किसान फिर आंदोलन पर ?
क्या है किसान आंदोलन , मोटा मोटा समझिए -
किसान की फसल की लागत 100₹
सरकार से एमएसपी चाहिए 200₹
सरकार व्यापारी को बेचेगी 300₹
जनता को अमुक खाद्य मिलेगा 400₹
100₹ की फसल उगाने को किसान को चाहिए - कृषि ऋण
फिर चाहिए - ऋण माफी
किसान को चाहिए सब्सिडी युक्त बीज
चाहिए खाद सब्सिडी
किसान को चाहिए भूमि पुत्र का दर्जा
किसान को चाहिए अन्नदाता का तमगा
किसान को चाहिए नो टोल टैक्स
किसान को चाहिए मुफ़्त बिजली और मुफ्त पानी
किसान को केंद्र से मिलेगी 6000 ₹ प्रतिवर्ष की प्रतिवर्ष सहायता
नई मांग 10,000₹ प्रतिमाह
किसान को चाहिए ट्रैक्टर ऋण
किसान को चाहिए फसल बीमा
जनता को चाहिए सस्ता समान , सस्ता पैट्रोल , मुफ्त बिजली पानी , सस्ता राशन , हर माह प्रति व्यक्ति 5 किलो मुफ्त अनाज
जनता को चाहिए 5 लाख प्रतिवर्ष की सुरक्षा देने वाला आयुष्मान कार्ड
जनता को चाहिए रोजगार , मंहगाई मुक्त समाज , सड़क , दैनंदिन विकास
राजनैतिक दलों को चाहिए जनता का समर्थन , जनता का वोट , केन्द्र और प्रदेश में सरकार
दलों को चाहिए तत्कालीन सत्ता से नाराज वोटर
राजनीतिज्ञों को चाहिए सुख समृद्धि धन वैभव
सत्ता को चाहिए नौकरीपेशा टैक्स पेयर
सत्ता को चाहिए जीएसटी प्रदाता व्यापारी
सत्ता को चाहिए एक अदद कुर्सी
सत्ता को चाहिए जीत
जनता को चाहिए हर तरफ़ खुशहाली
मुफ़्त मुफ़्त का फंडा
जी हां ! सबको कुछ न कुछ चाहिए । तेल तिलों से निकलता है सो तिल भी चाहिएं और तेल भी । जब सब ठीक चल रहा हो तो उस ठीक को उखाड़ने का मुद्दा चाहिए । देख लीजिए जब गठबंधन बनाने से भी कुछ न मिला तब किसानों को न केवल भड़का दिया अपितु न्याय यात्रा के दौरान अपनी पार्टी का समर्थन भी दे दिया । राहुल गांधी ने कहा कि उनकी सरकार आई तो किसानों के लिए एमएसपी की गारंटी देगी ।
अभी देखिए 2006 में स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट आ गई थी । लेकिन 2006 से 2013 तक मनमोहन सरकार ने ने उनकी रिपोर्ट के आधार पर एमएसपी लागू नहीं की । जबकि तब सब कुछ राहुल और सोनिया के हाथों में ही था । खैर ! चुनावी मौसम में अब राजनैतिक दलों द्वारा प्रायोजित किसानों की हिंसा के लिए तैयार रहिए । शायद इसी तरह रामलला का प्रभाव कुछ कम हो जाए ?