गायत्री मंत्र पर स्त्रियों को अधिकार है या नहीं ,समस्त वेदाधिकार से स्त्रियों को वंचित रखने की भ्रांति
𝗠𝘆𝘁𝗵 - 𝘄𝗼𝗺𝗲𝗻 𝗽𝗿𝗼𝗵𝗶𝗯𝗶𝘁𝗲𝗱 𝘁𝗼 𝗰𝗵𝗮𝗻𝘁 𝗴𝗮𝘆𝗮𝘁𝗿𝗶 𝗺𝗮𝗻𝘁𝗿𝗮 𝗮𝗻𝗱 𝘃𝗲𝗱 𝗺𝗮𝗻𝘁𝗿𝗮
🧘🏻 स्त्रियों का गायत्री पूजन एवं पूर्ण वेदाधिकार
सनातन धर्म में कहीं ऐसा विधि-निषेध नहीं कि हमारी दिव्य स्त्रियाँ गायत्री न जपें या फिर स्त्रियां किन्ही भी वेदों के लिए अछूत है। यह प्रश्न इसलिए उठता है कि यह कहा जाता है कि स्त्रियों को वेद का अधिकार नहीं है। चूँकि गायत्री भी वेद मंत्र है, इसलिए अन्य मंत्रों की भाँति उसके उच्चारण का अधिकार नहीं होना चाहिए । स्त्रियों को वेदाधिकारी न होने का प्रतिबंध वेदों में नहीं है। ऐसी अनेक भ्रांतियां हमारे समाज में विद्यमान है जिन्हे बड़े बड़े पुरोहित पंडित अज्ञानता में इन अधिकारों को स्त्रियों के लिए वंचित बताया जबकि सत्य सनातन भारतीय धर्म में सदा नर-नारी को एक और अविच्छिन्न अंग माना है।
*यथैवात्मा तथा पुत्रः पुत्रेण दुहिता समा।*
-मनु० ९।१३०
आत्मा के समान ही पुत्र है। जैसा पुत्र वैसी ही कन्या दोनों समान हैं।
ईश्वरीय युग से जो वेद प्रकट हुए उन वेद मंत्र दृष्टाओं को ऋषि कहा जाता रहा। ऋषि केवल पुरुष ही नहीं हुए हैं, ऋषि अनेक नारियाँ भी हुईं हैं जो ऋषिकाएं बन अति प्रसिद्ध व पूजनीय रहीं । ईश्वर ने नारियों के अंतःकरण में उसी प्रकार वेद-ज्ञान प्रकाशित किया जैसे कि पुरुष के अंतःकरण में, क्योंकि प्रभु के लिए दोनों ही संतान समान हैं।
ऋग्वेद की ऋषिकाओं की सूची ब्रह्म देवता के अध्याय २४ में बताया गया है की घोषा, गोधा, विश्ववारा, अपाला, उपनिषद्, जुहू, आदिति, इन्द्राणी, सरमा, रोमशा, उर्वशी, लोपामुद्रा, यमी, शाश्वती, सूर्या, सावित्री आदि ब्रह्मवादिनी हैं।
कितनी ही स्त्रियाँ ब्रह्मचारिणी रहकर आत्म-निर्माण एवं परमार्थ का संपादन करती थीं। पूर्वकाल में अनेक सुप्रसिद्ध ब्रह्मचारिणी हुई हैं, जिनकी प्रतिभा और विद्वता की चारों ओर कीर्ति फैली हुई थी। महाभारत में ऐसी अनेक ब्रह्मचारिणियों का वर्णन आया है।
भारद्वाज की श्रुतावती नामक कन्या थी, जो ब्रह्मचारिणी थी और वेदाध्यन में निपुण थी, महाभारत के ही शल्य पर्व में सिद्धा नाम की ब्राह्मणी मुक्ति को प्राप्त हुई ऐसा वर्णन है, इसी पर्व में महात्मा शांडिल्य की पुत्री 'श्रीमती' का भी जिक्र आया है, जिसने व्रतों को धारण किया। वेदाध्ययन में निरंतर प्रवृत्त थी। अत्यंत कठिन तप करके वह देवी ब्राह्मणों से पूजित हुई और स्वर्ग सिधारी। वही उद्योग पर्व में शिवा नामक ब्राह्मणी वेदों में पारंगत बताई गई है , उसने सब वेदों को पढ़कर मोक्ष पद प्राप्त किया। विष्णु-पुराण १।१० और १८।१९ में मार्कण्डेय पुराण अ०-२२ में भी इस प्रकार ब्रह्मवादिनी (वेद और ब्रह्म का उपदेश करने वाली) महिलाओं का वर्णन है।
इसी प्रकार शंकराचार्य जी को भारती देवी के साथ शास्त्रार्थ करना पड़ा था। उस भारती देवी महिला ने शंकराचार्यजी से ऐसा अद्भुत शास्त्रार्थ किया था कि बड़े- बड़े विद्वान् भी अचंभित रह गए थे। उनके प्रश्नों का उत्तर देने के लिए शंकराचार्य को निरुत्तर होकर एक मास की समय माँगना पड़ा था । शंकर-दिग्विजय में भारती देवी के संबंध में लिखा है की भारती देवी सर्वशास्त्र तथा अंगों सहित सब वेदों और काव्यों को जानती थी। उससे बढकर श्रेष्ठ और विद्वान् स्त्री और न थी।
व्योम संहिता में लिखा है की श्रेष्ठ स्त्रियों को वेद का अध्ययन तथा वैदिक कर्मकांड करने का वैसे ही अधिकार है जैसे कि उर्वशी, यमी, शची आदि ऋषिकाओं को प्राप्त था।
