हमारी पीढ़ी वह अंतिम पीढ़ी थी जिसे बताया गया था कि प्राणी तीन तरह के होते हैं. स्त्रीलिंग पुल्लिंग और उभय लिंगी.
फ़ेसबुक पर नया अकाउंट ओपन करिए तो 100+ ऑप्शंस आते हैं जेंडर के लिये. मेल फ़ीमेल ये सब तो बीते जमाने के हो गये Agender, non binary, gender fluid, two-spirit समेत सैंकड़ों जेंडर हो गये हैं. हालत यह हो गई है कि यदि कोई घोषणा कर दे कि आज से मुझे टेबल जेंडर का माना जाये तो उसे टेबल कहना पड़ेगा.
विश्व के ज़्यादातर देशों में जनसंख्या वृद्धि पहले ही रुक चुकी है, नेगेटिव चल रही है. और अब यह वॉक कल्चर से तो लग रहा है दो सौ वर्षों में मानवता ही समाप्त हो जायेगी. भारत में भी हालात विशेष ठीक नहीं हैं. हमारी पीढ़ी के पैरेंट्स में तो फिर भी दो दो बच्चे दिखते हैं. दो बच्चे वाले परिवार से जनसंख्या नेगेटिव ही होनी है और अब तो एक बच्चे का चलन बहुत कॉमन है. नई पीढ़ी में शादियाँ भी लेट हो रही हैं, नहीं हो रही हैं और भविष्य में यहाँ भी वॉक कल्चर पैर फैलाएगा तो स्थिति और भयावह होगी. वर्तमान में भी भारत की जनसंख्या वृद्धि दर प्रति दो लोगों में 2.1 ही है. उत्तर के कुछ बड़े राज्य छोड़ दिये जायें तो ज़्यादातर राज्य नेगेटिव ग्रोथ में जा रहे हैं.
आने वाले दस वर्षों में भारत की भी जनसंख्या वृद्धि ब्रेक इवन पर और उसके पश्चात नेगेटिव आने लगेगी. 2050 + में भारत भी अन्य देशों की भाँति बुजुर्गों का देश बनता जाएगा.