एक समय की बात है कबीर दास जी गंगा स्नान करके हरि भजन करते हुए जा रहे थे...
वो एक गली में प्रवेश कर निकल रहे थे, गली बहुत बड़ी थी.. उनके आगे से रास्ते में कुछ माताएं जा रही थी..
उनमें से एक की शादी कही तय हुई होगी तो, उनके ससुराल वालो ने लड़की के लिए एक नथनी भेजी थी।
नथनी बड़ी ही सुंदर थी.. तो वो लड़की जिसके लिए नथनी आई थी वो अपनी सहेलियों को बार बार नथनी के बारे में बता रही थी..
कि नथनी ऐसी है.. वैसी है... ये ख़ास उन्होंने मेरे लिए भेजी है.. ये नथनी.. वो नथनी.. बार बार नथनी की बात बस।
कबीर जी भी उनके पीछे पीछे चल रहे थे और उनकी बात उनके कान में पड़ रही थी..
तभी कबीर जी उनके पास से निकले और कहा कि,
नथनी दिनी यार ने, तो चिंतन बारम्बार,
नाक दिनी करतार ने, उनको दिया बिसार।
सोचो की यदि नाक ही ना होती तो नथनी कहाँ पहनती ?
यही हमारे जीवन में भी हम करते हैं वस्तु का तो हमें ज्ञान रहता है। परंतु ठाकुर जी ने जो दुर्लभ मनुष्य देह भजन के लिए दी है उनका कोई भी आभार नही मानते।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
जय श्री हरि गोविंदा 🙏❤️