अग्निहोत्रस्य शुश्रूषा सन्ध्योपासनमेव च।
इस श्लोक में स्त्रियों को यज्ञोपवीत एवं सन्ध्योपासन का प्रत्यक्ष विधान है।
या स्त्री भर्ता वियुक्तापि स्वाचा रे संयुता शुभा।
सा च मन्त्रान प्रगृह्णातु स भीं तदनुज्ञया ।।
- भविष्य पुराण उत्तर पर्व ४।१३। ६२-६३
उत्तम आचरण वाली विधवा स्त्री वेद मंत्रों को ग्रहण करे और सधवा स्त्री अपने पति की अनुमति से मंत्रों को ग्रहण करे।
यथाधिकारः श्रौतेषु योषितां कर्म सुश्रुतः ।
एवमेवानुमन्यम्ब ब्रह्माणि ब्रह्मावादिताम् ।।
- यम स्मृति
जिस प्रकार स्त्रियों को वेद के कर्मों में अधिकार है वैसे ही ब्रह्मविद्या प्राप्त करने का भी उन्हें अधिकार है।
वाल्मीकि रामायण में कौशिल्या, कैकेयी, सीता, तारा आदि नारियों द्वारा वेद मंत्रों का उच्चारण, अग्निहोत्र, सन्ध्योपासना का वर्णन आता है।
सन्ध्याकाले मनः श्यामा ध्रुवमेष्यति जानकी ।
नदी चेमां शुभ जलां सन्ध्यार्थे वर वर्णिनी ।
- वा० रा० ५/१५/४८
सायंकाल के समय इस उत्तम जल वाली नदी के तट पर सन्ध्या करने जानकी अवश्य आएगी।
वैदेही शोकसन्तप्ता हताशनमुपागतम् ।
- वा० रा० सुन्दर ५३।२३
अर्थात् तब शोक, संतप्त सीताजी ने हवन किया।
'तदा सुमंत्रं मंत्रज्ञा कैकेयी प्रत्युवाच' वेद मंत्रों को जानने वाली कैकेयी ने सुमंत से कहा-
सा क्षोभवसना हृष्टा नित्य व्रत परायणा ।
अग्नि जुहोतिस्य तदा मन्त्रवित्कृत मंगला ॥
-वा० रा० २।२०।१५
वेद मंत्रों को जानने वाली, व्रत परायण, प्रसन्न मुख, सुवेशी कौशिल्या मंगलपूर्वक अग्निहोत्र कर रही थी।
ततः स्वस्त्ययनं कृत्वा मंत्रविद विजयैषिणी।
-वा० रा० ४।१६।१२
तब मंत्रों को जानने वाली तारा ने अपने पति की विजय के लिए स्वस्तिवाचक मंत्रों का पाठ करके अंतःपुर में प्रवेश किया।
गायत्री मंत्र के अधिकार के संबंध में तो ऋषियों ने और भी स्पष्ट शब्दों में उल्लेख किया है। नीचे के दो स्मृति प्रमाण देखिए जिनमें स्त्रियों को गायत्री उपासना का विधान किया गया है।
पुराकल्पेतु नारीणां मौजीबंधनमिष्यते ।
अध्यापनं च वेदानां सावित्री वाचनं तथा ॥
- यमस्मृति
प्राचीन समय में स्त्रियों को मौजी बंधन, वेदों का पढ़ना तथा गायत्री का उपदेश इष्ट था।
मनसा भर्तुरभिचारे त्रिरान्त्रं यावकं क्षीरोदनं वा भुञ्जनाऽघ शयीत उर्ध्व त्रिरात्रादप्सु निमग्नायाः सावित्र्यिष्टशतेन शिरोभि जुहूयात् पूता भवतीति विज्ञायते ।
-वशिष्ठ स्मृति २१।७
यदि स्त्री के मन में पति के प्रति दुर्भाव आये तो उस पाप का प्रायश्चित करने के साथ १०८ मंत्र गायत्री के जपने से वह पवित्र होती है।
वेदाध्यान और गायत्री जीवन को भव्य बनाने वाली विद्या है। उसकी उपासना से बुद्धि और आत्मा में सतोगुणी प्रकाश की वृद्धि होती है उससे विद्या, बुद्धि, दया, करुणा, प्रेम, उदारता, शौर्य, साहस और पवित्रता आदि गुणों की वृद्धि होती है। जो माताएँ इन गुणों में पारंगत होती हैं उनके बच्चे भी वैसे ही बनते हैं इसलिए जब हम उदात्त और भव्य समाज की कल्पना में दैवी प्रकाश गायत्री तत्व का आह्वान करते हैं तो उसकी आवश्यकता महिलाओं के लिए अधिक होती है। फिर यदि उन्हें उस प्रकाश से वंचित रखा जाए तो कौन बुद्धिमान व्यक्ति होगा जो समाज की सुख-शांति और समृद्धि की आशा करेगा।
इतने पर भी कोई यह कहे कि स्त्रियों को वेदाधिकार या फिर गायत्री का अधिकार नहीं तो उसे दुराग्रह या कुसंस्कार ही कहना चाहिए तथा सनातन समाज के लिए ऐसी धार्मिक भ्रातियों को पूर्ण सम्माप्त करना ही श्रेष्ठकर व धर्म सम्मत होगा ।
नोट : अधिकार के साथ साथ कुछ नियम होते हैं इन नियमों को समझना और उनका पालन भी अनिवार्य होता है।