1️⃣0️⃣8️⃣
अनादिकाल से संख्या 108 को ऋषि-मुनियों और विद्वानों द्वारा परब्रह्म ईश्वर से प्राप्त दिव्यता के उपहार के रूप में सदैव पूजनीय माना जाता रहा है। प्राचीन काल के योगी अक्सर कहा करते थे कि हम इस रहस्यमई संख्या के चक्रों में अभ्यास पूरा करके सृष्टि की लय में तालमेल बिठा सकते हैं। हमारी राजसी संख्या 108 प्राचीन दुनिया को आधुनिक दुनिया से और भौतिक क्षेत्र को आध्यात्मिक क्षेत्र से जोड़ती है, ॥ॐ॥ का जप करते समय 108 प्रकार की विशेष भेदक ध्वनी तरंगे उत्पन्न होती है जो किसी भी प्रकार के शारीरिक व मानसिक घातक रोगों के कारण का समूल विनाश व शारीरिक व मानसिक विकास का मूल कारण है। वैदिक संस्कृति के गणितज्ञों ने भी 108 को अस्तित्व की पूर्णता की संख्या के रूप में देखा, यह संख्या सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी को भी जोड़ती है, सूर्य और चंद्रमा की पृथ्वी से औसत दूरी उनके संबंधित व्यास का 108 गुना है। इसलिए सनातन धर्म में यह योग और ज्योतिष दोनों में आध्यात्मिक रूप से बहुत पवित्र है। इस तरह से वैज्ञानिक तथ्यों ने योगियों और ऋषियों द्वारा संख्या 108 के अनुष्ठानिक महत्व को सार्वभौमिक सत्यापान किया तथा सनातन ने इस 108 संख्या के और भी विभिन्न प्रमाणिक रहस्यमई बिंदुओं को जन्म दिया जो निम्न अंकित किए जा रहे हैं।
➡️ नक्षत्रों की कुल संख्या = 27
प्रत्येक नक्षत्र के चरण = 4
जप की विशिष्ट संख्या = 108
27 x 4 = 108
अर्थात् ॐ मंत्र जप कम से कम 108 बार करना चाहिये ।
➡️ संस्कृत में 54 अक्षर हैं जिनमें से प्रत्येक को पुल्लिंग (शिव) और स्त्रीलिंग (शक्ति) पहलू के रूप में वर्णित किया जा सकता है, कुल मिलाकर 108।
➡️ श्री यंत्र पर ऐसे मर्म हैं जहां तीन रेखाएं एक दूसरे को काटती हैं और ऐसे 54 प्रतिच्छेदन बिंदु हैं। प्रत्येक प्रतिच्छेदन बिंदु में पौरुष और स्त्रैण यानी शिव और शक्ति गुण होते हैं। 54 गुना 2 बराबर 108। इस प्रकार, 108 बिंदु हैं जो श्री यंत्र के साथ-साथ मानव शरीर को भी परिभाषित करते हैं।
➡️ ज्योतिष में 12 नक्षत्र और 9 चाप खंड हैं जिन्हें नामशा या चंद्रकला कहा जाता है। 9 गुना 12 बराबर 108. चंद्र चंद्रमा है, और कलाएं संपूर्ण के भीतर के विभाजन हैं।
➡️ हिंदी में मात्रिकाएँ (16 स्वर +38 व्यंजन = 54 ) नाभि से आरम्भ होकर ओष्टों तक आती है, इनका एक बार चढ़ाव, दूसरी बार उतार होता है, दोनों बार में वे 108 की संख्या बन जाती हैं। इस प्रकार 108 मंत्र जप से नाभि चक्र से लेकर जिव्हाग्र तक की 108 सूक्ष्म तन्मात्राओं का प्रस्फुरण हो जाता है। अधिक जितना हो सके उतना उत्तम है पर नित्य कम से कम 108 मंत्रों का जप तो करना ही चाहिए ।।
स्वरमाला -
अ→1 ... आ→2... इ→3 ... ई→4 ... उ→5... ऊ→6 ... ए→7 ... ऐ→8 ओ→9 ... औ→10 ... ऋ→11 ... लृ→12
अं→13 ... अ:→14..
