🏹🏹🏹🏹 राम 🏹🏹🏹🏹
ज्यों ज्यों समय नजदीक आता जा रहा है प्रभु के दर्शन को मन लालायित होता जा रहा है। लेकिन परमभूमि में स्वयं उपस्थित होकर स्थापित हो रहे रामलला का साक्षात दर्शन प्राप्त करना बहुत कठिन है।
इसलिए उनके दर्शन अंतर्मन में करें वे तो सभी जगह वैसे भी विराजमान हैं और इस दर्शन के लिए बस गोस्वामी जी द्वारा उनके प्रभु के चरित्र को प्रकट करते महाकाव्य रामचरितमानस का ध्यान कीजिए प्रभु स्वयं ही प्रगट हो जाएंगे।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रभु का ऐसा ही वर्णन किया है।
काम,क्रोध,मद,लोभ,मोह ,मान,मत्सर अहंकार जैसे असुरों की नगरी वासना रूपी लंका को त्यागकर सत्य संकल्प प्रभु श्रीराम की शरण ग्रहण करें।
भगवान के कोमल और लाल वर्ण के सुंदर चरणकमल के दर्शन होंगे। जो सेवकों को सुख देने वाले हैं,जिन चरणों का स्पर्श पाकर ऋषि पत्नी अहिल्या तर गईं और दण्डक वन पवित्र हो गया।जिन चरणों को माता सीता ने हृदय में धारण कर रखा है,जो कपटमृग के साथ वन में धरती पर दौड़े थे, और जो पदपंकज साक्षात शिव जी के हृदयरुपी सरोवर में विराजते हैं। बाल्यावस्था में जिन चरणों की पैंजनी की मधुर झंकार से न केवल चक्रवर्ती दशरथ अपितु समस्त अयोध्या नगरी पुलकित हो उठती,जिन चरणों की पादुकाओं में धर्मात्मा भरत जी ने मन लगा रखा था,वे ही चरण आपको अपने मनमंदिर में दर्शित होंगे।
राघवेन्द्र सरकार के नीले कमल , नीलमणि और नीले मेघ के समान श्यामवर्ण चिन्मय शरीर की शोभा जिसे देखकर करोड़ों कामदेव भी लजा जाते हैं।
भगवान का मुख शरद पूर्णिमा के चंद्रमा के समान छवि की सीमास्वरुप है।गाल और ठोड़ी बहुत सुन्दर है, नयनों की छवि नये खिल हुए कमल के समान बहुत सुंदर, कामदेव के धनुष की शोभा हर लेने वाली टेढ़ी भौंहें।ललाट पर प्रकाशमान तिलक, कानों में मत्स्य के आकार के कुण्डल और सिर पर सुशोभित मुकुट। भौंरों के झुण्ड के समान काले घुंघराले बाल,हृदय पर श्रीवत्स, सुन्दर वनमाला, रत्नजड़ित हार और मणियों के आभूषण।सिंह सी ग्रीवा, सुंदर जनेऊ, बाहों में सुंदर गहने, हाथी के सूंड़ के समान सुन्दर भुजदंड ,कमर में तर्कसंगत और हाथ में सुशोभित बाण तथा धनुष। बिजली को भी लजाने वाला स्वर्ण - वर्ण का प्रकाशमय पीताम्बर ,उदर पर सुन्दर तीन रेखाओं की त्रिवली और यमुना जी के भंवर की छवि छीन लेती मनोहर नाभि ।
आंखें बन्द सारे छल कपट को त्यागकर अपने माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र पुत्री, पत्नी शरीर,धन मित्र परिवार इन सबके ममत्वरुपी धागों को बटोरकर सबकी डोरी बटते हुए उससे अपने मन को भगवान के चरणों में बांध कर हर्ष , विषाद और भय से मुक्त मन से ध्यान कीजिये।
श्रवन सुजसु मुनि आयउं प्रभु भंजन भवभीर
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर।
प्रभु के साक्षात दर्शन आपको अपने अंतर्मन में ही हो जाएंगे।
🙏🙏🙏जय जय श्री राम 🙏🙏🙏