णन है।
*⚜️।।नवम स्कन्ध।।⚜️*
नवम स्कन्ध में ‘सूर्य-वंश’ और चन्द्र-वंश’ की कथाओं के माध्यम से उन राजाओं का वर्णन है जिनकी भक्ति के कारण भगवान ने उन के वंश मे जन्म लिया। जिसका चरित्र सुनने मात्र से जीव पवित्र हो जाता है। यही इस स्कन्ध का सार है।
*⚜️दशम स्कन्ध (पूर्वार्ध)⚜️*
भागवत का ‘हृदय’ दशम स्कन्ध है बड़े-बड़े संत महात्मा, भक्त के प्राण है यह दशम स्कन्ध, भगवान अजन्मा है, उनका न जन्म होता है न मृत्यु, श्री कृष्ण का तो केवल ‘प्राकट्य’ होता है, भगवान का प्राकट्य किसके जीवन मे, और क्यों होता है,किस तरह के भक्त भगवान को प्रिय है, भक्तों पर कृपा करने के लिये, उन्ही की
‘पूजा – पद्धति’ स्वीकार करने के लिये, चाहे जैसे भी पद्धति हो, भगवान का प्राकट्य हुआ, उनकी सारी लीलायें, केवल अपने भक्तों के लिये थी, जिस-जिस भक्त ने उद्धार चाहा,वह राक्षस बनकर उनके सामने आता गया और जिसने उनके साथ क्रीडा करनी चाही वह भक्त, सखा, गोपी, के माध्यम से सामने आते गये, उद्देश्य केवल एक था – ‘श्री कृष्ण की प्राप्ति’ भगवान की इन्ही ‘दिव्य लीलाओं का वर्णन’ इस स्कन्ध में है जहां ‘पूतना मोक्ष’ उखल बंधन’ चीर हरण’
‘गोवर्धन’ जैसी दिव्य लीला और रास, महारास, गोपीगीत तो दिवाति दिव्य लीलायें है। इन दिव्य लीलाओं का श्रवण, चिंतन, मनन बस यही जीवन का सार’ है।
*⚜️दशम स्कन्ध (उत्तरार्ध)⚜️*
इसमे भगवान की ‘ऎश्वर्य’ लीला’ का वर्णन है जहां भगवान ने बांसुरी छोड़कर सुदर्शन चक्र धारण किया। उनकी कर्मभूमि, नित्यचर्या, गृहस्थ, का बड़ा ही अनुपम वर्णन है।
*⚜️।।एकादश स्कन्ध।।⚜️*
इसमें भगवान ने अपने ही यदुवंश को ऋषियों का श्राप लगाकर यह बताया कि गलती चाहे कोई करे,उसको अपनी करनी का फल भोगना पड़ेगा,भगवान की माया बड़ी प्रबल है।उससे पार होनेके उपाय केवल भगवान कीभक्ति है,यही इस स्कन्ध कासार है।अवधूतोपख्यान–24 गुरुओं की कथा शिक्षायें है।
*⚜️।।द्वादश स्कन्ध।।⚜️*
इसमें बताया गया है कि कलियुग के दोषों से बचने के उपाये – केवल ‘नामसंकीर्तन’ है। मृत्यु तो परीक्षित जी को आई ही नहीं क्योंकि उन्होने उसके पहले ही समाधि लगाकर स्वयं को भगवान में लीन कर दिया था।उनकी परमगति हुई क्योंकि इस भागवत रूपी अमृत का पान कर लिया हो उसे मृत्यु कैसे आ सकती है।
🌺।।श्री मद् भागवत माहात्म्य।।🌺
कीर्तनोत्सव मे उद्धव जी का प्रकट होना,श्रीमद् भागवत मे विशुद्ध भक्ति,भगवान श्री कृष्ण के नाम लीला गुण आदि का संकीर्तन किया जाय तो वे स्वयं ही हृदय में विराजते हैं और श्रवण,कीर्तन करने वाले के सारे दुख मिटा देते हैं। ठीक वैसे ही जैसे सूर्य अन्धकार को और आंधी बादलों को तितर-बितर कर देते हैं।
जिस वाणी से घट-घटवासी अविनाशी भगवान के नाम लीला,गुण का उच्चारण नहीं होता,वह वाणी भावपूर्ण होने पर भी निरर्थक है,सारहीन है,जिस वाणी से चाहे वह रस,भाव,अंलकार आदि से युक्त ही क्यों न हो – जगत को पवित्र करने वाले भगवान श्रीकृष्ण के यश का कभी गान नहीं होता, वह तो अत्यन्त अपवित्र है।
इसके विपरीत जिसमें सुन्दर रचना भी नहीं है और जो व्याकरण आदि की दृष्टि से दूषित शब्दों से युक्त भी हैं, परन्तु प्रत्येक श्लोक में भगवान के सुयश नाम जुड़े हैं, वही वाणी लोगों के सारे पापों का नाश कर देती है।
जय श्री कृष्ण🙏🌺🚩