ऋॄ →15.. लॄ →16
व्यंजनमाला -
क→1 ... ख→2 ... ग→3 ... घ→4 ...
ङ→5 ... च→6... छ→7 ... ज→8 ...
झ→9... ञ→10 ... ट→11 ... ठ→12 ...
ड→13 ... ढ→14 ... ण→१15 ... त→16 ...
थ→17... द→18 ... ध→19 ... न→20 ...
प→21 ... फ→22 ... ब→23 ... भ→24 ...
म→25 ... य→26 ... र→27 ... ल→28 ...
व→29 ... श→30 ... ष→31 ... स→32 ...
ह→33 ... क्ष→34 ... त्र→35 ... ज्ञ→36 ...
ड़ 37 ... ढ़ ... 38
ओ अहं = ब्रह्म
ब्रह्म = ब+र+ह+म =23+27+33+25= 108
सीता + राम
(32+4+16+2 = 54) + (27+2+25 = 54) = 108
राधा + कृष्ण
(27+2+19+2 = 50) + (1+11+31+15 = 58) = 108
➡️ हिंसा, झूठ, चोरी, दुराचार और मोह ये पांच पाप हैं। ये ही संसारी प्राणियों को भयंकर दुःख देने वाले हैं। इन पाँच पापों में से प्रत्येक के एक सौ आठ प्रकार होते हैं। जैसे कि - अतीत में भी हिंसा थी, वर्तमान में भी हिंसा है और भविष्य में भी हिंसा होगी. इस प्रकार तीन काल से संबंधित हिंसा के तीन प्रकार x 3 मन, वचन, कर्म x 3 कर्म, करित अनुमोदन x 4 कषाय = 108. त्रिकाल से संबंधित झूठ 343×3x4 = 108 प्रकार के झूठ. त्रिकाल से सम्बंधित चोरी 34343x4=चोरी के 108 प्रकार। त्रिकाल संबंधी कुशील 30343x4 = 108 प्रकार के कुशील। त्रिकाल से संबंधित परिग्रह 30303x4 = परिग्रह के 108 प्रकार।
➡️ सनातन में हिंसात्मक पापों की संख्या 36 मानी गई है जो मन, वचन व कर्म 3 प्रकार से होते है। अर्थात् 36×3=108। अत: पाप कर्म संस्कार निवृत्ति हेतु किये गये मंत्र जप को कम से कम 108 अवश्य ही करना चाहिये।
➡️ तंत्र से अनुमान लगाया गया कि हर दिन हम 21,600 बार सांस लेते हैं, जिनमें से 10,800 सौर ऊर्जा और 10, 800 चंद्र ऊर्जा हैं। 108 x 100 का गुणा करने पर 10,800 आता है। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर ईश्वर का ध्यान करना चाहिये । इसीलिए 10800 की इसी संख्या के आधार पर जप के लिये 108 की संख्या निर्धारित करते हैं।
➡️ 108 एक हर्षद संख्या है, जो अपने अंकों के योग से विभाज्य पूर्णांक है, आध्यात्मिक रूप में 108 में तीन अंक हैं, 1, 0 , 8. इनमें एक “1" ईश्वर का प्रतीक है। ईश्वर का एक सत्ता है अर्थात ईश्वर १ है और मन भी एक है, शून्य “0" प्रकृति को दर्शाता है। आठ “8" जीवात्मा को दर्शाता है क्योंकि योग के अष्टांग नियमों से ही जीव प्रभु से मिल सकता है । जो व्यक्ति अष्टांग योग द्वारा प्रकृति के आठो मूल से विरक्त हो कर ईश्वर का साक्षात्कार कर लेता है उसे सिद्ध पुरुष कहते हैं। जीव “8" को परमपिता परमात्मा से मिलने के लिए प्रकृति “0" का सहारा लेना पड़ता है। ईश्वर और जीव के बीच में प्रकृति है। आत्मा जब प्रकृति को शून्य समझता है तभी ईश्वर “1" का साक्षात्कार कर सकता है। प्रकृति “0" में क्षणिक सुख है और परमात्मा में अनंत और असीम। जब तक जीव प्रकृति “0" को जो कि जड़ है उसका त्याग नहीं करेगा , अर्थात शून्य नही करेगा, मोह माया को नहीं त्यागेगा तब तक जीव “8" ईश्वर “1" से नहीं मिल पायेगा, पूर्णता ( 1+8 =9 ) को नहीं प्राप्त कर पायेगा, 9 पूर्णता का सूचक है।
➡️ चक्र ऊर्जा रेखाओं का प्रतिच्छेदन हैं, और कहा जाता है कि कुल 108 ऊर्जा रेखाएँ हृदय चक्र बनाने के लिए एकत्रित होती हैं। उनमें से एक, सुषुम्ना शीर्ष चक्र की ओर ले जाती है, और इसे आत्म-साक्षात्कार का मार्ग कहा जाता है।
