रसगुल्ला खाइएगा कि हलवाई बनिएगा? दोनों मार्ग है।
मैक्समुलर आदि ने ब्रूनोफ से वेद पढ़ा। 18 वीं शताब्दी में फ्रांस में ब्रूनोफ वेद पढ़ा रहा था।
2010 में अमेरिकियों ने अपने लिए वैदिक ज्ञान का ग्रंथ बनाया- अमेरिकी वेद।
आधुनिक विश्व की 17वीं शताब्दी में गीता पश्चिमी मुल्कों में पहुँच चुकी थी।
वर्तमान इंटरनेट युग में आनलाइन सबकुछ उपलब्ध है।
आरंभ से ही विश्व भर में विश्व को वैदिक ज्ञान-विज्ञान से परिचित कराकर विश्वजीवन को आर्य बनाने का अभियान चला।
ज्ञान विज्ञान के आलोक से विश्व जीवन को उन्नत बनाने के लिए शैव, वैष्णव, बौद्ध अभियान हुए।
तक्षशिला विश्वविद्यालय ने विश्व भर के विद्यार्थियों को वेद प्रसूत विद्याओं से शिक्षित किया।
यह संकेत भर है।
नये अभियानों का विवरण स्वयं खोजिए, जानिए।
कुछ आवश्यक जानकारी लीजिए-
प्रत्येक वेद के उपनिषद होते हैं। उपनिषदों का सार गीता है। गीता घर-घर में ही नहीं, विश्व भर में प्रचारित किया गया है।
वेद के षडशास्त्र है उन्हीं में एक है व्याकरण। जिसे सभी भाषाओं ने अपनाया।
वेद का एक शास्त्र है कल्प। उससे वेदी इत्यादि रेखाकर निकले, जिससे शिल्प स्थापत्य, अल्पना/ रंगोली, शुल्ब सूत्र/रेखा गणित विकसित हुए। ऐसे ही छंद से अंक का गणित विकसित हुआ।
प्रत्येक वेद के उपवेद होते हैं। ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद, यजुर्वेद का उपवेद है धनुर्वेद, और साम वेद का उपवेद है गंधर्व वेद यानि संगीत। संगीत किसे ज्ञात नहीं है।
आयुर्वेद से कौन परिचित नहीं हैं धनुष आज भी दुनिया में छाया हुआ है।
वेद का उपबृंहण है पुराण। पुराण अल्प श्रुतों के लिए बनाया गया है। पुराणों की कथा कौन नहीं जानता।
वेद का बीज है ॐकार। उसका सार है गायत्री। इनसे कौन परिचित नहीं हैं।
ज्ञान- विज्ञान को ऋषियों ने उपनिषद में, मुनियों ने उपदेशों में आदिकवि ने रामायण में, वेदव्यास ने महाभारत और श्रीमद्भागवत में पुनर्सृजित किया।
श्रीमद्भागवत की कथाओं से कौन परिचित नहीं हैं
श्रीमद्भागवत पर आधारित प्रसंगों को सूरदास, कुंभनदास, नंददास, नरोत्तमदास, परमानंददास इत्यादि कृष्ण भक्त कवियों ने अपनी वाणी में गाया।
भक्ति साहित्य से कौन परिचित नहीं हैं।
तुलसीकृत रामचरितमानस लोक वेद है नानापुराण निगमागम सम्मतम्।
संतों की वाणी में वैदिक ज्ञान का अनुभूत सत्य समाहित है। कबीर से वेद का वयन सूक्त सुनिए- झीनी झीनी बिनी चदरिया।
वस्तुत: वेद लोक में स्थापित है। वेद का प्रचार इतना हुआ कि लोग नहीं जानते कि वे वेद में डूबे हुए हैं।
इतने पर संतोष नहीं है। और आप वेद देखना चाहते हैं तो
सातवलेकर जी और श्रीराम शर्मा आचार्य के कार्यो को जानिए।
इतने के बाद भी आपको पादरी पाठ पढ़ना और ब्राह्मण निंदा करनी ही है तो करते रहिए।
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