VIDEO AND PANCHANG : गीता वीडियो एवम पंचाग
"गीता अध्याय 09 श्लोक 33"
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🌥️ 🚩युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩तिथि - पंचमी सुबह 11:36 तक तत्पश्चात षष्ठी
⛅दिनांक - 31 जनवरी 2024
⛅दिन - बुधवार
⛅विक्रम संवत् - 2080
⛅अयन - उत्तरायण
⛅ऋतु - शिशिर
⛅मास - माघ
⛅पक्ष - कृष्ण
⛅नक्षत्र - हस्त रात्रि 01:08 तक तत्पश्चात चित्रा
⛅योग - सुकर्मा सुबह 11:41 तक तत्पश्चात धृति
⛅राहु काल - दोपहर 12:53 से 02:16 तक
⛅सूर्योदय - 07:20
⛅सूर्यास्त - 06:26
⛅दिशा शूल - उत्तर
⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:37 से 06:28 तक
⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:27 से 01:19 तक
⛅व्रत पर्व विवरण -
⛅विशेष - नीम फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
🔹मातृ-पितृ पूजन दिवस के सुपरिणाम🔹
👉 अनैतिकता में न गिरकर शारीरिक, मानसिक रोगों व दुःखमय भविष्य से बच जाते हैं बच्चे व युवा ।
👉 आज के कामोत्तेजक माहौल में दिव्य निर्दोष प्रेम के सुख का अनुभव ।
👉 माता-पिता, सद्गुरु का आदर-पूजन करनेवाले होते हैं सफल, सुखी और यशस्वी ।
🔹वेलेंटाइन डे आदि के दुष्परिणाम🔹
👉 बाल व युवा पीढ़ी का नैतिक, चारित्रिक पतन एवं अंधकारमय भविष्य ।
👉 माता-पिताओं को वृद्धाश्रमों में छोड़ने की कुरीति को बढ़ावा ।
👉 एड्स जैसे यौन रोगों व मानसिक अवसाद, आत्महत्या आदि में वृद्धि ।
🔹हवन-यज्ञ क्यों ?🔹
🔹प्रतिदिन यज्ञ का लाभ पाने की युक्ति🔹
🔸आज भी आपको देशी गाय के गोबर के कंडे व कोयले मिल सकते हैं। कभी-कभार उन्हें जलाकर जौ, तिल, घी, नारियल के टुकड़े एवं गूगल मिला के तैयार किया गया धूप कर दो तो बहुत सारे हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जायेंगे ।
🔸जब आपको ध्यान, जप आदि करना हो तो थोड़ी देर पहले यह धूप करके फिर उस धूप से शुद्ध बने हुए वातावरण में प्राणायाम, ध्यान, जप करने बैठें तो बहुत ही लाभ होगा । किंतु धूप में भी अति न करें, नहीं तो गले में कुछ तकलीफ हो सकती है, अतः माप से करें ।
🔸गौ-गोबर के कंडे के धुएँ से हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं । इसी कारण जब कोई मर जाता है तो श्मशान-यात्रा में एक व्यक्ति मटकी में कंडों का धूआँ करते हुए चलता है ताकि मृतक के जीवाणु समाज में, वातावरण में न फैलें ।
🔸आजकल परफ्यूम आदि से अगरबत्तियाँ बनती हैं । वे खुशबू तो देती हैं लेकिन उनमें प्रयुक्त रसायनों का हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।
🔸एक तो मोटर-गाड़ियों के धुएँ का कुप्रभाव, दूसरा अगरबत्तियों के रसायनों का भी कुप्रभाव शरीर पर पड़ता है । ऐसी अगरबत्तियों की अपेक्षा सात्त्विक अगरबत्ती या धूपबत्ती मिल जाय तो ठीक है, नहीं तो कम-से-कम घी का थोड़ा धूप कर लिया करो ।
🔹सर्वोपरि यज्ञ कौन-सा ?🔹
🔸कीटाणुओं को मारना और शरीररूपी कीटाणुओं को अच्छा रखना उसीके पीछे वैज्ञानिकों की सारी भागदौड़ और उनका विज्ञान काम करता है ।
🔸हमारे ऋषियों ने कीटाणु मारने के लिए यज्ञ की खोज नहीं की है अपितु वातावरण, भाव तथा जन्म-मरण के चक्कर में डालनेवाले मलिन अंतःकरण को ठीक करके परमात्मप्राप्ति में यज्ञ को निमित्त बनाया है।
🔸उन यज्ञों में भी श्रीकृष्ण कहते हैं कि जपयज्ञ सर्वोपरि है । अग्नि में जौ, तिल होमना अच्छा है परंतु इससे भी श्रेष्ठ है गुरुमंत्र लेकर माला पर जप करना । उसको भगवान श्रीकृष्ण ने 'जपयज्ञ' कहा है ।
🔸भगवन्नाम जप में योग्य-अयोग्य का खयाल भी नहीं किया जाता । भगवन्नाम सारी अयोग्यताओं को हरकर प्राणियों के चित्त में छिपी हुई योग्यता जगा देता है। इसलिए जपयज्ञ सर्वोपरि यज्ञ माना गया ।
🌹भगवान कहते हैं: यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि...
'सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ मैं हूँ।' (गीता : १०.२५)
🔸यज्ञ करने में तो यजमान धूआँ सहे, विधि- विधान का पालन करे तब लाभ होता है । और उस समय तो अग्नि के सामने तपना पड़ता है, कालांतर में उसे सुख मिलता है लेकिन भगवन्नाम लेने से तो वर्तमान में ही सुख मिलता है और कालांतर में परमात्मा मिलता है।
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