➡️ ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम - मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 में राशियों की संख्या को 12 से गुणा करें तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।
➡️ एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है। सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। छःमाह उत्तरायण में रहता है और छः माह
दक्षिणायन में। अत: सूर्य छः माह की एक स्थिति
में 108000 बार कलाएं बदलता है।
➡️ पवित्र नदी गंगा 12 डिग्री (79 से 91) देशांतर और 9 डिग्री (22 से 31) अक्षांश तक फैली हुई है। 12 x 9 = 108
➡️ ज्योतिष शास्त्र में चांदी धातु को चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है। वैज्ञानिक तौर पर चाँदी का परमाणु भार 108 है।
➡️ एक अद्भुत अनुपातिक रहस्य
पृथ्वी से सूर्य की दूरी/ सूर्य का व्यास=108
पृथ्वी से चन्द्र की दूरी/ चन्द्र का व्यास=108
➡️ मनुष्य शरीर की ऊँचाई
= यज्ञोपवीत(जनेउ) की परिधि
= ( 4 अँगुलियों) का 27 गुणा होती है।
= 4 × 27 = 108
➡️ वैदिक विचार धारा में मनुस्मृति के अनुसार
अहंकार के गुण = 2
बुद्धि के गुण = 3
मन के गुण = 4
आकाश के गुण = 5
वायु के गुण = 6
अग्नि के गुण = 7
जल के गुण = 8
पॄथ्वी के गुण = 9
2+3+4+5+6+7+8+9 =
अत: प्रकृति के कुल गुण = 44
जीव के गुण = 10
इस प्रकार संख्या का योग = 54
अत: सृष्टि उत्पत्ति की संख्या = 54
एवं सृष्टि प्रलय की संख्या = 54
दोनों संख्याओं का योग = 108
➡️ प्रसिद्ध संत भरत ने "नाट्य शास्त्र" लिखा जिसमें 108 करण (हाथ और पैर की गति) हैं।
➡️ प्राचीन भारतीय उत्कृष्ट गणितज्ञ थे और कई एशियाई संस्कृतियों में अंकशास्त्र का महत्वपूर्ण महत्व है। 108 की विशेष स्थिति शायद इसलिए उत्पन्न हुई क्योंकि यह एक सटीक गणितीय विधि अंक है जिसके बारे में सोचा गया था कि इसका विशेष संख्यात्मक महत्व है। इसमें पता चलता है कि 1 की घात 1 गुना, 2 की घात 2 गुना, 3 की घात 3 गुना 108 के बराबर है (अर्थात् 1 1 x2 2 x3 3 = 1x4x27 = 108)
➡️ ऋग्वेद में 10,800 छंद हैं और जिसमे 108 वैदिक अग्नि प्रतीकों के चिन्ह को उल्लिखित किया गया है। अग्नि जो वैदिक काल में परब्रह्म के रूप माने जाते थे।
➡️ ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अंक 5, 7 और 9 व्यक्ति की आत्मा का योग हैं। 5 को रचनात्मकता से संबंधित माना जाता है, 7 संबंधित अनुशासन है, और 9 एकता की भावना को दर्शाता है। एक जीवंत स्वस्थ मनुष्य के लिए इन तीनों की आवश्यकता है। यहां, संख्या 108 का इन तीन संख्याओं में से 5 और 9 के साथ एक आकर्षक संबंध है। संख्या 108 के भीतर संख्या 5 और 9 जिस जटिल तरीके से आपस में जुड़ते हैं, वह जीवन के सुंदर नृत्य को दर्शाता है और जैसा दिखता है, सनातन में भगवान श्री कृष्ण को 108 गोपियों के बीच नाचते हुए बांसुरी बजाते हुए दिखाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि हमारे जीवन का नाटक तब सामने आता है जब ब्रह्मांडीय किरणें शक्ति पैदा करती हैं, जबकि जीवन का पहिया जिसे काल-चक्र कहा जाता है, घूमता है।
➡️ महाकाली ने मानव रूप में कई जन्म लिए जिससे भगवान शिव को उन्हें जगाना पड़ा ताकि उन्हें एहसास हो सके कि वह वास्तव में कौन हैं। भगवान शिव 107 बार असफल हुए और 108वीं बार ब्रह्मांड की वास्तविक ऊर्जा - महाकाली, जो काल चक्र की सीमा से बाहर है, को जागृत किया था।
➡️ सनातन में 108 उपनिषद हैं, जो हिंदू धर्मग्रंथ हैं जिनमें वेदों की शिक्षाएं शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, हिंदू देवताओं के 108 नाम और उन्हें समर्पित 108 स्तोत्र हैं।
➡️ आयुर्वेद में 108 "मर्म" बिंदु हैं जो जीवित प्राणियों को जीवन देने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
➡️ 108 अंक 9 से जुड़ता है। वैदिक अंकशास्त्र में इस अंक 9 को पवित्र माना जाता है और इसे ईश्वरीय अंक कहा जाता है। कई विद्वान जिन्होंने वैदिक अंकशास्त्र में शोध किया ने पाया कि अंकशास्त्र में प्रत्येक में 9 वर्ष का जीवन चक्र होता है।
हिंदू संस्कृति में, जीवन चक्र को युग के रूप में भी जाना जाता है और ये सभी युग संख्या 9 से संबंधित हैं।
सत्य युग 1,728,000 मानव वर्ष के बराबर = (1+7+2+8 = 18) संख्या 9
त्रेता युग 1,296,000 मानव वर्ष के बराबर = (1+2+9+6 = 18) संख्या 9
द्वापर युग 864,000 मानव वर्ष के बराबर = (8+6+4 = 18) संख्या 9
कलियुग 432,000 मानव वर्ष के बराबर है
➡️ आधुनिक आवर्त सारणी में 108 तत्व हैं। अंतिम तत्व हैसियम जो सबसे भारी भी है, उसमें 108 प्रोटॉन हैं
➡️ शिव के लौकिक नृत्य में 108 मुद्राएँ हैं
शिवपुराण के अनुसार उनके तांडव में 108 करण हैं।
➡️ सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से नौ रश्मियां निकलती हैं और ये चारो ओर से अलग-अलग निकलती है। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गई। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बनें । इस तरह सूर्य की जब नौ रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनका पृथ्वी के आठ वसुओं से टक्कर होती हैं। सूर्य की नौ रश्मियां और पृथ्वी के आठ वसुओं के आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुई वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गई।
36+72= 108 इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियाँ पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित है।
➡️ संख्या “1" एक ईश्वर का संकेत है।
संख्या “0" जड़ प्रकृति का संकेत है।
संख्या “8" बहुआयामी जीवात्मा का संकेत है।
[ यह तीन अनादि परम वैदिक सत्य हैं ]
[ यही पवित्र त्रेतवाद है ]
संख्या “2" से “9" तक एक बात सत्य है कि इन्हीं आठ अंकों में “0" रूपी स्थान पर जीवन है। इसलिये यदि “0" न हो तो कोई क्रम गणना आदि नहीं हो सकती। “1" की चेतना से “8" का खेल । “8" यानी “2" से “9" ।
यह “8" क्या है ? मन के “8" वर्ग या भाव ।
ये आठ भाव ये हैं ।
1. काम ( विभिन्न इच्छायें / वासनायें ) । 2. क्रोध । 3. लोभ । 4. मोह । 5. मद ( घमण्ड ) । 6. मत्सर ( जलन ) । 7. ज्ञान । 8. वैराग ।
इन आठ भावों में जीवन का ये खेल चल रहा है ।एक सामान्य आत्मा से महानात्मा तक की यात्रा का प्रतीक है –
॥ 1️⃣0️⃣8️⃣ ॥